‘सीतामाता की जन्मस्थली का ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है’ – महेश शर्मा , केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्री

हिन्दुओं को राम मंदिर के निर्माण का स्वप्न दिखानेवाले भाजपा के मंत्रीद्वारा ऐसा वक्तव्य दिया जाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण !

हिन्दुओं के लिए पूजनीय सीतामाता की जन्मस्थली का ऐतिहासिक प्रमाण न होने का कारण देकर हिन्दुओं की धर्मभावनाओं को आहत करनेवाले केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्री !

नई देहली : सीतामाता रामायण में स्थित आस्था का विषय है; किंतु उनकी जन्मस्थली का किसी भी प्रकार का प्रमाण उपलब्ध नहीं है ! केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्री श्री. महेश शर्मा ने राज्यसभा में लिखित रूप में यह उत्तर दिया। (सीतामाता तो भूमिकन्या है। रामायण में उसका उल्लेख है। अतः वह केवल हिन्दुओं की आस्था के विषय तक ही सीमित नहीं है, अपितु सहस्रों वर्ष पूर्व सीतामाता का अस्तित्व था। वास्तव में इस प्रकार का वक्तव्य दे कर मंत्रीद्वारा हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया गया है; तो इसलिए उनके विरोध में परिवाद प्रविष्ट किया जाए, ऐेसा हिन्दुओं को यदि लगा, तो उसमें अयोग्य क्या है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

संयुक्त जनता दल के सदस्य श्री. अनिलकुमार सहानीद्वारा ‘केंद्र शासन के पास सीतामाता की जन्मस्थली का ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध है क्या ?’, यह प्रश्‍न पूछा गया था। (मूलरूप से यह प्रश्‍न पूछने का प्रयोजन ही क्या है ? क्या राजनेता अन्य धर्मियों की देवताओं के अस्तित्व के विषय में इस प्रकार से प्रमाणों की मांग करते हैं ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) श्री. सहानी ने शासनद्वारा इस वक्तव्यपर क्षमा मांगने की मांग की। उन्हों ने कहा कि सांस्कृतिक मंत्रीद्वारा दिया गया यह उत्तर सीतामाता एवं समस्त महिलाओं का अनादर करनेवाला है। (मंत्रीद्वारा दिए गए उत्तर के कारण हिन्दू तो आहत हुए ही हैं; किंतु यह प्रश्‍न पूछकर सीतामाता के अस्तित्व के विषय में प्रश्‍नचिन्ह उपस्थित करनेवालों के कारण भी हिन्दुओं की भावनाएं आहत हुई हैं, इसे भी श्री. सहानी को ध्यान में लेना चाहिए ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) विरोधी दलों ने आलोचना करते हुए कहा कि, क्या रामजी भी आस्था का विषय है ? (हिन्दू, ऐसे प्रश्‍न पूछकर हिन्दुओं की धर्मभावनाओं को आहत करनेवालों को वो जहां मिलेंगे, वहां उनसे इस संदर्भ में फटकारें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

सांस्कृतिक मंत्री श्री. महेश शर्मा ने यह बताते हुए स्पष्ट किया कि, बिहार में स्थित सीतामढी को सीतामाता की जन्मस्थली माना जाता है और तीर्थस्थली के रूप में उसका विकास किया जा रहा है और वहां किसी प्रकार की खुदाई नहीं की जा रही है।

निरंतर हिन्दुओं का मानभंग करनेवाले काँग्रेस के दिग्विजय सिंह के, मगरमछ के आंसू !

काँग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने महेश शर्मा के इस उत्तर का निषेध किया। उन्हों ने कहा कि, रामजी मेरे आस्था का केंद्र हैं; किंतु मंत्री के इस उत्तर के कारण मेरी आस्थापर ही आघात हुआ है ! (दिग्विजय सिंह को रामजी उनकी आस्था का केंद्र होने की बात अब ही कैसे याद आयी ? जब काँग्रेसद्वारा रामसेतू को ध्वस्त किया जा रहा था, तब तत्कालिन काँग्रेस शासनद्वारा न्यायालय में प्रविष्ट किए गए शपथपत्र में रामजी का अस्तित्व न होने की बात कही गई थी, तो उस समय उनको इस बात की याद क्यों नहीं आयी ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) उसके लिए शासन को क्षमा मांगनी चाहिए। आप लोग राममंदिर के आंदोलन पर सवार होकर सत्तापर आ गए हैं; किंतु अब आप सीतामाता आस्था का विषय होने की बात कर रहे हैं !

केंद्र शासन के सांस्कृतिक विभाग एवं पुरातत्त्व विभाग हिन्दुओं के ऐतिहासिक धरोहरों के संदर्भ में अध्ययन क्यों नहीं करते ?

परम त्याग एवं पातिव्रत्य जैसे उच्च मूल्यों का संवहन करनेवाली सीतामाता समस्त हिन्दू महिलाओं के लिए आदर्श है। भूमिकन्या सीतामाता ने मिथिला नगरी में जन्म लिया, अर्थात भूमि से प्रकट हो गई। यह अयोनी जन्म है। जनक का मिथिला राज्य का विस्तार सांप्रत नेपाल देश एवं बिहार राज्य में था। कुछ लोग यदि सीतामाता का जन्म नेपाल में हुआ था, ऐसा कहते भी हों, तो अधिकांश हिन्दू सीतामाता का जन्म बिहार में स्थित सीतामढी में हुआ है ऐसा मानते हैं।

केंद्र शासन के सांस्कृतिक विभाग एवं पुरातत्त्व विभाग ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन कर, उसपर अनुसंधान कर, साथ ही धर्मशास्त्रों का तथा धर्माचार्यों का मार्गदर्शन लेकर दृढतापूर्वक अपना मत क्यों नहीं रखते ?

शासन के मंत्री ‘देवताओं का जन्म आस्था का विषय है’, ऐसा कहकर हिंदुद्वेषीयों के हिंदुद्वेष की आग में घी डालने का कार्य क्यों कर रहें हैं ? इन विभागों की तो इस प्रकार का अनुसंधान करने की इच्छाशक्ति ही नहीं है, और यही सत्य है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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