नंदुरबार (महाराष्ट्र) : पुलिस प्रशासनद्वारा डॉ. नरेंद्र पाटिल के विरोध में पूर्वाग्रह से निकाला गया अवैध निर्वासन आदेश न्यायालयद्वारा निरस्त !

श्री गणेशोत्सव के उपलक्ष्य में बुलाई गई शांतता समिति की बैठक में अवैध भोंपुआें के विरोध में कार्रवाई के संदर्भ में पुलिस अधिकारियों को पूछे जाने का प्रकरण

  • न्यायालय ने उपमंडल दंडाधिकारी को फटकार लगाई !

  • डॉ. पाटिल ने की, अवैध निर्वासन आदेश निकालनेवाले पुलिस अधिकारियों के विरोध में कार्रवाई की मांग

प्रतिशोध की भावना से हिन्दुत्वनिष्ठों पर निर्वासन आदेश निकालनेवाले पुलिस अधिकारी सामान्य लोगों का किस प्रकार से उत्पीडन करते होंगे, इसपर विचार न करें तो ही अच्छा ! पूरी पुलिस यंत्रणा को कलंकित करनेवाले ऐसे पुलिस अधिकारियों के विरोध में कार्रवाई हो; इसके लिए उनके वरिष्ठों के पास परिवाद करें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात

शांतता समिति की बैठक में, समिति के डॉ. नरेंद्र पाटील प्रबोधन करते हुए

नंदुरबार : नंदुरबार में बुलाई गई शांतता समिति की बैठक में उपस्थित डॉ. नरेंद्र पाटिल ने पुलिस प्रशासन से यह प्रश्‍न किया था कि आप जिस प्रकार से न्यायालय के आदेश के अनुसार गणेशोत्सव मंडलों के विरोध में कार्रवाई की चेतावनी दे रहे हैं, उसी प्रकार से क्या आप प्रातः ६ बजने से पहले बजनेवाले अवैध भोंपुआें के विरोध में कार्रवाई करेंगे ? इसी कारण पुलिस अधिकारियों ने उनके प्रति प्रतिशोध की भावना रखकर पुलिस प्रशासन ने उपमंडल दंडाधिकारी के माध्यम से डॉ. पाटिल के विरोध में एकतरफा कार्रवाई करते हुए उन्हें निर्वासन आदेश का नोटिस दिया !

इस अन्यायपूर्ण कार्रवाई के विरोध में डॉ. पाटिलसहित ३ लोगों ने जिला सत्र न्यायालय में चुनौती दी। न्यायालय ने उन्हें इस प्रकार से नोटिस देने के प्रकरण में उपमंडलीय दंडाधिकारी को फटकार लगाकर इस अवैध आदेश को निरस्त कर दिया। अधिवक्ता श्री. अनिल लोढा एवं अधिवक्ता श्री. देवेंद्र मराठे ने डॉ. पाटिल एवं अन्य लोगों का पक्ष रखा। डॉ. नरेंद्र पाटिल ने इस संदर्भ में विज्ञप्ति निकाल कर संबंधित पुलिस अधिकारियों के विरोध में कठोर कार्रवाई की मांग की है !

डॉ. पाटिल ने इस विज्ञप्ति में कहा है कि,

१. पुलिस प्रशासन ने १५ सितंबर को मुझे निर्वासन आदेश का नोटिस देकर १६ से २३ सितंबर की कालावधि में नंदुरबार में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगाया। इस आदेश की कार्रवाई करते समय मेरा पक्ष न सुन कर उपमंडलीय दंडाधिकारी ने एकतरफा कार्रवाई की !

२. इस कार्रवाई के समय पुलिस प्रशासन की ओर से डॉ. नरेंद्र पाटिल एवं श्री. मयुर चौधरी के विरोध में अनेक मौखिक परिवाद हैं। इससे पहले भी आप दोनों के विरोध में निर्वासन आदेश निकाला गया था; परंतु आप के आचरण में बदलाव नहीं आया। अभीतक आपने अच्छा आचरण नहीं किया। आप समाज में भय उत्पन्न करते हैं। आपके भय के कारण लोग आपके विरोध में परिवाद प्रविष्ट नहीं करते, ऐसे झूठे कारण दिए गए ! (ऐसे झूठे कारण देकर हिन्दुत्वनिष्ठों को फंसाने का प्रयास करनेवाला पुलिस प्रशासन समाज में कानून एवं सुरक्षा कैसे रख पाएगा ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

३. इससे भी आगे जाकर पुलिस प्रशासन ने ठीक गणेशोत्सव के समय में ही विज्ञप्ति निकाल कर अन्य अपराधियों की सूची में मेरे नाम सहित मयुर चौधरी का नाम भी अंतर्भूत कर हमें अपकीर्त किया !

४. इस संदर्भ में न्यायालय ने २१ सितंबर को इस आदेश को निरस्त करते हुए यह प्रश्‍न उपस्थित किया कि प्रशासन की ओर से निर्वासन आदेश के लिए जो कारण दिए गए हैं, वो सभी कारण पिछली बार दिए गए नोटिस में भी अंतर्भूत थे। यदि एक बार इन्हीं कारणों के आधार पर निर्वासन आदेश निरस्त हुआ हो, तो पुनः वहीं कारण देकर निर्वासन आदेश कैसे दिया जा सकता है ?

५. मैने न्यायालय को इस बात से अवगत कराया कि पिछली बार उपमंडलीय दंडाधिकारी ने स्वयं ही इस नोटिस को निरस्त किया था। इस बार मेरेद्वारा ऐसा कोई अपराध अथवा कृत्य नहीं हुआ, जिससे कि सामाजिक शांतता भंग हो ! अतः मुझे मेरा पक्ष रखने का अवसर भी न देकर पुलिस प्रशासन ने केवल प्रतिशोध की भावना से ही मेरे विरोध में कार्रवाई की है !

६. न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि डॉ. पाटिल के विरोध में किसी भी प्राथमिकी में वे समाज में भय उत्पन्न करते हैं, यह आरोप नहीं लगा है, साथ ही नरेंद्र पाटिलद्वारा सामाजिक शांतता भंग हुई हो, इसका एक भी उदाहरण नहीं है ! निर्वासन आदेश के लिए दिए जानेवाले प्रस्ताव में उपमंडलीय दंडाधिकारी ने स्वतंत्र रूप से एवं निरपेक्षता के साथ विचार करना अपेक्षित है ! डॉ. पाटिल को निर्वासित किया जा सकता है, ऐसा कोई भी कृत्य उन्होंने नहीं किया है, ऐसे कारण देते हुए न्यायालय ने हमारे पक्ष में निर्णय दिया !

७. इस उदाहरण से पुलिस प्रशासन किस प्रकार से हिन्दुत्वनिष्ठों को केवल क़ानूनी कार्रवाई के संदर्भ में केवल प्रश्‍न पूछने पर उनके विरोध में झूठे षड्यंत्र रच कर निर्वासन आदेश की कार्रवाई करते हैं, यही प्रमाणित होता है ! मैं (श्री. नरेंद्र पाटिल) यह मांग करता हूं कि मेरे सहित श्री. मयुर चौधरी एवं अन्य हिन्दुत्वनिष्ठों के विरोध में निर्वासन आदेश की अवैध कार्रवाई करनेवाले पुलिस अधिकारियों के विरोध में कठोर कार्रवाई की जाए !

हिन्दुत्वनिष्ठों का निर्वासन आदेश निरस्त हो; इसके लिए सहायता करनेवाले अधिवक्ताआें के प्रति आभार !

अधिवक्ता श्री. अनिल लोढा
अधिवक्ता श्री. देवेंद्र मराठे

अधिवक्ता श्री. अनिल लोढा एवं अधिवक्ता श्री. देवेंद्र मराठे ने न्यायालय में प्रभावशाली पद्धति से डॉ. पाटिल एवं अन्य हिन्दुत्वनिष्ठों का पक्ष रखा।

इसके कारण पुलिस प्रशासनद्वारा हिन्दुत्वनिष्ठों के विरोध में निकाला गया अवैध निर्वासन आदेश निरस्त किया गया। इस सहायता के लिए डॉ. नरेंद्र पाटिल ने इन अधिवक्ताआें के प्रति आभार प्रकट किया है।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​