दीपावली की खरीददारी : कपडे खरीदते समय कौनसी सावधानियां बरतें ?

‘हिंदु धर्मानुसार वर्षभर में अनेक त्यौहार, व्रत एवं पर्वोत्सव आते हैं । साथ ही विविध पूजा एवं उपनयन, विवाह जैसी धार्मिक विधियां की जाती हैं । श्रीरामनवमी, जन्माष्टमी, हनुमान जयंती, संतों के प्रकटोत्सव आदि दिनोंपर विशिष्टदेवी-देवताओं एवं संतों का तत्त्व अधिक मात्रा में कार्यरत रहता है । धार्मिक विधि के समय हम पूजास्थलपर देवताओं का आवाहन करते हैं, इसलिए देवता वहां उपस्थित रहते हैं । तात्पर्य यह है कि, उस विशिष्ट दिन ईश्वरीय चैतन्य अधिक मात्रा में कार्यरत रहता है । उस दिन हिंदु धर्म की परंपरा के अनुसार सात्त्विक कपडे धारण करने से उस चैतन्य का हमें अधिक लाभ हो सकता है, उदा. स्त्रियों के लिए छ: गज अथवा नौ गज लंबी सुनहरी तार (जरी) के छोरवाली साडी पहनना एवं पुरुषों के लिए धोती-उपरना अथवा कुर्ता-पजामा पहनना अधिक उचित है ।’

अभी कुछ ही दिनों में दीपावली का त्याैहार शुरु हो रहा है । दीपावली आने से पूर्व ही लोग अपने घर-द्वार की स्वच्छता पर ध्यान देते हैं । घर की रंगाई करवाते हैं । इससे उस स्थान की न केवल आयु  बढती  है, अपितु आकर्षण भी बढ जाता है । स्वच्छता के साथ ही घर के सभी सदस्य नए कपडे सिलवाते हैं । नए कपडे खरीदने के लिए बजार में लोगों का भीड उमड आती है । कौनसा वस्त्र अच्छा है ?, कौनसा रंग अच्छा है ? कौनसे कपडे खरीदे ?, वस्त्र सिलने की पद्धति क्या है ?  एेसे अनेक प्रश्न हरएक के मन में आते है । दीपावली की खरीददारी करते समय कौनसी सावधानियां बरतनी चाहिए यह आज हम देखेंगे ।

१. वस्त्रों के रंगों का चयन किस प्रकार करें ?

  • ‘श्वेत, पीला, नीला एवं उनकी आभायुक्त सात्त्विक रंगों के वस्त्र चुनिए ।
  • भडकीला रंग तमोगुण का लक्षण है । भडकीले रंगों के वस्त्र धारण करनेवाला कालांतर से तमोगुणी बनता है ।
  • संपूर्ण परिधान मात्र किसी एक ही आध्यात्मिक रंग का हो, तो वह अधिक मात्रा में पारदर्शकताका गुण दर्शाता है । अतः वह आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक सत्त्वगुणी माना जाता है ।
  •  परिधान दो भिन्न रंगों का हो, तो दोनों रंग एक-दूसरे के लिए पूरक, अर्थात न्यूनतम २० प्रतिशततक मिलते-जुलते होने चाहिए, उदा. दो सात्त्विक रंगों का संयोजन आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक योग्य होती है । सात्त्विक रंगों के संयोजन के उदाहरण आगे दिए हैं । – श्वेत एवं हलका नीला, श्वेत एवं हलका पीला, गहरा नीला एवं हलका नीला, गहरा पीला एवं हलका पीला ! अधिक पढें

२. प्राकृतिक धागों से बने वस्त्र पहनने का महत्त्व

कपास एवं रेशम प्राकृतिक हैं । अतः उनसे बने वस्त्रों का स्पर्श त्वचा के स्वास्थ्य हेतु पोषक होता है ।’

  • ‘सूत एवं रेशम प्राकृतिक हैं । इनसे बने वस्त्रों में ईश्वरीय तत्त्व आकृष्ट करने की क्षमता अधिक होती है । अतः ऐसे वस्त्र धारण करनेवालों को ईश्वरीय तत्त्व का लाभ अधिक होता है ।’
  • कृत्रिम धागों से बने वस्त्रों की तुलना में प्राकृतिक धागों से बने वस्त्रों में सात्त्विक तरंगें ग्रहण करने एवं उन्हें संजोए रखने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए उन पर अनिष्ट शक्तियों का आक्रमण होने की आशंका न्यून रहती है । अतः प्राकृतिक धागों से बने वस्त्र अधिक समय तक शुद्ध एवं पवित्र रहते हैं । अधिक पढें

३. सात्त्विकता की दृष्टि से वस्त्रों पर कलाकृति कैसी हो ?

वर्तमान कलियुग में विविध प्रकार के प्राणियों की आकृतियोंवाले वस्त्र, भयानक भूतों के मुखोंवाले वस्त्र, विविध स्थानों पर फटे हुए वस्त्रों समान कढाई किए गए परिधान प्रचलित हैं । ऐसे वस्त्रों के आकृतिबंध में घनीभूत कष्टदायक तरंगें कालांतर से जीवकी वृत्ति पर परिणाम करती हैं । ऐसे विचित्र वस्त्र धारण करनेवाला जीव कालांतर से तमोगुणी बनता है ।

कलाकृति एेसी न हो

कलाकृति का आकार अधिक बडा न हो तथा अधिक तीक्ष्ण (नोकदार) भी न हो ।

अच्छे आकार की कलाकृति भी यदि एक-दूसरे से सटी हुई हो, तो उससे कष्टदायक स्पंदन ही निर्मित होते हैं । कलाकृतियां जितनी खुली-फैली हुई होंगी, उतनी वे निर्गुण तत्त्व के निकट होती हैं । इस कारण उनसे अच्छे स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । अधिक पढें

४. वस्त्र सिलने की पद्धति

वस्त्र की सिलाई करते समय अनेक छेद कर एवं उनमें से धागा निकालकर टांके डाले जाते हैं । छेद करना, अर्थात वायुमंडल की रज-तमात्मक तरंगों को आकृष्ट करना । जिन वस्त्रों को गांठ बांधकर धारण किया जाता था, उन पर गुंडी (बटन) इत्यादि नहीं होते थे । इसलिए उन पर न्यूनतम सिलाई होती है और छेद भी अल्प होते थे । परिणामस्वरूप उनके द्वारा वस्त्र में रज-तमात्मक तरंगें प्रवेश करने की आशंका अत्यल्प रहती थी ।’

‘अखंड वस्त्र में प्रत्येक सूत अखंड रहता है । इसलिए उससे प्रवाहित चैतन्यतरंगों का वहन वह संपूर्ण वस्त्र में कर पाता है । अखंड वस्त्र धारण करने के परिणामस्वरूप जीव की देह में चैतन्य फैलकर उस पर आध्यात्मिक उपाय होते हैं, उदा. साडी पहनने पर अधिक मात्रा में आध्यात्मिक उपाय होते हैं । जब वस्त्र काटा जाता है, तब उसके धागों का अखंडत्व नष्ट होता है । इसलिए उसके द्वारा चैतन्यतरंगों का वहन खंडित होता है एवं चैतन्य संपूर्ण वस्त्र में प्रवाहित नहीं हो पाता । अधिक पढें

इसके साथ ही नए वस्त्र का शुभारंभ करना, वस्त्रों की शुद्धि करना, सात्त्विकता की दृष्टि से वस्त्रों पर कलाकृति कैसी हो ? आदी के विषय में विस्तृत जानकारी आप आगे दिए गए लिंक पर पढ सकते है ! : https://www.hindujagruti.org/hindi/hinduism/hindu-lifestyle/hindu-attire

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​

JOIN