4599 मंदिर, 31250 हिंदू घर-दुकान को जिहादियों ने किया ध्वस्त : ‘बाबरी’ की आड़ में मीडिया छुपाता है ये आंकड़े

हिंदुओं द्वारा अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि पर एक बार फिर अपना अधिकार प्राप्त कर लेने के बाद वामपंथी मीडिया और इस्लामिक विचारधारा समर्थक गिरोह हिंदुओं के खिलाफ युद्ध के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। मार्क्सिस्ट-लेफ्टिस्ट मीडिया ने इस झूठ को स्थापित करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी कि यहां पर श्रीराम मंदिर था ही नहीं। ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के नेता सैय्यद शाहबुद्दीन ने वर्ष 1990 में एक बार कहा था कि अगर वहां पर राम मंदिर के अवशेष मिले तो वो बाबरी को बड़े हथौड़े से गिरा देंगे।

अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि स्थल के इतिहास को लेकर वर्ष 1989 तक कोई सवाल नहीं किया गया था। सभी लिखित स्रोत, चाहे हिंदू, मुस्लिम या यूरोपीय हों, सभी उस स्थल पर पहले से श्रीराम मंदिर के अस्तित्व को लेकर सहमत थे। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, वर्ष 1989 संस्करण में ‘अयोध्या’ चैप्टर के अनुसार, “अयोध्या में राम के जन्मस्थान पर एक मस्जिद बनाई गई। जिसे मुगल सम्राट बाबर द्वारा 1528 में पहले से निर्मित मंदिर की ज़मीन पर बनाया गया।”

बेल्जियम के विश्व प्रसिद्ध विद्वान डॉ कोनराड एल्स्ट ने लिखा है:

“दिसंबर 1990 में, चंद्रशेखर की सरकार ने इस मामले की ऐतिहासिक सच्चाई पर चर्चा के लिए विद्वानों के एक दल को शामिल करने के लिए विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (BMAC) में शामिल दो समूहों को आमंत्रित किया। BMAC के पदाधिकारी यह सोचकर बिना किसी तैयारी के उस चर्चा में पहुँचे कि हिंदुओं द्वारा किए जा रहे दावे काल्पनिक हैं। लेकिन जब वीएचपी टीम ने श्रीराम मंदिर जन्मभूमि मामले का समर्थन करते हुए दर्जनों दस्तावेज पेश किए तो वे दंग रह गए।”

BMAC ने तब मार्क्सवादी प्रोफेसर आरएस शर्मा की अध्यक्षता में इतिहासकारों की एक टीम को आमंत्रित किया। शर्मा इस मांग के साथ अगली बैठक में पहुँचे कि उन्हें ‘स्वतंत्र विद्वानों’ के रूप में मान्यता दी गई है, जो विवादित फैसले में शामिल होने जा रहे थे यानी, बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के आकाओं और VHP विरोधियों के बीच एक निर्णय पारित करने के लिए शामिल होने जा रहे थे। सरकार के प्रतिनिधियों ने इस हास्यास्पद मांग को मंजूरी नहीं दी।

अगली बैठक में, मार्क्सवादी इतिहासकारों ने घोषणा की कि उन्होंने अभी तक सबूतों का अध्ययन नहीं किया है और उन्हें छह और हफ्तों की ज़रूरत है। उनके द्वारा दिया गया यह बयान बहुत ही अजीब था। इन्हीं लोगों ने मंदिर के अस्तित्व को नकार देने वाली याचिका पर हस्ताक्षर करने में 42 शिक्षाविदों का नेतृत्व किया था। जनवरी 24, 1991 को होने वाली इस बैठक में वे मौजूद ही नहीं थे।

1990-91 के विद्वानों की बहस में हिंदू पक्ष की शानदार जीत हुई थी। इससे यह भी पता चला कि वामपंथी इतिहासकार केवल भोले, अनजान दर्शकों या ऐसे दर्शकों से झूठ बोल सकते हैं, जो उनका विश्वास करते हैं और वही सुनना चाहते हैं, जो वो कहते हैं। वास्तविक विद्वानों के तथ्यों के सामने उनके तर्क कहीं नहीं टिकते।

हमने ये सभी चीजें सुप्रिया वर्मा जैसे लोगों के मामले में भी देखा, जो कि अक्सर नकारने के ही भाव में रहा करते हैं। सुप्रिया वर्मा ने अपने लेखों और प्रकाशनों में, एएसआई की रिपोर्ट का खंडन करते हुए किसी भी मंदिर के अस्तित्व होने से इनकार किया। फिर जब अदालत ने पूछताछ कि तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे राम मंदिर साइट पर कभी नहीं गई थी और उन्होंने जो कहा वह केवल उनकी ‘राय‘ थी।

दिसंबर 1990 – जनवरी 1991 में हिंदू पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रमाणों के साथ जब विद्वानों की बहस में यह तथ्य साबित हो गया कि बाबरी मस्जिद वास्तव में एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाई गई थी, तब सैयद शहाबुद्दीन और मुस्लिम पक्ष अवाक रह गए और सभी ने यू-टर्न ले लिया।

बाद में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने 2003 में अदालत के आदेशों पर खुदाई की थी। खुदाई करने वाले मजदूरों में कई मुस्लिम भी शामिल थे। इन मुस्लिमों को जानबूझकर मुस्लिम पक्ष की मांग के अनुसार काम पर रखा गया था। वहीं, एएसआई की रिपोर्ट के 20 लेखकों में से 4 लेखक भी मुस्लिम थे। उन्हें भी मुस्लिम पक्ष की मांग पर रखा गया था। उन्होंने भी इस बात को स्वीकार किया था कि वहां खुदाई के दौरान मंदिर के अवशेष पाए गए थे।

एएसआई की खुदाई में मुस्लिम मजदूरों और मुस्लिम लेखकों को शामिल किए जाने और मंदिर बनने के साक्ष्य मिलने और उनकी सभी मांगों के बावजूद, मुस्लिम पक्ष ने इस सच्चाई को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि इस स्थान पर मंदिर पहले से मौजूद था और उन्होंने अपने दावे को वापस नहीं लिया।

1989 के बाद सभी मार्क्सवादियों और मुसलमानों ने दावा किया था कि उस जमीन पर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। बाद में जब एक संरचना (स्पष्ट रूप से मंदिर) का अस्तित्व सिद्ध हुआ, तो उनमें से कुछ ने दावा करना शुरू कर दिया कि पहले से मौजूद संरचना बौद्ध सम्प्रदाय की थी, न कि किसी मंदिर की! वहीं सुप्रिया वर्मा जैसों ने यह भी कह दिया था कि ये संरचनाएँ पुरानी मस्जिदों की ही थीं।

फिर कथित तौर पर ‘खाली जमीन पर बनी बाबरी’ के उनके दावे का क्या मतलब हुआ? संक्षेप में, दुनिया में मौजूद कोई भी सबूत इन लोगों को दे दिया जाए, तब भी वे कभी यह स्वीकार नहीं करेंगे कि बाबरी मस्जिद का निर्माण उस स्थल पर एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया गया था। जिसका सबूत एएसआई की रिपोर्ट के लेखकों सहित, विशिष्ट साहित्यिक साक्ष्य, निर्णायक पुरातात्विक साक्ष्य और मुस्लिम सहित मजदूरों ने खुदाई के बाद दिए हैं।

डॉ कोनराड एल्स्ट ने अपनी पुस्तक ‘बीजेपी विस-अ-विस हिन्दू रेसर्जेंस’ (BJP vis-à-vis Hindu Resurgence) (वॉयस ऑफ इंडिया, 1997) में भी लिखा है :

आप इसका अनुमान उनके पॉलिश की हुई कॉन्वेंट-स्कूल की अंग्रेजी, उनकी फैशनेबल शब्दावली या उनके दूसरों से ऊपर होने के भाव से नहीं लगा सकते हैं, लेकिन रोमिला थापर, इरफ़ान हबीब या ज्ञानेंद्र पांडे [हमारी टिप्पणी: भारत में मार्क्सवादी इतिहासकारों ने इस्लामी शासकों के अपराधों को नकारने में आनाकानी की है, और इस बात से इनकार किया है कि विवादित ढाँचे के स्थान पर एक मंदिर मौजूद था] जैसे शख्स हमेशा हिंदुओं के विरोध में रहे हैं। अयोध्या विध्वंस के बाद मुस्लिमों द्वारा की गई हिंसा को विशेषज्ञों द्वारा समाज से छिपाया गया था।

इन्हीं लोगों ने इस बात से इनकार किया कि विवादित इमारत [हमारी टिप्पणी: बाबरी मस्जिद] हिंसक बुतशिकनों के इतिहास का हिस्सा था [हमारी टिप्पणी: अर्थात एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया था] और आरोप लगाया कि हिंदुओं ने ‘पाक मस्जिद’ पर हमला कर मनगढ़ंत इतिहास रचा है।

इनके दुष्प्रचार ने मुस्लिम आतंकवादियों को बदला लेने, हिंदुओं के खिलाफ अभियान चलाने और हिंसा के कृत्यों के लिए सभ्य मुसलमानों को भड़काने का काम किया है। अगर इन लोगों ने अयोध्या में इस्लाम द्वारा किए गए अपराध के बारे में बताया होता, या मुस्लिमों ने सच्चाई को जाना होता, तो वे कभी हिंसा नहीं करते।

वहीं, अब एक और खतरा हमारे सामने है कि छद्म धर्मनिरपेक्षता, बाबरी विध्वंस का विरोध और अयोध्या राममंदिर भूमिपूजन के विरोध में पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं पर अधिक हमले किए जाएँगे। जैसा कि अतीत में वे भारत में कर चुके हैं। इसलिए 6 दिसंबर 1992 में बाबरी विध्वंस से पहले और बाद में, बांग्लादेश, पाकिस्तान और कश्मीर में हिंदू घरों और 5000 मंदिरों को इस्लामिक विचारधारा के समर्थकों द्वारा ध्वस्त की गई घटनाओं को उजागर करने की तत्काल आवश्यकता है।

बांग्लादेश में हिंदुओं की लूटपाट और हत्याएँ, मुंबई, चेन्नई, अन्य स्थानों पर बम विस्फोट जैसी घटनाओं पर संज्ञान लेना चाहिए। एक तथ्य यह भी है कि अयोध्या में अलग जगह पर एक मस्जिद का फिर से निर्माण होने जा रहा है।

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के अवैध ढाँचे को ढहाने से पहले लगभग 100 मंदिर कश्मीर में और बांग्लादेश में 400 मंदिर ध्वस्त किए गए थे। बांग्लादेश में वर्ष 1989 में अयोध्या आंदोलन को देखते हुए लगभग 400 मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। जिसमें 9 नवंबर 1989 के शिलान्यास के बाद अक्टूबर-नवंबर 1989 में लगभग 200 मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। हजारों हिंदू घरों और व्यवसायों को नष्ट कर दिया गया था। हिन्दुओं की कई दुकानों को लूट लिया गया और जला दिया गया था।

वहीं 30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 को कारसेवा के संदर्भ में बांग्लादेश में 1990 में कम से कम 45 मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। जिसमें ढाका जिले में कम से कम 34 और चटगाँव जिले में कम से कम 11 मंदिर थे। इस हिंसा में बांग्लादेश में हिंदू दुकानों और सैकड़ों घर भी (550 से ज्यादा) लूटे गए या जला दिए गए थे।

चूँकि ये हमले बांग्लादेश में इतने बड़े पैमाने पर वर्ष 1989 और 1990 में हुए थे, इसलिए यह पूरी तरह से निश्चित है कि इस तरह की हिंदू-विरोधी हिंसा पाकिस्तान में भी हुई होगी। हालाँकि, लेखक इस बात का पता नहीं लगा पाए कि 1989 या 1990 में पाकिस्तान में ध्वस्त किए गए मंदिरों और हिंदुओं पर किए गए हमलों का सही आँकड़ा क्या था। उन्होंने एक रिपोर्ट में पाया कि पाकिस्तान में नवंबर 1990 में कम से कम एक हिंदू की मौत हो गई थी और 4 मंदिर क्षतिग्रस्त हो गए थे।

वहीं 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, यह बताया गया था कि पाकिस्तान में कम से कम 245 मंदिरों को तोड़ दिया गया था, और 3600 मंदिरों को बांग्लादेश में ध्वस्त कर दिया गया था। 1992 में बाबरी मामले के बाद बांग्लादेश में हुए हिंदुओं के नरसंहार में, 28000 गैर-मुस्लिम घरों को नष्ट कर दिया गया था। इसके अलावा 2,700 हिंदू व्यवसाय और 3,600 मंदिर और अन्य पूजा स्थल ध्वस्त कर दिए गए थे।

बांग्लादेश करेंसी के अनुसार, कुल नुकसान का अनुमान 2 बिलियन (200 करोड़) लगाया गया था। कश्मीर में सौ से अधिक मंदिरों को भी ध्वस्त कर दिया गया था। साथ ही, भारत के कुछ अन्य स्थानों, जैसे – भोपाल, असम में भी मंदिरों को तोड़ दिया गया।

1990 से 95% पाकिस्तान के सभी हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया या उन्हें मस्जिद या फिर किसी अन्य स्वरूप में तब्दील कर दिया गया। ऑल पाकिस्तान हिंदू राइट्स मूवमेंट (APHRM) की 2014 की सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के बाद देश में कुल 428 अल्पसंख्यक पूजा स्थलों में से, 408 मंदिरों को खिलौने की दुकान, रेस्तराँ, सरकारी कार्यालयों और स्कूलों में परिवर्तित कर दिया गया है। वहां अब केवल 20 हिंदू मंदिर ही शेष हैं।

यह संभव है कि 6 दिसंबर 1992 के बाद बांग्लादेश की तुलना में पाकिस्तान में कम संख्या में मंदिरों पर हमला किया गया था। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि पाकिस्तान अधिक सहिष्णु था, बल्कि इसका कारण यह था कि 1992 तक वहां मौजूद मंदिरों की संख्या कम थी। 1947 में पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद ही हजारों मंदिरों को पहले ही उस समय तक नष्ट कर दिया गया था।

सिखों के धर्मस्थल को भी पाकिस्तान में तोड़ा गया

बता दें कि सिर्फ हिंदू ही नहीं, पाकिस्तान द्वारा सिखों के भी कई धार्मिक स्थलों को नष्ट कर दिया गया। उनमें से सबसे प्रमुख सिख धार्मिक स्थल गुरुद्वारा गली था, जिसे ऐबोटाबाद (Abbottabad) में एक कपड़े की दुकान में परिवर्तित कर दिया गया है। पाकिस्तान में लगभग 171 गुरुद्वारे या तो नष्ट हो गए या फिर ढहने के करीब हैं। वहीं, कुछ गुरुद्वारों को मस्जिदों (या स्कूलों, पुलिस स्टेशनों, आदि) में भी बदल दिया गया, या फिर उन्हें घरों के निर्माण के लिए ध्वस्त कर दिया गया।

जम्मू और कश्मीर सरकार ने आधिकारिक तौर पर 2012 में कहा था कि 1990 के दशक की शुरुआत से 20 वर्षों में कश्मीर में 208 मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। लेकिन इसकी सही संख्या कहीं अधिक हो सकती है। कश्मीरी पंडित संगठन कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) के अनुसार, नष्ट मंदिरों की वास्तविक संख्या लगभग 550 है।

जम्मू और कश्मीर की सरकार ने स्वीकार किया कि उसकी ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में सबसे ज्यादा मंदिरों को ध्वस्त किया गया है। जहां नष्ट किए गए मंदिरों की संख्या 57 है। हालाँकि, इस बर्बरता में कोई भी मस्जिद नष्ट नहीं हुई। इनमें से कई मंदिर अब मस्जिदों में परिवर्तित हो गए हैं।

गौरतलब है कि इस लेख में बाबरी विध्वंस के बाद सिर्फ 1 दिन में पाकिस्तान में हुई घटनाओं का ही जिक्र है। पाकिस्तानियों ने 30 हिंदू मंदिरों पर हमला किया। उसके बाद भी बहुत कुछ घटित हुआ। मंदिरों पर हमला होने पर पुलिसबलों ने हस्तक्षेप नहीं किया, न ही तब कार्रवाई की, जब एयर इंडिया के दफ्तर पर भीड़ ने धावा बोल दिया था। सड़कों पर फर्नीचर फेंक कर तोड़ दिया गया था। साथ ही, ऑफिस में भी आग लगा दी गई थी।

15 दिसंबर 1992 को ‘द डलास मॉर्निंग न्यूज़’ की रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 24 लोग (ज्यादातर हिंदू) पाकिस्तान में मारे गए और कम से कम 100 मंदिरों पर मुसलमानों ने हमला किया। पाकिस्तानी पत्रकार रीमा अब्बासी और फ़ोटोग्राफर मदीहा ऐज़ाज़ ने पूरे पाकिस्तान की यात्रा कर पाकिस्तान में मौजूद हिंदू मंदिरों को लेकर डॉक्यूमेंट तैयार किया था। जिस पर रीमा ने ‘हिस्टोरिक टेम्पल्स इन पाकिस्तान: ए कॉल टू कॉन्शियस’ नामक एक पुस्तक लिखी।

रीमा ने लिखा कि पाकिस्तान में हिंसा के दौरान लगभग 1000 हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाया गया था, जो कि 1990 के दशक की शुरुआत में बाबरी मस्जिद के विनाश के बाद ध्वस्त हुए थे। वहीं एक वेबसाइट द्वारा भी 1,000 मंदिरों पर हमले के बारे में बताया गया है। यह जानकारी पाकिस्तान के हिंदुओं के संबंध में दी गई है।

बांग्लादेश में मुस्लिमों द्वारा मंदिरों को नष्ट किए जाने और हिन्दू-विरोधी हिंसा पर 31 अक्टूबर 1990 को एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट पढ़ें :-

“गवाहों ने कहा, चटगाँव, बांग्लादेश में मुस्लिमों के एक गैंग ने, जिसमें कई चाकू और हथियारों से लैस हैं, उन लोगों ने हिंदू मंदिरों पर हमला किया, मूर्तियों को तोड़ा और भारत में हुए विवाद के जवाब में सैकड़ों घरों में आग लगा दी। भारत में हिंदुओं द्वारा एक मस्जिद पर कब्जा करने और इसे अयोध्या में एक मंदिर से बदलने की कोशिश की खबर सुनकर गुस्साए लोग मंगलवार देर रात सड़कों पर उतर गए। इस विवाद में भारत के 150 से अधिक लोग मारे गए हैं। लगभग 100 लोगों की भीड़ ने आज सुबह एक हिंदू मंदिर में हमला कर दिया। अधिकारियों और गवाहों के अनुसार, मंगलवार से अब तक कम से कम 11 मंदिरों में तोड़फोड़ की गई है। चटगाँव के सबसे बड़े मंदिर स्थल कैबलाधाम में सबसे ज्यादा बबर्बरतापूर्ण हमला किया गया। प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि चाकू और लोहे की छड़ों के साथ 2,000 लोगों ने आधी रात को मंदिर के आसपास एक आवासीय जिले में तोड़फोड़ की और कम से कम 300 घरों को जला दिया। पुलिस ने इलाके में आग लगाने वाली हिंसक एक भीड़ को हटाने के लिए हवा में फायरिंग की। 500 विस्थापितों में से एक सुशील गोश (जिन्होंने मंदिर के ऊपर एक पहाड़ी पर एक शिविर स्थापित किया था) ने कहा कि इस दौरान चार लोग गायब हो गए थे। पुलिस ने रिएजुद्दीन बाजार और चटगाँव मेडिकल कॉलेज में भी फायरिंग की। जब 200 से अधिक लोग मंदिरों को उड़ाने और हिंदू स्वामित्व वाले दुकानों को जलाने की कोशिश कर रहे थे। एक समूह ने लगभग 50 झोपड़पट्टी वाले घरों को नष्ट कर दिया, जो निम्न-जाति के हिंदुओं द्वारा बसाए गए थे। जिनमें मुख्य रूप से मछुआरे थे। एक अन्य समूह ने एक हिंदू के स्वामित्व वाले गैरेज पर हमला किया और पाँच वाहनों को नुकसान पहुँचया। पुलिस ने कहा कि सेंट्रल चौकबाजार जिले में लगभग 1,500 हिंदू मछुआरे रात के हमले के दौरान अपने घरों से भाग गए, लेकिन सुबह जब स्थिति को नियंत्रण में लाया गया तो वे वापस लौट आए थे।”

यदि मीडिया ने बार-बार हिंदुओं पर किए गए हमलों (24 लोगों की हत्या, ज्यादातर हिंदू, पाकिस्तान में), बाबरी विध्वंस के पहले और बाद में हजारों मंदिरों को नष्ट करने, हजारों हिंदू घरों को नष्ट करने, 6 दिसंबर 1992 के बाद 200 करोड़ की हिंदुओं की संपत्ति को हुए नुकसान का उल्लेख किया होता, तो यह बहुत संभव है कि मार्च 1993 के मुंबई और कोलकाता के बम विस्फोटों और आतंकवादी कृत्यों से बचा जा सकता था।

पाकिस्तान, बांग्लादेश और कश्मीर में हिंदू विरोधी हिंसा के बाद, मुंबई में 1993 के घातक बम धमाके हुए, जिसमें 257 लोग मारे गए, 1400 घायल हुए और 100 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति का नुकसान हुआ। वहीं, कोलकाता में भी मुस्लिमों द्वारा किए बम विस्फोट में 69 लोगों की जानें गईं थीं।

इसके बाद अगस्त 1993 में चेन्नई के आरएसएस कार्यालय में मुस्लिम आतंकियों द्वारा बम विस्फोट किया गया। जिसमें 6 उच्च-स्तरीय प्रचारक सहित 11 लोग मारे गए थे। फिर 6 दिसंबर 1993 को विभिन्न ट्रेनों में विस्फोट हुए। 6 दिसंबर 1997 को तमिलनाडु में ट्रेनों में फिर से विस्फोट हुए जिसमें 10 लोग मारे गए और 70 घायल हो गए थे।

लेकिन भारतीय मीडिया ने मंदिरों को ध्वस्त करने, साथ ही साथ भारत में इस्लामिक कट्टरपंथी द्वारा किए गए इन बम विस्फोटों (1993 के मुंबई विस्फोटों को छोड़कर) को प्राथमिकता देना उचित नहीं समझा और अपना ध्यान सिर्फ बाबरी मस्जिद पर ही केंद्रित किया। इस तथ्य को भी अनदेखा किया कि यह मंदिर के विध्वंस के बाद बनाया गया था। जो कि हिंदुओं (भगवान राम की जन्मभूमि) के लिए बहुत पवित्र स्थल है। उल्लेखनीय है कि मंदिर को ध्वस्त करने से पहले वर्ष 1528 में बाबर के सैनिकों द्वारा उस स्थान पर सैकड़ों हिंदुओं का वध किया गया था।

इसके अलावा, यह भी स्पष्ट है कि पवित्र स्थल (अयोध्या) हिंदुओं का है। चाहे कोई धर्म हो, पश्चिमी या पूर्वी एशियाई या मुसलमान ही क्यों न हो, कभी भी अपने पवित्र स्थलों को दूसरों को देने के लिए सहमत नहीं होगा। अयोध्या में दर्जनों मस्जिदें हैं। मंदिरों को भूल जाओ, मक्का और मदीना में तो गैर-मुस्लिमों की प्रवेश तक की अनुमति भी नहीं है।

अगर देखा जाए, तो हमने हजारों मंदिरों के विध्वंस के ऐतिहासिक संदर्भ पर कभी विचार तक नहीं किया है। जिनमें सोमनाथ, पुरी आदि पवित्र मंदिरों के साथ ही मध्यकालीन भारत में लाखों हिंदुओं का किया गया वध भी शामिल है। वहीं, 6 दिसंबर 1992 के पहले और बाद के इस्लामिक आक्रान्ताओं की क्रूरता को देखा जाए, तो अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण इस्लामिक विचारधारा के कृत्यों के लिए एक बहुत ही छोटा प्रायश्चित है।

इन घटनाओं में 1990 में अयोध्या कारसेवकों के बलिदान को भी भूला नहीं जा सकता है। साथ ही, 1992 में अयोध्या आए कारसेवक और 27 फरवरी 2002 के गोधरा नरसंहार में अपनी जान गँवाने वाले कारसेवकों पर किए गए अत्याचार को भी भुलाया नहीं जा सकता। अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण इस्लामिक आक्रांताओं की बर्बरता और हैवानियत के सामने एक बहुत ही छोटा सा उपहार नजर आता है।

कोनराड एल्स्ट के अनुसार, अगर वास्तव में देखा जाए तो मुस्लिम सच्चाई जानते तो बाबरी मस्जिद के विध्वंश में आक्रोशित होने जैसा कुछ भी नहीं था। यह सिर्फ मुसलमानों की घुसपैठ थी। लेकिन यहां की मीडिया ने मुसलमानों को भड़काने का काम किया है। इसके अलावा, उनके द्वारा की गई गलत और भ्रामक रिपोर्टिंग के चलते मुस्लिमों द्वारा किए गए कृत्यों के लिए भी वही लोग दोषी हैं।

ऐसा नहीं है कि आक्रोश की कोई भावना ही नहीं होती। क्योंकि आतंकी हमला करने वाले और लोगों को मारने वाले आतंकवादी यही सोचते हैं कि सभी गैर-मुसलमानों को मारना उनका कर्तव्य है। और विशेष रूप से उनका यह मानना ​​है कि मूर्तियों की पूजा और एक से अधिक भगवान होना यानी, बहुदेववाद अक्षम्य पाप है। इस विचारधारा के अनुसार, जो हिंदू मूर्तिपूजक और बहुदेववादी हैं, उनका बुरी तरह से दमन कर दिया जाना चाहिए।

पूर्व IAS अधिकारी भूरे लाल, जिन्होंने सेना में विजिलेंस कमीशन में भी सेवा की, ने अपनी पुस्तक ‘आईएसआई का राक्षसी चेहरा’ (1999 के कारगिल युद्ध के ठीक बाद वर्ष 2000 में प्रकाशित) के पेज क्रमांक 44-45 में लिखा है:

आईएसआई निम्न बातों का समर्थन करता है :

5 – घुसपैठ और बड़े पैमाने पर मीडिया पर कब्जा करने और इस्लाम-समर्थक समाचार पत्रों की पहचान कर उन्हें पाकिस्तान-समर्थक और इस्लाम-समर्थक लेख लिखने को कहना।

6 – मीडिया के माध्यम से दुष्प्रचार फैलाना, जिसका शिकार भारतीय मुसलमान होते हैं।

7 – बांग्लादेशी मुस्लिम वोट बैंक पर राज करने वाले भारतीय राजनेताओं को चिन्हित करना, ताकि उन्हें पुलिस और अन्य प्रशासनिक कार्रवाई से बचाया जा सके।

12 – एजेंसी ने भारत को बदनाम करने के लिए एक ‘डिसइंफोर्मेशन’ सेल स्थापित किया और भारत को बदनाम करने के लिए कहानियाँ तैयार कीं। आईएसआई समाचारों में हेरफेर करने के लिए फंड भी देता है।

15 – आईएसआई ने हजारों एजेंटों को नौकरी पर रखा है, जिनमें हर दूसरे किसी न किसी अखबार के रिपोर्टर के तौर पर काम कर रहे हैं।

तो बार-बार मुस्लिमों को पीड़ित और प्रताड़ित के रूप में दर्शाने का काम कौन करते हैं? मीडिया उनकी कहानियों को घुमा-फिरा कर दिखाकर उन्हें मजबूर होने का एहसास कराते हैं। यह सीमा के पार बैठे हमारे दुश्मन और देश मे रह रहे इस्लामी कट्टरपंथियों की ही मदद करता है।

हमें अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि मुद्दे और बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर पीड़ितों के रूप में चित्रित किए जा रहे मुसलमानों और पाकिस्तान, बांग्लादेश, कश्मीर के मामलों में की जा रही हिंसा के साथ-साथ अन्य सभी हिंदू-विरोधी कृत्यों में मुसलमानों के अपराध को उजागर करते हुए उन्हें बेनकाब करना होगा।

1993 के मुंबई बम धमाकों, 1993 के कोलकाता विस्फोटों, 1993 के RSS चेन्नई कार्यालय विस्फोटों, 1997 के तमिलनाडु ट्रेन विस्फोटों आदि मामलों पर मुस्लिमों को उनके अपराधों की याद दिलाते रहनी होगी। यह इसलिए याद दिलाते रहा जाना चाहिए, ताकि बाबरी के विध्वंश को श्रीराम जन्मभूमि के साथ सदियों तक हुए अन्याय के सामने कहीं बड़ा दिखाने के उनके कारनामे सफल ना हो सकें।

संदर्भ : OpIndia

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​

JOIN