अंग्रेजों ने हिन्दू धर्म के चित्र को भ्रामक कल्पनाएं एवं भ्रमिष्टता का मिश्रण इस रूप में प्रस्तुत किया ! – समर्थभक्त पू. सुनील चिंचोलकर

श्री समर्थ सेवा मंडळ (सज्जनगढ) की ओर से पू. स्वामी माधवानंदजी को समर्थ संत सेवा पुरस्कार प्रदान

बाईं आेर से अधिवक्ता द. व्यं. देशपांडे, पू. गुरुनाथ महाराज कोटणीस, पू. स्वामी माधवानंद, श्रीमती. आशा नगरकर, समर्थभक्त पू. सुनील चिंचोलकर, समर्थभक्त पू. मारुतीबुवा रामदासी

पुणे : सबसे पहले स्वामी विवेकानंदजी ने विज्ञान एवं अध्यात्म का सुंदर समन्वय किया । अंग्रेजों ने इस देश में इस प्रकार का चित्र खडा किया कि, यह देश अंधविश्‍वासों का गठडा है । हिन्दू धर्म भ्रामक कल्पना एवं भ्रमिष्टता का समुच्चय है । ऋषी-मुनि एवं परंपराआें ने इस देश की सबसे अधिक हानि की, हमारे धर्म का एैसा झुठा प्रचार अंग्रेजों ने विश्‍व में किया । स्वामी विवेकानंदजी ने शिकागो की धर्मपरिषद में हमारा धर्म ही विश्‍वधर्म है तथा भारत ही कैसे विश्‍वगुरु हो सकता है, यह स्पष्ट किया । इसी परंपरा को अनेक संतों ने आगे चलाई और उसी परंपरा का घटक हैं स्वामी माधवानंदजी ! समर्थभक्त पू. सुनील चिंचोलकर ने यह प्रतिपादन किया । विद्यावाचस्पती तथा स्वामी माधवनाथ के उत्तराधिकारी पू. स्वामी माधवानंदजी (मूल नाम – डॉ. माधवराव नगरकर) को श्री समर्थ सेवा मंडल (सज्जनगढ) को समर्थ संत सेवा पुरस्कार एवं मानचिह्न प्रदान किया गया । यह पुरस्कार प्रदान समारोह ८ जनवरी को आयोजित किया गया । उस समय मार्गदर्शन करते हुए वे बोल रहे थे ।

इस समारोह में श्री समर्थ सेवा मंडल के अध्यक्ष प.पू. गुरुनाथ महाराज कोटणीसजी, कार्यवाह समर्थभक्त पू. मारुतीबुवा रामदासी, कार्याध्यक्ष अधिवक्ता डॉ. द.व्यं. देशपांडे, पू. स्वामी माधवानंदजी की धर्मपत्नी श्रीमती आशा नगरकर इत्यादीसहित अन्य मान्यवर उपस्थित थे ।

पू. सुनील चिंचोलकर ने कहा कि, आज देशभक्ती उपहास का विषय हो चुका है । राजनीतिक, शिक्षा एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में व्याप्त दांभिकता के कारण ही आज के युवक उद्विग्न हो गए हैं । इन सभी के विरुद्ध ये युवक विद्रोही बन रहे हैं; परंतु यदि उनके सामने कोई आदर्श उदाहरण प्रस्तुत हुआ, तो वो निश्‍चितरूप से उसका लाभ उठाएंगे । आनेवाले समय में समर्थजी का कार्य निश्‍चितरूप से बढनेवाला है ।

महान राष्ट्रपुरुषों का चरित्र सभी युवकोंतक पहुंच गया, तो उससे राष्ट्राभिमान उत्पन्न होगा ! – स्वामी माधवानंदजी

भगवान श्रीकृष्णजी ने ४ कर्मयोगों के साथ और एक योग विशद किया और वह है साक्षात्कार योग ! उसी योग को समर्थजी ने दासबोध में लिखा है । समर्थजी ने उस समय में भी ग्रंथालय की स्थापना की थी । समर्थ एवं शहाजी महाराजजी की भेंट होती थी तथा उसके पश्‍चात ही शहाजी महाराजजी ने स्वराज्य का पहला प्रयास किया । सभी क्रांतिकारी तो राष्ट्राभिमानी थे ही; परंतु उसके साथ वो धर्माभिमानी भी थे । उसके कारण उनमें एक अलग प्रकार का सामर्थ्य उत्पन्न हुआ था । बाळकृष्ण चापेकर जी ने फांसीपर चढने के पहले सूर्यनमस्कार किए थे । ईसाई मिशनरी किसी के फांसी चढने के पहले उसका धर्मपरिवर्तन करते थे । चापेकरजी को देखकर उन्होंने उनसे पूछा कि, आप यह क्या कर रहे हैं ? उसपर चापेकरजी ने कहा कि, हमारे धर्म में यह कहा गया है कि, जो कुछ ईश्‍वर के चरणों में समर्पित करना है, वह लहलहाता हुआ होना चाहिए; इसलिए इस शरिर को समर्पित करते समय भी वह लहलहाता हुआ ही होना चाहिए । ऐसे महान राष्ट्रपुरुषों का चरित्र सभी युवकोंतक पहुंचना चाहिए, उससे उनमें भी इस प्रकार का राष्ट्राभिमान उत्पन्न होगा ।

इस कार्यक्रम में अन्य मान्यवरों ने भी अपने मनोगत व्यक्त किए । श्री. मधु नेने ने सूत्रसंचालन किया ।

क्षणचित्र

१. कार्यक्रम का प्रारंभ दीपप्रज्वलन एवं वैदिक मंत्रोच्चारण से किया गया ।

२. इस कार्यक्रम का सामाजिक जालस्थल फेसबुक से सीधा प्रसारण किया गया ।

३. राम गणेश गडकरी की मूर्ति की हुई तोडफोड की घटना के विषय में श्री. नेने ने कहा कि, चौकों-चौकोंतक समर्थजी का कार्य पहुंचा, तो ऐसी घटनाएं ही नहीं होगी ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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