नेपाल के हिन्दुत्वनिष्ठ एवं युवावर्ग को हिन्दू जनजागृति समिति का मार्गदर्शन

हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी की नेपाल यात्रा

काठमांडू : हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी नेपाल यात्रापर हैं। वे, यहां के आध्यात्मिक कार्यक्रमों में, साथ ही शिक्षा संस्थानों में एवं व्यवसायिकों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। साथ ही यहां के एक एफएम रेडियोद्वारा उनका एक साक्षात्कार भी लिया गया। इन अवसरोंपर उन्होंने ‘हिन्दू धर्म’ एवं ‘साधना’ के संदर्भ में मार्गदर्शन किया, साथ ही उपस्थित जिज्ञासुओं की शंकाओं का निराकरण भी किया।

शिवसेना नेपाल एवं श्री शिवशक्ति राहुलेश्‍वरानंदजी फाऊंडेशन की ओर से यज्ञोपवित धारण करवाने का कार्यक्रम

(प्रतिकात्मक चित्र)

१. सर्वसमावेशी यज्ञोपवित कार्यक्रम में सम्मिलित संत, हिन्दू धर्म के सैनिक ! – श्री श्रीनिवास महाराज

शिवसेना नेपाल एवं श्री शिवशक्ति राहुलेश्‍वरानंदजी फाऊंडेशन की ओर से सर्वसमावेशक (सभी जाति के) यज्ञोपवित धारण करवाने का कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस अवसरपर परमहंस सद्गुरु राहुलेश्‍वरानंद महाराज ने सभी बटुओं को गायत्री मंत्र की दीक्षा प्रदान की। इस अवसरपर नेपाल के युवा क्रांतिकारी संत श्री श्रीनिवास महाराज, पशुपती मृगस्थली के महंत योगी श्री श्रीषनाथ महाराज, शिवसेना नेपाल के अध्यक्ष श्री. अनिल बस्नेत, साथ ही हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी उपस्थित थे।

उपस्थितों काे मार्गदर्शन करते हुए श्री श्रीनिवास महाराज ने कहा कि, ‘संत तो धर्म के सैनिक हैं। यह किसी को नहीं भूलना चाहिए कि, उन्होंने अपने चरितार्थ हेतु भगवे वस्त्र धारण नहीं किए हैं, अपितु धर्म के लिए धारण किए हैं !’

केवल ‘संस्कार करने हैं’, इसलिए संस्कार (दिखावे के लिए) करना एक प्रकार का अधर्म ! – पू. डॉ. पिंगळेजी

पू. डॉ. पिंगळेजी ने उपस्थितों से यह प्रश्‍न किया कि, सनातन धर्म में स्पृश्य-अस्पृश्यता का कोई आधार नहीं है। उपनयन संस्कार में निहित उपनयन का अर्थ है गायत्री मंत्र सीखने हेतु शिशु को गुरुगृही भेज देना।

साथ ही दूसरी ओर से देखा जाए, तो जिस विधि के कारण जिव के अंतःचक्षु खुल जाते हैं अथवा उनके खुलने में सहायता मिलती है, उस विधि को उपनयन कहते हैं !

कोई भी संस्कार क्यों किया जाता है, उस उद्देश्य को जानकर यदि जिव ने अपना कर्म किया, तभी उस संस्कार का लाभ मिलकर जीव-शिव ऐक्य साधा जाता है, अन्यथा संस्कार के मूल उद्देश्य को समझ न लेकर केवल ‘संस्कार करने हैं’, इसलिए (दिखावे के लिए) संस्कार करना, यह तो एक प्रकार से अधर्म ही सिद्ध होता है, इसमें आश्‍चर्य कौन सा ?

२. त्रिभुवन विश्‍वविद्यालय में मार्गदर्शन का आयोजन

धर्मशिक्षा प्राप्त कर धर्माचरण करते हुए अन्यों को धर्मशिक्षित बनाना यही, ‘धर्मकर्तव्य’ !

काठमांडु के त्रिभुवन विश्‍वविद्यालय में प्रा. डॉ. गोविंदशरण उपाध्यायद्वारा आयोजित कार्यक्रम में पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने हिन्दुओं की वर्तमान स्थिति पर मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि, जिस प्रकार से युद्ध में ‘शत्रु’ केंद्रबिंदू होता है, उसी प्रकार से धर्मरक्षा करते समय सबसे पहले हमें अपने ‘धर्म के शत्रू’ को पहचनाना आवश्यक है। वर्तमान में, ‘हिन्दू धर्म के विरोध में जाना’, ‘अपनी धर्म एवं संस्कृति छोड़ कर पाश्‍चात्त्य संस्कृति का अंधानुकरण करना’ यही ‘धर्मनिरपेक्षता’ ऐसा हो गया है। इसके लिए स्वयं धर्मशिक्षा प्राप्त कर धर्माचरण करना तथा अन्यों को धर्मशिक्षित बनाना यही हमारा ‘धर्मकर्तव्य’ है !

इस समय उन्होंने उपस्थितों की शंकाओं का निराकरण भी किया।

३. संतोष साहा फाऊंडेशन के कार्यक्रम में युवक-युवतियों को मार्गदर्शन

पू. डॉ. पिंगळेजी के मार्गदर्शन का लाभ लेते हुए, युवक-युवती

सामर्थ्य सरोकार नेपाल के संतोष साहा फाऊंडेशन की ओर से ‘नेपाल-इंडिया फ्यूचर वेंचर डायलॉग सीरीज’ के अंतर्गत पू. डॉ. पिंगळेजी का ‘एज्युकेशन इन धर्म अ‍ॅण्ड संस्कार : शेअरर्ड व्हॅल्यूज इन मॉर्डन डे नेपाळ-इंडिया रिलेशन्स’ इस विषय पर मार्गदर्शन एवं शंकाओं का निराकरण का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस अवसरपर ‘शिक्षा, क्या होती है ?’, ‘जानकारी एवं ज्ञान का क्या, अर्थ होता है ?’, ‘धर्म, क्या होता है ?’, ‘संस्कार, क्या होता है ?’ इन संदर्भोंपर उन्होंने विस्तृत मार्गदर्शन किया।

इस विषय को आगे बढाते हुए उन्होंने, ‘पाश्‍चात्त्य शिक्षा से होनेवाले अपलाभ तथा उससे समाज पर होनेवाले अनिष्ट परिणाम’ इस पर चर्चा की, साथ ही ‘शिक्षा में, धर्म एवं संस्कारों की अनिवार्यता क्यों है ?’ इसे भी उन्होंने समझाया। उपस्थितों को आवाहन करते हुए उन्होंने कहा कि, ‘हरएक ने धर्मशिक्षा लेना आवश्यक है, साथ ही सभी को उसे प्राप्त करने हेतु उद्युक्त किया जाना चाहिए !’

यहां के, २१ युवक-युवतियों ने इस मार्गदर्शन का लाभ उठाया। उपस्थितों की शंकाओं का निराकरण करते हुए पू. डॉ. पिंगळेजी ने कहा कि, ‘आत्मानुभूति हेतु हमें; हम जहां है, वहीं से आरंभ करना चाहिए। इसके लिए जो ज्ञात है ऐसी अध्यात्म की १-२ सूत्रों का प्रत्यक्ष रूप से आचरण करना चाहिए !’ अन्य एक प्रश्‍न के उत्तर में उन्होंने कहा कि, ‘जीवन में आनंद प्राप्त करने हेतु अपने ‘स्वभावदोष’ एवं ‘अहं’ का निर्मूलन करना आवश्यक है !’

४. एफएम रेडियोपर आयोजित साक्षात्कार में पू. डॉ. पिंगळेजी ने होली के त्यौहार से संबंधित विविध आध्यात्मिक पहलू विशद किए !

कांतीपूर एफएम रेडियोपर प्रा. जनार्दन घिमिरेद्वारा पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी का साक्षात्कार लिया गया। इस समय होली की शुभकामनाएं देते हुए पू. डॉ. पिंगळेजी ने कहा कि, होली तो लय से संबंधित पर्व है। आसुरी संपदा का अर्थ है दोष, षड्रिपू एवं अज्ञान, ये हममें व्याप्त आसुरी संपदा है। इसके अंतर्गत अशुद्धता का लय कर ईश्‍वर से एकरूप होने का मार्ग इस होली से निकलता है। अंदर की आसुरी शक्तियोंपर अर्थात दोषों पर प्राप्त किए गए विजय के प्रतीक के रूप में बाह्य प्रतिकात्म होली का दहन कर हम आनंद मनाते हैं।

व्यक्ति को धर्मशिक्षा प्राप्त न होने से व्यक्ति अधर्म के मार्गपर चल पड़ती है। हमारा जन्म; स्वधर्म को, स्व-स्वरूप को जान लेने हेतु ही हुआ है। हिन्दुओं ने केवल जन्महिन्दू न रहकर अपने शास्त्रों को जानकर ज्ञानयुक्त कर्म करना चाहिए तथा वेदों में स्व-स्वरूप को जान लेने का अंतिम लक्ष्य बताया गया है, उसे प्राप्त करना चाहिए। जीवन को सार्थक बनाने हेतु समाज को धर्मशिक्षा देना एवं स्वयं के जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रयास करने चाहिएं।

५. दैनिक ‘नया पत्रिका’ में पू. डॉ. पिंगळेजी का साक्षात्कार प्रकाशित

पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी नेपाल में आये हैं, ऐसा ज्ञात होनेपर दैनिक ‘नया पत्रिका’ के पत्रकार श्री. परशुराम काफले ने उनका साक्षात्कार लिया। इसी दैनिक में पू. डॉ. पिंगळेजी का साक्षात्कार छायाचित्र के साथ लगभग आधे पृष्ठ का प्रकाशित किया गया है। इस साक्षात्कार में पू. डॉ. पिंगळेजी ने कहा कि, वैद्यद्वारा दिए गए प्रिस्क्रिप्शन को कंठस्थ करने से बीमारी नहीं दूर जाती, अपितु उसके लिए वैद्यद्वारा उसमें लिखी गई औषधियां लेनी पडती हैं ! उसी प्रकार शास्त्र को समझकर कर्म करने से लाभ होता है अथवा संत एवं गुरु के मार्गदर्शन के अनुसार साधना करने से ईश्‍वरप्राप्ति संभव है।

६. नेपाल की धार्मिक वाहिनी ‘भक्तिदर्शन’ पर प्रसारित साक्षात्कार में पू. डॉ. पिंगळेजीद्वारा प्रतिपादन

व्यक्तिगत जीवन एवं सामाजिक स्थिति उत्तम होने हेतु धर्माधिष्ठित ‘हिन्दू राष्ट्र’ की आवश्यकता !

नेपाल की एकमात्र धार्मिक दूरचित्रवाहिनी ‘भक्तिदर्शन’ पर प्रसारित किए जानेवाले ‘भक्तिदर्शन क्लिनिक’ कार्यक्रम में पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी का साक्षात्कार लिया गया।

इस अवसरपर वैद्यकीय क्षेत्र में इतनी उच्च शिक्षा प्राप्त कर भी अपना, अध्यात्म की ओर झुकने का कारण विशद करते हुए उन्होंने वैद्यकीय विज्ञान की मर्यादा एवं वैश्‍विक स्वास्थ्य संघटन(WHO)द्वारा की गई व्यक्ति के स्वास्थ्य की व्याख्या बताई। इस व्याख्या में प्रारंभ में शारीरिक स्वास्थ्य एवं उसके पश्‍चात शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य और तत्पश्‍चात शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य का होना, इस प्रकार से चरणबद्ध पद्धति से किए गए परिवर्तन के संदर्भ में बताया। आध्यात्मिक व्यक्ति मानसिक एवं बौद्धिक दृष्टि से उत्तम होती है। आज समाज को धर्मशिक्षा न होने से वह धर्म से परावृत्त हो गया है। इस कारण ही व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन में, साथ ही समाज में समस्याएं बढ गई हैं। धर्म, सभी को अपने-अपने निहित कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए कहता है। यदि सभी ने अपने निहित कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया, तो किसी भी व्यवस्था का पतन होता है ! इसके लिए ही व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन एवं सामाजिक स्थिति उत्तम बनने हेतु ‘धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र’ की आवश्यकता होती है, ऐसा उन्होंने प्रतिपादित किया।

कु. मनिता ने पू. डॉ. पिंगळेजी का साक्षात्कार लिया।

पू. डॉ. पिंगळेजीद्वारा बताया गया ‘जप एवं न्यास’ करने से ही मैं बच गया ! – डॉ. माधव भट्टराय

पू. डॉ. पिंगळेजी ने धर्मसभा नेपाल एवं सनातन हिन्दू मोर्चा के अध्यक्ष डॉ. माधव भट्टराय से सदिच्छा भेंट की। विगत कुछ दिनों से डॉ. भट्टराय का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। कुछ दिन पूर्व उनकी स्थिति बहुत चिंताजनक थी।

इस समय श्री. भट्टराय ने कहा कि, ‘मैने ४-५ गुरुओं से दीक्षा ली है तथा मैं उनके मार्गदर्शन के अनुसार साधना करता था; किंतु आपकेद्वारा बताया गया जप एवं न्यास करने के कारण ही मैं बच पाया !’ इसपर पू. डॉ. पिंगळेजी ने कहा कि, ‘इस आयु में भी आप के; धर्मरक्षा हेतु, साथ ही नेपाल को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाने हेतु कार्यरत होने से ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ही आपकी रक्षा कर रहे हैं !’

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​