‘सिंहगड’ किले के सुधारकार्य में किए गए भ्रष्टाचार के प्रकरण में दोषियों के विरोध में तुरंत कार्रवाई करें ! – समस्त हिन्दुत्वनिष्ठ संघटन

छत्रपति शिवाजी महाराज के सिंहगड को भ्रष्टाचारियों से बचाएं !

पुणे की पत्रकार परिषद में मांग

पुणे / पिंपरी : छत्रपति शिवाजी महाराज के पदस्पर्श से पावन हुए, साथ ही तानाजी मालुसरेद्वारा किए गए बलिदान के कारण अजरामर रहा ‘सिंहगड’ समस्त शिवप्रेमियों की आस्था का केंद्र है; परंतु वर्ष २०१२-२०१४ की अवधि में इस गड के १ कोटि ३९ लाख रुपए के सुधारकार्य में ठेकेदारद्वारा घटिया स्तर का कार्य कर भ्रष्टाचार किया गया है ! इस संबंध में कॉलेज ऑफ इंजिनिअरिंग, पुणेद्वारा ८.५.२०१४ को जिलाधिकारी को ब्यौरा प्रस्तुत किया है; परंतु शासन की ओर से संबंधित लोगों से केवल स्पष्टीकरण मांगने के अतिरिक्त अन्य कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इसमें दोषी ठेकेदार और प्रशासनिक अधिकारियों को जानबूझकर संरक्षण दिया जा रहा है, यह स्पष्टता से दिखाई दे रहा है ! अतः पहले ठेकेदार को काली सूचि में डालकर उसके विरोध में आपराधिक अभियोग प्रविष्ट किए जाने चाहिए। इस सुधारकार्य में किए गए भ्रष्टाचार की पूरी धनराशि की आपूर्ति संबंधित ठेकेदार और प्रशासनिक अधिकारियों से ब्याजसहित की जाए, साथ ही प्रामाणिक एवं विशेषज्ञ ठेकेदार से इस गड का सुधारकार्य तुरंत कर लिया जाए, यह हमारी मांग है। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो शिवप्रेमी एवं हिन्दुत्वनिष्ठ संघटनों की ओर से राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा ! ‘राष्ट्रीय हिन्दू आंदोलन’ में सम्मिलित संघटनों ने पत्रकार परिषद में ऐसी चेतावनी दी !

पुणे एवं पिंपरी में १२ सितंबर को पत्रकार परिषदें ली गईं। (गड-किलों के सुधारकार्य में भ्रष्टाचार करनेवालों के विरोध में कार्रवाई करने हेतु हिन्दुत्वनिष्ठ संघटनों को पत्रकार परिषदें लेकर आंदोलन की चेतावनी देने की स्थिति आना, क्या यह शासन के लिए लज्जास्पद नहीं है ? जिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने इन गडों की सहायता से ५ पातशाहियों को ध्वस्त किया, उनके सुधारकार्य में भ्रष्टाचार किया जाना महाराज के इतिहास को कलंकित करने जैसा है ! इस संदर्भ में शासन की ओर से तुरंत कार्रवाई की अपेक्षा है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

पुणे की पत्रकार परिषद में बाईं ओर से सर्वश्री सुधाकर संगनवार, पू. सुनील चिंचोलकर, शंभू गवारे, प्रवीण नाईक एवं पराग गोखले

पुणे में संपन्न पत्रकार परिषद में ज्येष्ठ समर्थभक्त पू. सुनील चिंचोलकरजी, योग वेदांत समिति के श्री. सुधाकर संगनवार, सनातन संस्था के श्री. शंभू गवारे, हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. पराग गोखले एवं इस आंदोलन के समन्वयक श्री. प्रवीण नाईक आदि उपस्थित थे।

किले के सुधारकार्य में भ्रष्टाचार किया जाना दुर्भाग्यजनक ! – पू. सुनील चिंचोलकर

‘‘दुर्ग एवं गड आधुनिक तीर्थस्थान हैं। वो युवकों के प्रेरणास्रोत हैं। उनके सुधारकार्य में भ्रष्टाचार किया जाना दुर्भाग्यजनक है ! एक ओर करोडों रुपयों का व्यय कर छत्रपति शिवाजी महाराज के स्मारक का निर्माण किया जा रहा है, तो दूसरी ओर उनकेद्वारा स्थापित जीवनमूल्यों का उल्लंघन किया जा रहा है ! इस विसंगती को रोकना होगा। छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में भ्रष्टाचार की एक भी घटना नहीं हुई थी ! उनके यही आदर्शों को अपने जीवन में उतारना ही उनको वास्तविक श्रद्धांजली होगी !’’

श्री. सुधाकर संगनवार ने कहा, ‘‘सिंहगड के सुधारकार्य में किए गए भ्रष्टाचार के विरोध में चलाए गए इस आंदोलन को योग वेदांत समिति का पूरा समर्थन है। हम इस आंदोलन में पूरी क्षमता के साथ सम्मिलित होकर इस आंदोलन को अंत तक ले जाएंगे !’’

श्री. प्रवीण नाईक ने यह जानकारी दी की, इस प्रकरण के अंतर्गत १६ सितंबर को चिंचवड के डांगे चौक पर, तो १७ सितंबर को पुणे के बालगंधर्व चौक पर आंदोलन किये जाएंगे। श्री. शंभू गवारे ने सिंहगड के सुधारकार्य से संबंधित कार्य किस प्रकार से घटिया स्तर का हुआ है, इसके संदर्भ में छायाचित्रों के साथ जानकारी दी। हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. पराग गोखले ने इस अभियान का उद्देश्य विशद किया।

चिंचवड में संपन्न पत्रकार परिषद में सनातन संस्था के श्री. प्रवीण नाईक, श्री. शंभू गवारे, हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. पराग गोखले एवं शिवप्रतिष्ठान हिन्दुस्थान के पिंपरी-चिंचवड विभागप्रमुख श्री. सचिन थोरात ने संबोधित किया।

भ्रष्टाचारमुक्त सिंहगड हेतु तीव्रता के साथ आंदोलन चलाएंगे ! – श्री. सचिन थोरात, पिंपरी-चिंचवड विभागप्रमुख, शिवप्रतिष्ठान हिन्दुस्थान

बाईं ओर से सर्वश्री सचिन थोरात, शंभू गवारे, प्रवीण नाईक एवं पराग गोखले

उस कालावधि में छत्रपति शिवाजी महाराजद्वारा निर्मित गडों के कारण ही यह देश पुनः खडा हो सका। जिस गड को हासिल करने में वीर तानाजी मालुसरे का बलिदान हुआ, उस सिंहगड के सुधारकार्य में भ्रष्टाचार किया जाना अत्यंत क्षोभजनक है ! गड संवर्धन के कार्य योग्य प्रकार से होने चाहिए थें। शासन को इन भ्रष्टाचारियों के विरोध में कठोर से कठोर कार्रवाई करनी चाहिए, अन्यथा इस सिंहगड के सुधारकार्य के संदर्भ में किए गए भ्रष्टाचार के विरोध में हम तीव्रता के साथ आंदोलन चलाएंगे !

क्या है प्रकरण ?

सिंहगड के सुधारकार्य में किए गए भ्रष्टाचार के कुछ उदाहरण !

हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने सूचना अधिकार के अंतर्गत इस सुधारकार्य का जिन्होंने अध्ययन किया, उस कॉलेज ऑफ इंजिनिअरिंगद्वारा प्रस्तुत किया गया ब्यौरा प्राप्त किया। उसमें निम्न अनियमितताएं पाई गई हैं –

१. सुधारकार्य से संबंधित निर्माणकार्य का घटिया स्तर

अ. निर्माणकार्य के अनुमानित व्ययपत्र के अनुसार परियोजना के लिए आवंटित धनराशि एवं प्रत्यक्ष रूप में किए गए व्यय में २५ प्रतिशत का अंतर दिखाई देता है !
आ. निर्माणकार्य का स्तर प्रमाणित मापदंडों के अनुसार नहीं है। पत्थर का उपयोग कर किए गए निर्माणकार्य का अभिलेख (रेकॉर्ड) नहीं है !
इ. पत्थर का उपयोग कर किए गए निर्माणकार्य का स्तर अत्यंत घटिया और मूल निर्माणकार्य से विसंगत है। निर्माणकार्य में हर दो पत्थरों के मध्य में स्थित जोडकार्य सुचारू रूप से नहीं किया गया है !
ई. निर्माणकार्य का परिक्षण नहीं की गई है। गड का निर्माणकार्य अकुशल कारीगरों से किया गया है, यह स्पष्ट होता है !
उ. कांक्रिट की पडताल नहीं की गई है !

२. टंकियों में स्थित तलछट को निकालने के संबंध में सहस्र गुना बढाए गए आंकडें !

अनुमानपत्रिका में तलछट निकालने हेतु आवंटित की गए धनराशि को कुल अनुमानपत्रिका की तुलना में ७० प्रतिशत दिखाया गया है; परंतु वास्तव में प्रत्यक्षरूप से किए गए कार्य में प्रचुर मात्रा में अंतर है !

अ. टंकी क्र. ३० में मापपुस्तिका (मेजरमेंट बुक) में १ सहस्र ३८० क्युबिक मीटर तलछट निकालने का उल्लेख किया गया है; परंतु प्रत्यक्ष रूप में केवल २ क्युबिक मीटर तलछट ही निकाला गया ऐसा दिखाई देता है !
आ. टंकी क्र. २५ में मापपुस्तिका के अनुसार ४७४.३ क्युबिक मीटर तलछट निकालने का दिखाई गया है; परंतु प्रत्यक्षरूप से बहुत ही अल्प मात्रा में कार्य किया गया है ऐसा दिखाई देता है !
इ. मापपुस्तिका में टंकी क्र. २१ (हाथी टंकी) २०३६.१५ क्युबिक मीटर इतनी बडी मात्रा में तलछट निकाला ऐसे दर्शाया है; परंतु प्रत्यक्षरूप से २ से ३ क्युबिक मीटर तलछट ही निकाला है ऐसा दिखाई देता है और वास्तव में उस टंकी में इतनी बडी मात्रा में तलछट संग्रहित हो, उतनी उस टंकी की क्षमता ही नहीं है !

३. ऐसा ध्यान में आता है कि जिनको परियोजना समादेशक एवं ठेकेदार के रूप में काम दिया गया, उनको ऐतिहासिक निर्माणकार्य से संबंधित किसी काम का अनुभव नहीं है !

४. इस पूरी परियोजना में पुरातत्व विभाग से संबंधित निर्माण कार्य के संदर्भ में निहित अनिवार्य मापदंडों का कहीं पर भी पालन किया है ऐसा नहीं दिखाई देता ! गड पर स्थित बडे भूभाग पर स्थित वृक्ष, झुरमुट और घांस को निकाले जाने का दावा किया गया है; परंतु प्रत्यक्षरूप से यह कार्य हुआ है ऐसा दिखाई नहीं देता ! कुल मिलाकर ठेके के माध्यम से किए गए इस कार्य में मूल निर्माण को ही अधिक हानि पहुंची है, ऐसी टिप्पणि कॉलेज ऑफ एंजिनिअरिंग, पुणे के ब्यौरे में की गई है !

५. यह प्रकरण इतना गंभीर होते हुए तथा उसमें डेढ करोड़ रुपए का निवेश होते हुए भी ३ वर्ष पश्‍चात सं.वि. दळवी नामक एक कनिष्ठ अभियंता के विरोध में विभागीय जांच प्रारंभ कर अप्रैल २०१७ में उनकी केवल २ वेतनश्रेणी में ही कटौती की गई है ! इसके अतिरिक्त अन्य कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह प्रकरण जितना सामान्य दिखता है, उतना सामान्य नहीं है, यह अत्यंत गंभीर है ! यह एक सामूहिक भ्रष्टाचार की घटना है और इस प्रकरण को दबाया गया है, यह स्पष्ट दिखता है !

आज इसके दिखनेवाले कारण निम्न प्रकार से हैं –

अ. कार्य की निविदा निकालने के पूर्व जो निविदापूर्व अध्ययन था, उसका परिक्षण यदि किसी ने नहीं किया, तो उसके लिए केवल कनिष्ठ अभियंता ही कैसे उत्तदायी हो सकता है ? इसमें लिप्त अन्य अधिकारियों के विरोध में भी कार्रवाई होना आवश्यक है !
आ. कनिष्ठ अभियंताद्वारा जानबूझकर किसी अन्य को न दिखाते हुए निविदा निकली गई है, तो इस पूरी प्रक्रिया में किसी के भी ध्यान में क्यों नहीं आया अथवा उसे रोका क्यों नहीं गया, ऐसा कैसे हो सकता है ?, क्या इसके लिए अन्य अधिकारी भी उत्तरदायी नहीं हैं ?
इ. पुरातत्त्व विभाग के अंतर्गत कनिष्ठ अभियंता कितनी धनराशि की सीमा तक की निविदा निकाल सकता है तथा उसे पारित करवा ले सकता है, इसके कुछ मापदंड आवश्यक हैं। ‘एक करोड़ से भी अधिक धनराशि की निविदा उस विभाग में किसी को ज्ञात हुए बिना ही पारित हो कर उसमें इस प्रकार से भ्रष्टाचार हो सकता है, यह अविश्‍वसनीय है ! अतः यह संघटित रूप का भ्रष्टाचार है; इसलिए इसकी व्यापक जांच होनी आवश्यक है !

समर्थभक्त पू. चिंचोलकरजीद्वारा प्रस्तुत किया गया ज्ञापन

शासनकर्ता भ्रष्ट होने से ही अधिकारी भ्रष्टाचार का साहस कर सकते हैं !

‘वर्ष १६४५ में छत्रपति शिवाजी महाराजद्वारा राजगढ पर विजय प्राप्त किए जाने के पश्‍चात उस स्थान पर निर्माण कार्य आरंभ किया गया। कुएं और तालाबों की खुदाई करना, तटबंदी को मजबूती प्रदान करना जैसे कार्य उन्होंने आरंभ किए। निर्माणकार्य करते समय एक स्थान पर कारीगरों को सुवर्णमुद्राओं से भरी हुई २ हंडियां मिलीं। कारीगरों ने उन हंडियों को यथास्थिति राजकोष में जमा किया। उस समय किसी में भी इन सुवर्णमुद्राओं के प्रति मोह उत्पन्न नहीं हुआ; क्योंकि महाराज का चरित्र कलंकहीन था। छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में भ्रष्टाचार की एक भी घटना नहीं हुई। छत्रपति शिवाजी महाराज ने जब सूरत को लूटा, तब उसमें प्राप्त सभी सोना एवं अन्य संपत्ति को राजकोष में जमा किया गया। जिस सिंहगड पर नरवीर तानाजी मालुसरे ने ‘पहले विवाह ‘कोंढाणे’ (पहले सिंहगड ‘कोंढाणा’ इस नाम से जाना जाता था) का और बाद में रायबा (उनका पुत्र) का !’, ऐसा कह कर गड पर विजय प्राप्त करते हुए अपना बलिदान दिया, उसीके सुधारकार्य में भ्रष्टाचार किया जाना, यह कितना बडा दुर्भाग्य है ? आज यदि महाराज जीवित होते, तो वे क्या करते, इसकी कल्पना न करना ही अच्छा ! राज्यकर्ता भ्रष्ट होने से ही अधिकारी भ्रष्टाचार का साहस कर सकते हैं, अतः इस घटना को गंभीरता के साथ लेने की आवश्यकता है !

‘स्वराज्य’ का रूपांतरण ‘सुराज्य’ में करने हेतु –

‘‘स्मरें, शिवाजी महाराज का रूप। स्मरें, शिवाजी महाराज का पराक्रम।
स्मरें साक्षेप, शिवाजी महाराज। भूमंडले॥’’

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​