विश्व में बढ रहा है इस्लामिक आतंकवाद !

आतंकियों ने कहा मजहब बताओ, आतंकियों ने कहा कुरान कि आयतें सुनाओ, आतंकियों ने कहा क्या तुम मुस्लिम हो, तो ठीक है यहां से जाओ। लेकिन जो मुस्लिम नहीं थे उनका क्या? आतंकियों ने ऐसे लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी। ये घटना बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आज से चार साल पहले अंजाम दिया। आतंकियों ने ये जानने के लिए कि कत्ल उन्हें किसका करना है इसके लिए बंधकों से पूछा कि तुम्हारा धर्म क्या है। हम एक बार फिर से कह दें कि हमारा ये मानना है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता और आतंक का कोई धर्म हो भी नहीं सकता। लेकिन जब धर्म पूछकर मौत या जिंदगी दी जाए तो कैसे कहें कि आतंक का धर्म नहीं होता।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कट्टर इस्लामिक आतंकवाद से निपटने की तैयारी के संकेत दे दिये हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा कि आतंकवाद पर भारत और अमेरिका साथ-साथ हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने मोटेरा स्टेडियम से दो टूक शब्दों में ये कह दिया कि “भारत और अमेरिका दोनों इस्लामिक आतंकवाद के खतरे से अपने लोगों को बचाने के लिए एकजुट हैं। दोनों देशों ने आतंकवाद के दर्द को झेला है और आतंकवाद से प्रभावित हुए हैं। ऐसे में आज हम बात इस्लामिक आतंकवाद की करेंगे।

ये तो साफ है कि आतंकवाद अब किसी एक देश या प्रांत की बात नहीं रह गया है। यह अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठजोड़ कर चुका है और इसके समर्थन में कई मुस्लिम राष्ट्र और वामपंथी ताकतें हैं। सऊदी, सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, कुर्दिस्तान, सूडान, यमन, लेबनान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया और तुर्की जैसे इस्लामिक मुल्क इनकी पहानगाह रहे हैं।

आपने अक्सर लोगों को ये कहते सुना होगा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। आतंकवादी की कोई राष्ट्रीयता नहीं होती और उसका कोई देश नहीं होता। आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी होता है। ये बात हम भी मानते हैं और इस देश में ज्यादातर लोग इस बात का समर्थन करते होंगे। लेकिन आज की तारीख में ये एक शाश्वत सत्य है कि कुछ लोग इस्लाम का दुरुपयोग करके पूरी दुनिया में ये साबित करने पर तुले हैं कि आतंकवाद का धर्म होता है। इन लोगों को आप आतंकवादी कह सकते हैं कट्टरपंथी भी कह सकते हैं। धर्म के नाम पर जहर फैलाने वाला सामाजिक वायरस कह सकते हैं। नाम कुछ भी हो काम और मकसद सिर्फ एक ही है वो है इस्लाम के नाम पर मासूमों की बलि लेना और इन्हीं लोगों की वजह से फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने साल 2016 में इस्लामिक आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रयोग भी किया। पूरी दुनिया में आतंकवाद नामक संक्रामक बीमारी के प्रसार के बाद से ही बार-बार आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा जाता रहा है। लेकिन हमेशा से इस राय की तीखी आलोचना होती रही है।

अब आपको बताते हैं कि दुनिया में कहां-कहां आतंकवादियों ने अपने पैर पसारे है…

इसराइल और फिलिस्तीन के बीच सदियों से गाजा और यरुशलम पर कब्जे को लेकर लड़ाई हो या रूस के दक्षिणी हिस्से में स्थित मुस्लिम बहुल क्षेत्र चेचन्या गणराज्य हो जहां स्थानीय अलगाववादियों और रूसी सैनिकों के बीच बरसों से जारी संघर्ष ने चेचन्या को बर्बाद कर दिया। चीन का प्रांत शिनजियांग एक मुस्लिम बहुल प्रांत है। जबसे यह मुस्लिम बहुल हुआ है तभी से वहां के बौद्धों, तिब्बतियों आदि अल्पसंख्‍यकों का जीना मुश्किल हो गया है। अब बात करते हैं भारत के कश्मीर की जहां के हालात पहले ऐसे नहीं थे। 1990 के पहले तक आम कश्मीरी खुद को भारतीय मानता था। हालांकि कश्मीर विभाजन की टीस तो सभी में थी लेकिन कट्टरता और अलगाववाद इस कदर नहीं था, जैसा कि आज देखने को मिलता है। इसके पीछे कारण है पाकिस्तान और भारतीय अलगाववादी द्वारा कश्मीरियों को भड़काकर आजादी की मांग करवाना। श्रीलंका, म्यांमार, कंबोडिया और थाईलैंड वैसे तो बौद्ध राष्ट्र हैं लेकिन यहां के मुस्लिम बहुल क्षे‍त्र में भी तनाव बढ़ने लगा है। श्रीलंका में कटनकुड़ी नगर मुस्लिम बहुल बन चुका है तो म्यांमार का अराकान प्रांत बांग्लादेश के रोहिंग्या मुस्लिमों से आबाद है। नाइजीरिया में ईसाइयों की जनसंख्‍या 49.3 प्रतिशत और मुस्लिमों की जनसंख्या 48.8 प्रतिशत है। अन्य धर्म के लोगों की संख्‍या 1.9 प्रतिशत है। इसी पृष्ठभूमि में कट्टरपंथी मुस्लिम धर्मगुरु मोहम्मद यूसुफ ने 2002 में बोको हराम का गठन किया।

पिछले 18 साल में जेहादी आतंकी हमले – 31, 221 (11 सितंबर 2001 से 21 अप्रैल 2019)

सबसे ज्यादा खतरनाक जेहादी आतंकी संगठन

  • ISIS
    (सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान में सक्रिय)
  • अलकायदा
    (अफगानिस्तान, पाकिस्तान में सक्रिय)
  • बोको हराम
    (नाइजीरिया में सक्रिय)

पाकिस्तान में सक्रिय जेहादी आतंकी संगठन

  • जमात उद दावा
  • जैश ए मोहम्मद
  • हिजबुल मुजाहिद्दीन

18 साल में जिहादी आतंक से मौते – 1, 46, 811 (11 सितंबर 2001 से 21 अप्रैल 2019)

भारत में ‘आतंक का कोई धर्म नहीं’ कहने वाले लोगों ने आतंक को हिन्दुओं से जोड़ने की पुरजोर कोशिश की। कुछ बुद्धिजीवियों ने किसी धर्म विशेष को थप्पड़ मारना, उससे ‘जय श्री राम’ कहलवाने को भी आतंक की परिभाषा में शामिल करने की कोशिश की। लेकिन शायद इन कथित बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को आतंक का ए, बी, सी भी ज्ञात नहीं है। आतंक क्या है ये भी उनके लिए हम बता देते हैं। आतंक है एक धर्म विशेष द्वारा कश्मीर में ली गई 42,000 जानें और निर्वासित हुए लाखों कश्मीरी पंडित, आतंक है संकटमोचन मंदिर में फटा बम, आतंक है सरोजिनी नगर मार्केट का ब्लास्ट, आतंक है मुंबई लोकल ट्रेनों में हुए कई धमाके, आतंक मुंबई शहर में 2008 में विकराल रूप लेकर आया था, आतंक था संसद भवन में आरडीएक्स से भरी कार लेकर घुसना और बहादुर जवानों को मार देना, आतंक था उरी, पठानकोट, पुलवामा, आतंक है कोयम्बटूर की बॉम्बिंग, आतंक है रघुनाथ मंदिर पर हमला, मुंबई के बसों पर किए गए धमाके, आतंक है अक्षरधाम मंदिर को निशाना बनाना, आतंक है दिल्ली के सीरियल ब्लास्ट्स, आतंक है 2008 में हुए 11 इस्लामी कट्टरपंथी आतंकियों द्वारा किए गए हमले, आतंक है जयपुर के धमाके, गिनते-गिनते थक जाओगे।

भारत में 1970 से अब तक लगभग 20,000 मौत और 30,000 घायलों में से सबसे बड़ा प्रतिशत इस्लामी आतंक के नाम दर्ज है। आतंकवाद के पीछे, लगभग हर बार, एक ही मजहबी परचम हो, एक ही नारा हो, और एक ही तरह के लोग हों, जो एक ही मजहब के नाम पर ऐसा करते हों तो फिर ऐसे में उसे सिर्फ आतंकवाद कहना समस्या को और भयावह ही बनाता है। किसी भी रोग को दूर करने के लिए पहले उसके कारणों का पहचान किया जाना जरूरी है। जैसे कि डायबटीज है और आप मीठा ज्यादा खाते हैं, लेकिन आपका डॉक्टर यह कहे कि इन्हें एक रोग है, हम इलाज करेंगे। रोग का कारण मीठा है, और आप उसे पूरी तरह से छोड़ते हुए, निकल लेंगे, तो उसका इलाज नहीं हो पाएगा। रोगी को भी नहीं पता कि मीठा खाने से हो रहा है, घरवालों को भी नहीं पता, तो फिर उसके भोजन में रसगुल्ले देते रहिए और सोचते रहिए कि डॉक्टर की दवाई काम करती रहेगी। इस्लामी आतंकवाद के साथ यही हो रहा है। जब तक कट्टरपंथी शिक्षा, बच्चों और किशोरों के जेहन में एक मज़हबी सर्वश्रेष्ठता का झूठा दम्भ, हर गैर-मजहबी व्यक्ति को दुश्मन मानने की जिद, मजहब के नाम पर कत्लेआम को जन्नत जाने का मार्ग बताना और इस तरह की कट्टरता बंद नहीं की जाएगी तो दुनिया इसी प्रकार जलती रहेगी।

स्त्रोत : प्रभा साक्षी

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