वक्फ एक्ट 1995 : हिंदुओं की संपत्ति छीनने का हथियार !

यदि आप अपनी कोई जमीन या मकान बेचने के लिए रजिस्ट्रॉर कार्यालय जाएं और वहां पता चले कि, आपकी जमीन तो आपकी है ही नहीं । उस जमीन पर तो किसी और का कब्जा हो चुका है, तो आपके पैरों तले की जमीन अवश्यक खिसक जाएगी ।

यही हुआ है तमिलनाडु में त्रिची जिले के तिरुचेंथुरई गांव के रहने वाले राजगोपाल नाम के व्यक्ति के साथ। जो अपनी एक एकड़ जमीन बेचने के लिए रजिस्ट्रॉर कार्यालय पहुंचे तो उन्हें पता चला कि, जिस जमीन को बेचने के के बारे में वो सोच रहे हैं वो उनकी नहीं रही, वक्फ की हो चुकी है और अब उसका मालिक तमिलनाडु वक्फ बोर्ड है। बात बढ़ी तो रजिस्ट्रॉर कार्यालय से पता चला कि, तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने राजगोपाल की जमीन समेत पूरे गांव की जमीन पर अपना दावा किया हुआ है। जिसमें उस गांव में बना करीब 1500 साल प्राचीन मंदिर भी आता है।

65 वसंत देख चुके राजगोपाल को जब त्रिची के लैंड रजिस्ट्रॉर ने अपनी जमीन बेचने के लिए चेन्नई जाकर तमिलनाडु वक्फ बोर्ड से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लाने के लिए कहा, तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। जब राजगोपाल के हाथ में नोटिस आया तो उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

असल में राजगोपाल अपनी बेटी की शादी के लिए जमीन बेचना चाहते हैं। लेकिन शादी रुक गई है क्योंकि, वह इसका खर्च उठाने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं आत्महत्या करना चाहता था। मैं अस्वस्थ हूं।

राजगोपाल की जमीन ही नहीं तिरुचेंथुरई गांव के सारे खेत-खलिहान गांव की जमीनें-मकान सब पर तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने कब्जा कर लिया है। गांव के लोग ठगा महसूस कर रहे हैं। पुरखों की जमीन को अपना समझते आए थे वो पता चला कि उनकी नहीं है।

इस गांव में 95 प्रतिशत जनसंख्या हिंदुओं की है। वर्ष 1985 में 22 मुस्लिम परिवार जरूर यहां आकर बसे हैं। लेकिन पूरा गांव हिंदू बाहुल्य है। करीब पंद्रह हजार की आबादी वाले इस गांव के आसपास करीब 369 एकड़ की संपत्ति है।

तमिलनाडु वक्फ बोर्ड की इस कारस्तानी पर सवाल उठाने के बजाय रजिस्ट्रॉर कार्यालय गांव वालों को ही नोटिस दे रहा है और घोषणा कर रहा है कि, गांव की सारी संपत्ति तमिलनाडु वक्फ बोर्ड के अधीन है। वक्फ बोर्ड की अनुमति के बगैर कोई संपत्ति ना खरीदी जा सकती है और ना बेची।

प्रश्न ये है कि, एक हिंदू बाहुल्य गांव को वक्फ बोर्ड अपनी संपत्ति कैसे घोषित कर सकता है। आखिर कौन से कानून में वक्फ बोर्ड को इस मनमानी की अनुमत मिली है जो वक्फ बोर्ड को इतनी असीमित ताकतें देता है। अब पूरा तिरुचेंथुरई गांव ये सोच-सोचकर परेशान है कि वक्फ के कब्जे से अपनी जमीनों और संपत्तियों को कैसे छुड़ाएं।

ये सिर्फ एक गांव का मामला नहीं है, जिस पर तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने अपना मालिकाना हक घोषित कर दिया है। बल्कि अकेले त्रिची जिले में कम से कम 6 ऐसे गांव हैं, जिन्हें वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित किया हुआ है।

वक्फ क्या है ?

वक्फ धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए अल्लाह के नाम पर दी गई संपत्ति है। सरल भाषा में कानूनी दृष्टि से इस्लाम को मानने वाले व्यक्ति द्वारा किसी भी चल या अचल संपत्ति को धार्मिक कार्य के लिए किया गया कोई भी दान। ये दान पैसा या संपत्ति हो सकता है। इसके साथ ही यदि किसी संपत्ति को लंबे समय तक धर्म के काम में उपयोग किया जा रहा हो, तो उसे भी वक्फ माना जा सकता है। यदि कोई एक बार किसी संपत्ति को वक्फ कर देता है तो उसे फिर वापस नहीं लिया जा सकता है। एक गैर-मुस्लिम भी वक्फ बना सकता है लेकिन व्यक्ति को इस्लाम कबूल करना होगा और वक्फ बनाने का उद्देश्य इस्लामी होना चाहिए।

लेकिन, समय के साथ ये अर्थ बदल गया है। 1947 में जब हिंदू पाकिस्तान में अपनी जमीनों को छोड कर भारत आए और, मुस्लिम भारत में अपनी जमीनें छोडकर पाकिस्तान गए। तो, पाकिस्तान ने हिंदुओं की पूरी जमीन पर कब्जा कर लिया। और, इस जमीन को मुस्लिमों और राज्य सरकार को दे दिया। लेकिन, महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने इसका ठीक उलट किया।

उन्होंने कहा कि, पाकिस्तान जा चुके मुस्लिमों की जमीनों को कोई हिंदू नहीं छुएगा। उन्होंने इन जमीनों की जानकारी इकट्ठी की और इसे वक्फ को दे दिया। 1954 का वक्फ बोर्ड कानून उतना कठोर नहीं था। लेकिन, असली बदलाव 1995 में आया। कांग्रेस नेता और प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव वक्फ कानून 1995 लाए। और वक्फ बोर्ड को जमीनों के अधिग्रहण के असीमित अधिकार दे दिए।

आइए अब बात करते हैं वक्फ कानून के प्रावधानों की…

  • वक्फ कानून का सेक्शन 3 (R) बताता है कि, वक्फ क्या है । कोई संपत्ति जो किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून यानी इस्लामिक कानून के तहत पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त है। तो, मुस्लिम कानून (भारतीय कानून के हिसाब से नहीं) के अनुसार, यदि वक्फ सोचता है कि जमीन किसी मुस्लिम से संबंधित है, तो वह वक्फ की संपत्ति है।
  • मान लीजिए कि, 2010 में आपने एक जमीन रमेश से खरीदी और रमेश ने वो जमीन 1965 में सलीम से खरीदी थी। तो, वक्फ बोर्ड उस जमीन पर अपना दावा कर सकता है। यह कहते हुए कि, सलीम ने 1964 में वो जमीन वक्फ को दे दी थी। और, अब यह वक्फ की संपत्ति है। अब आप क्या कर सकते हैं ? आप अदालत नहीं जा सकते हैं। आपको राज्य के वक्फ बोर्ड के पास जाना होगा।
  • भारत में एक केंद्रीय वक्फ बोर्ड है। और 32 राज्य के वक्फ बोर्ड हैं। वक्फ बोर्ड 7 सदस्यीय एक कमेटी है। जिसके सभी सदस्य मुस्लिम ही होने चाहिए। कांग्रेस पार्टी मंदिर कानून लाई और सभी मंदिरों पर राज्य का कब्जा हो गया। और, कहा गया कि गैर-हिंदू भी मंदिर बोर्ड का सदस्य हो सकता है।
  • लेकिन, यही कांग्रेस वक्फ कानून लेकर आई। और इस बोर्ड को स्वायत रखा। इस कानून में कहा गया कि गैर-मुस्लिम शख्स वक्फ बोर्ड का हिस्सा नहीं हो सकता है। वक्फ बोर्ड के पास एक सर्वेयर होता है, जो सभी जमीनों का सर्वे करता रहता है। और, यदि उसे लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ से संबंधित है। तो, वह उसे नोटिस जारी कर सकते हैं। वक्फ कानून का सेक्शन 4 सर्वेयर को असीमित शक्तियां देता है।
  • वक्फ का एक सीईओ होता है, जो मुस्लिम ही होना चाहिए। सेक्शन 28 वक्फ के सीईओ को अधिकार देता है कि, वह कलेक्टर को आदेश दे सके। तो, जैसे ही आपको नोटिस मिलेगा आपको जमीन के नक्शे, रजिस्ट्री, पेपर लेकर वक्फ बोर्ड के पास जाना होगा। ताकि, साबित किया जा सके कि, ये आपकी ही जमीन है। (उसी बोर्ड के पास जिसने आपको नोटिस भेजा है।)
  • अब वक्फ कानून का सबसे कठोर प्रावधान आता है। वक्फ कानून का आर्टिकल 40 भयावह है। चाहे ‍वह आपकी जमीन हो या वक्फ की जमीन, यह निर्णय लेना का अधिकार वक्फ बोर्ड को ही है। और, उनका निर्णय ही आखिरी होगा। तो, वक्फ ही पुलिस है। वक्फ ही वकील है। वक्फ ही न्यायमूर्ति है।
  • तो, आप वक्फ को संतुष्ट नहीं कर सकते हैं कि, यह आपकी ही जमीन है। और, आपको जमीन खाली करने के लिए कह दिया जाएगा। आप अब भी न्यायालय नहीं जा सकते हैं। आप वक्फ की ट्रिब्यूनल न्यायालय में जा सकते हैं। हर राज्य में ये न्यायालय केवल 1-2 ही हैं। तो, आपको राजधानी जाना होगा और वहां केस फाइल करना होगा। वक्फ कानून का सेक्शन 83 ट्रिब्यूनल के बारे में है।
  • ट्रिब्यूनल में 2 जज (किसी भी धर्म के हो सकते हैं) होंगे। और, एक प्रख्यात मुस्लिम होगा। आप ट्रिब्यूनल में अपना केस लड़ते हैं। और, मान लीजिए कि हार जाते हैं। उसके बाद आपके पास क्या विकल्प हैं ? यहां सेक्शन 85 के रूप में आता है एक और बड़ा झटका। सेक्शन 85 कहता है कि, ट्रिब्यूनल का निर्णय ही अंतिम होगा।
  • कोई सर्वोच्च या उच्च न्यायालय ट्रिब्यूनल न्यायालय के निर्णय को बदल नहीं सकता। हालांकि, बाद में इस प्रावधान पर स‍र्वोच्च न्यायालय ने मई 2022 में एक केस में रोक लगा दी थी। स‍र्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि, कोई भी न्यायालय हमसे ऊपर नहीं हो सकती है। और, हम किसी भी निर्णय में हस्तक्षेप कर सकते हैं।
  • 2005 में उत्तरप्रदेश वक्फ बोर्ड ने ताजमहल पर एएसआई के खिलाफ दावा किया। हालांकि, वे स‍र्वोच्च न्यायालय में ये केस हार गए। वक्फ बोर्ड ने वक्फ कानून के प्रावधानों का उपयोग ज्ञानवापी मामले में भी किया था। लेकिन, वे वहां भी हार गए। प्रश्न ये है कि, ताकतवर लोग महंगे वकीलों को केस लडने के लिए रख सकते हैं। और, स‍र्वोच्च न्यायालय भी जा सकते हैं। लेकिन, एक सामान्य जनता का क्या होगा ?

तमिलनाडु में जिस वक्फ ने एक पूरे गांव पर अपना अधिकार जताया है, उस जमीन पर दावा सिद्ध करने की जिम्मेदारी बोर्ड की नहीं है। खुद को सही सिद्ध करने की जिम्मेदारी पीड़ित पक्ष की होती है। सवाल उठता है कि, कैसे एक धर्मनिरपेक्ष देश में एक धार्मिक कानून बन सकता है ? क्यों हिंदुओं, ईसाईयों और सिखों के लिए ऐसा कोई कानून नहीं है ? केवल मुस्लिमों को लिए ही क्यों ?

यदि ईसाई, सिख, जैन किसी हिंदू शख्स की जमीन पर कब्जा या अतिक्रमण कर लें या इसका विपरीत हो। तब वे सिविल न्यायालय जाएंगे। लेकिन, यदि कोई मुस्लिम किसी हिंदू या किसी अन्य धर्म के व्यक्ति की जमीन पर कब्जा कर ले, तब उन्हें वक्फ ट्रिब्यूनल के पास जाना होगा। यह विशेषाधिकार केवल एक धर्म को क्यों ?

इस कठोर कानून की वजह से वक्फ 6 लाख संपत्तियों वाली भारत की तिसरे सबसे अमीर संस्था बन गई है। और, जिसका मार्केट मूल्य 12 लाख करोड है। वक्फ इन जमीनों को किराए पर देकर करोड़ों रुपये कमाता है। जो उनके धार्मिक उत्थान और मुकदमे लडने में उपयोग किया जाता है। सरकार भी इन्हें आर्थिक सहयोग देती है।

वहीं, दूसरी ओर सरकारें हर साल हिंदू मंदिरों से एक लाख करोड़ रुपये लेती हैं। जो गैर-हिंदू कामों में उपयोग किया जाता है। दूसरी ओर सरकार वक्फ को फंडिंग देती है, जो पहले से ही अमीर है। सरकार को तत्काल प्रभाव से वक्फ कानून को रद्द करना चाहिए। और, सभी धर्मों के लिए एक जैसा कानून बनाया जाना चाहिए।

भारतीय संविधान किसी भी ऐसे कार्य की अनुमती नहीं देता है, जो धार्मिक हो और अन्य धर्मों के अधिकारों का अतिक्रमण करता हो। 1995 में कांग्रेस ने परोक्ष रूप से भारत को एक समुदाय को सौंप दिया। वक्फ कानून 1995 को खत्म करो।

वक्फ अधिनियम 1995 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं न्यायालय में प्रविष्ट

पू. (अधि.) हरि शंकर जैन, जितेंद्र सिंह और 6 अन्य द्वारा दायर याचिका

वक्फ एक्ट, 1995 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है । याचिका में मांग की गई है कि, न्यायालय को यह तय करना चाहिए कि संसद के पास वक्फ और वक्फ संपत्ति के लिए वक्फ अधिनियम 1995 बनाने की शक्ति नहीं है; क्योंकि संसद न्यास, उनकी संपत्ति और धार्मिक संस्थाओं के लिए कानून नहीं बना सकती।

यह याचिका महामहिम (अधिवक्ता) हरि शंकर जैन, जितेंद्र सिंह और 6 अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी। याचिका में कहा है कि, वक्फ कानून वक्फ संपत्ति को विशेष दर्जा देता है; हालांकि, हिंदू न्यास, आश्रम और अखाड़ों की संपत्तियों को ऐसा विशेष दर्जा नहीं दिया गया है। इसके लिए आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के एक पुराने फैसले का हवाला दिया गया है। वक्फ बोर्ड के पास भारतीय रेलवे और रक्षा मंत्रालय से ज्यादा जमीन है। वर्तमान में वक्फ बोर्ड के पास 8 लाख एकड जमीन है। वक्फ के नाम पर अब तक देश में 6,59,877 संपत्तियां घोषित की जा चुकी हैं।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि, पिछले 10 वर्षों में वक्फ बोर्ड ने दूसरों की संपत्ति पर कब्जा कर लिया है और इसे अपनी जमीन घोषित कर दिया है। अतिक्रमण हटाने का अधिकार वक्फ बोर्ड के पास है। इसकी कोई समय सीमा नहीं है; हालांकि, हिंदू न्यास, आश्रम, अखाड़ों जैसे धार्मिक संस्थानों के संपत्ति प्रबंधक, कार्यवाहक, महंत आदि को ऐसे अधिकार नहीं दिए गए हैं।

अधिवक्ता जैन ने कहा कि, वक्फ बोर्ड एक धार्मिक समूह के अलावा और कुछ नहीं है, बोर्ड के गठन का सरासर आधार ही चर्चा का विषय है।

अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की याचिका

यह याचिका अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की थी। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि, वक्फ अधिनियम भारत की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। जनहित याचिका में कहा गया है कि, अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन की आड में बनाया गया है लेकिन अन्य धर्मों के अनुयायियों के लिए समान कानून नहीं हैं। जनहित याचिका में इस अधिनियम के तहत विभिन्न प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी गई है। उपाध्याय ने दलील दी कि, यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता, एकता और राष्ट्र की अखंडता के खिलाफ है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि, संविधान में कहीं भी वक्फ का उल्लेख नहीं है।

याचिकाकर्ता उपाध्याय के अनुसार, वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा हासिल है। ऐसे अधिकार हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध या ईसाई धर्म के पास नहीं हैं। यही नहीं, ये एक्ट वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के तौर पर दर्ज कर, कब्जा करने की मनमानी शक्ति भी देता है। इस याचिका के जरिए वक्फ एक्ट के सेक्शन 4, 5, 6,7, 8, 9 और 14 को चुनौती दी गई है।

अश्विनी कुमार उपाध्याय ने बताया कि, कैसे सरकार वक्फ बोर्ड को भुगतान करती है लेकिन कोई राजस्व एकत्र नहीं करती है, वहीं हिंदू मंदिरों से धन एकत्र करती है लेकिन उन पर कुछ भी खर्च नहीं करती है। याचिका में कहा गया है कि, वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक, सांसद, आईएएस अधिकारी, नगर योजनाकार, अधिवक्ता और विद्वान जैसे सदस्य हैं, जिन्हें सरकारी खजाने से भुगतान किया जाता है । वास्तव में केंद्र मस्जिदों या दरगाहों से कोई पैसा नहीं लेता है। दुसरी ओर, राज्य चार लाख मंदिरों से लगभग एक लाख करोड़ इकट्ठा करते हैं, लेकिन हिंदुओं के लिए समान प्रावधान नहीं हैं। इस प्रकार यह अधिनियम अनुच्छेद 27 का उल्लंघन करता है” ।

याचिका में केंद्र सरकार और भारत के विधि आयोग को अनुच्छेद 14 और 15 के आधार पर ‘ट्रस्ट-ट्रस्टी और चैरिटी-चैरिटेबल संस्थानों के लिए एक समान कोड’ का मसौदा तैयार करने और इसे सार्वजनिक चर्चा और प्रतिक्रिया के लिए प्रकाशित करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने वक्फ अधिनियम 1995 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर 20 अप्रैल 2022 को एक नोटिस जारी किया।

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