अखंड भारत मोर्चा के संस्थापक तथा पूर्व सांसद श्री. वैकुंठलाल शर्मा उपाख्य प्रेमसिंह शेर ने प्राप्त किया ६३ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर

देहली – अखंड भारत मोर्चा के संस्थापक, साथ ही देहली के पूर्व सांसद श्री. वैकुंठलाल शर्मा उपाख्य प्रेमसिंह शेर का १७ दिसंबर को ८७ वां जन्मदिवस मनाया गया, साथ ही अखंड भारत मोर्चा का १८ वां स्थापना दिवस भी मनाया गया । यहां के लक्ष्मीनगर स्थित हनुमान मंदिर में आयोजित किए गए कार्यक्रम में उनका जन्मदिवस मनाते समय उनका आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत होने का घोषित किया गया । इस अवसरपर उपस्थित हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने श्री. शर्मा के आध्यात्मिक स्तर की घोषणा की । पू. डॉ. पिंगळेजी ने शॉल, श्रीफल एवं भगवान श्रीकृष्णजी की प्रतिमा भेंठ कर उनको सम्मानित किया । इस समय प्रेमसिंह शेर के हितचिंतक, साथ ही अखंड भारत मोर्चा के सर्वश्री संदीप आहुजा, दीपक सिंह, भारतभूषण, भारत बत्रा, प्रवेश एवं अन्य पदाधिकारी, साथ ही सनातन की साधिका श्रीमती क्षिप्रा जुवकेर उपस्थित थीं ।

हिन्दुत्व के लिए मेरा बार-बार जन्म हो ! – श्री. प्रेमसिंह शेर

इस समय श्री. प्रेमसिंह शेर ने कहा कि, सनातन संस्था के संस्थापक प.पू. डॉ. आठवलेजी भारत में व्याप्त कुछ चुनिंदा महापुरुषों में से एक हैं । उनके सैंकडो साधक पूर्णकालिन हैं । वो अपना घर-बार छोडकर हिन्दुत्व का कार्य कर रहे हैं । भारत में यह घटना दुर्लभ है । प.पू. डॉ. आठवलेजी ने मेरे जीवनमुक्त होने के संदर्भ में बताया । मेरी कुंडली में भी मेरे जीवनमुक्त होने के विषय में लिखा गया है । मेरे काकाजी द्वारा वर्ष १९२९ मेरी कुंडली बनाई थी । कहां गोवा और कहां मैं ?; परंतु प.पू. डॉ. आठवलेजी ने यह भविष्यवाणी की । मेरे जीवनमुक्त होनेपर भी मेरा बार-बार जन्म हो तथा मेरा जीवन हिन्दुत्व के प्रति ही समर्पित हो, यही ईश्‍वर की चरणों में प्रार्थना !

श्री. वैकुंठलाल शर्मा उपाख्य प्रेमसिंह शेर की ध्यान में आई हुईं गुणविशेषताएं

१. प्रखर देशभक्त

श्री. वैकुंठलाल शर्मा उपाख्य प्रेमसिंह शेर की आयु ८७ वर्ष है । इस आयु में भी वे सशक्त हैं । वे प्रखर देशभक्ति के साथ प्रेरणा देनेवाला भाषण देते हैं । उनको देश की वर्तमान स्थिति के विषय में चिंता है तथा अन्याय के विरुद्ध क्षोभ भी है । उनकी स्मरणशक्ति अच्छी है । कल की भेंट में उन्हों ने वर्ष १९४६ में उनके द्वारा लिखा गया गीत सुनाया । यह गीत अत्यंत प्रेरणादायी तथा उत्साह बढानेवाला है ।

२. तत्त्वनिष्ठ

वे स्वयं सांसद थे; परंतु उन्हों ने कभी भी अवैध मार्ग से धन अर्जित नहीं किया । अतः उनकी जीवनशैली सादगीयुक्त है । नोटबंदी के कारण उनकी पत्नी एवं उनकी पुत्री को अधिकोष के फेरे काटने पडते हैं; परंतु प्रेमसिंह पूर्व सांसद होने का अपलाभ उठाकर उनकी सहायता नहीं करते ।

३.. कारसेवकों के विश्‍वास के लिए पात्र

अयोध्या में बाबरी मस्जिदपर कारसेवकों द्वारा की गई कार्यवाही के समय श्री. प्रेमसिंह वहांपर पुलिस अधिकारी के रूप में कार्यरत थे । कारसेवकों ने उनके द्वारा लाई गई श्रीरामजी की मूर्ति वहां पर उपस्थित एक वरिष्ठ नेता के हाथों में न सौपकर उन्हों ने उस मूर्ति को श्री. प्रेमसिंह के हाथों में सौंप दी; क्योंकि कारसेवकों का प्रेमसिंहपर अधिक विश्‍वास था ।३. सनातन संस्था एवं साधकों के प्रति प्रेमभाव उनको मिलनेपर वे सबसे पहले सनातन संस्था एवं साधकों के विषय में पूछते हैं । वे पूछते हैं, ‘‘साधकों के लिए कोई समस्या नहीं है न ?, पुलिस साधकों को कष्ट तो नहीं दे रही हैं न ?’’ जब साधक उनके घर जाते हैं, तब उनको बहुत आनंद होता है ।

४. अहं का अल्प होना

वे इतने अनुभवी एवं कर्तव्यनिष्ठ होते हुए भी उनकी बातों से ‘मैने कितना किया है अथवा मुझे बहुत जानकारी है’, इस प्रकार का अहं तनिक भी प्रतीत नहीं होता । बोलते समय वे कई बार ऐसा कहते हैं, ‘‘ईश्‍वर को मुझ से जो करवा लेना चाहिए था, उसे उन्हों ने करवा लिया ।’’

– श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर, देहली (१४.१२.२०१६)

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