उज्जैन सिंहस्थ पर्व : दीवारोंपर धर्मशिक्षा के विषय में लेखन करने के उपक्रम को उदंड प्रतिसाद !

उज्जैन : सिंहस्थ पर्व !

उज्जैन के सिंहस्थपर्व में सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति के संयुक्त तत्वावधान में दीवारोंपर धर्मशिक्षा के विषय में लेखन करने के उपक्रम को प्राप्त, उदंड प्रतिसाद  !

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उज्जैन – सिंहस्थपर्व के उपलक्ष्य में सनातन के रंगकाम करनेवाले साधक, मार्ग की दर्शनी दीवारोंपर धर्मशिक्षा के संदर्भ में लेखन कर रहे हैं। उज्जैन में अब तक शासकीय माधव महाविद्यालय, चामुंडामाता मंदिर, महाकाल मंदिर, स्नान मार्ग इन स्थानोंकी दीवारोंपर साधकोंने ‘धर्मशिक्षा’ के संदर्भ में जानकारी लिखी है। महामार्ग, पुल के मार्ग आदि ऐसे अन्य स्थानोंकी दीवारोंपर आध्यात्मिक जानकारी लिखने की सेवा आरंभ है। इस सेवा में साधकोंको मिला समाजद्वारा प्राप्त अच्छा प्रतिसाद, यहां प्रस्तुत कर रहें हैं . . .

मार्ग की दर्शनी दीवारोंपर ‘धर्मशिक्षा’ के संदर्भ में किया गया लेखन

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१. ‘आपका कार्य विवेकानंदजी जैसा है’, ऐसा कहकर दीवार पर आध्यात्मिक जानकारी लिखनेवाले साधकोंको एक फलविक्रेताद्वारा अर्पण स्वरूप में केले देना

एक दिन साधक दीवार पर रंग दे रहे थे, उस समय एक फलविक्रेता वहां से जा रहा था। उसने साधकोंसे बातचीत की। साधकोंद्वारा उसे कार्य की जानकारी दे कर सेवा के रूप में दीवार पर आध्यात्मिक जानकारी लिखने के संदर्भ में बताने पर उसने, आपका कार्य विवेकानंदजी जैसा है’, ऐसा कहकर रंगकाम करनेवाले साधकोंको के लिए केले अर्पण किए। (धर्मकार्य में इस प्रकार से गिलहरी का योगदान देनेवाले ऐसे धर्माभिमानी ही सनातन धर्म एवं भारत की वास्तविक शक्ति हैं ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

२. साधकोंद्वारा किए जा रहे लेखन के संदर्भ में एक धर्माभिमानीद्वारा दर्शाई गई जिज्ञासा !

माधव महाविद्यालय की दीवार पर साधक अक्षरों में रंग भर रहे थे। तीन में से आधे वाक्य में रंग भरे गए थे। तब एक दोपहिया वाहन से आए हुए एक व्यक्ति ने रुक कर रंगकाम करनेवाले साधकोंको पूछा, अगला वाक्य कबतक रंगकर पूरा होगा ?; क्योंकि मुझे उस वाक्य को पढकर ही आगे जाना है !

३. जिज्ञासुओंने सनातन संस्था एवं साधकोंकी की, प्रशंसा !

३ अ. विज्ञापन लेखन अथवा रंगने का ठेका लेनेवाले संगठन के अध्यक्ष ने साधकोंको दीवार पर आध्यात्मिक लेखन, लिखते हुए देखा, तब उन्होंने उत्स्फूर्तता से कहा, आपका कार्य इतना अच्छा है कि, आपकी सभी दीवारोंपर हम ही निःशुल्क आध्यात्मिक लेखन, लिखकर देंगे।

३ आ. विज्ञापन लेखन अथवा रंगने का ठेका लेनेवाले के ठेकेदार ने साधकोंसे पूछा कि, आप हमारे लिये रंगाने का काम करोगे ? अभी करना यदि संभव नहीं होगा, तो हम प्रतीक्षा करने के लिए सिद्ध हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार आइए, आप जितनी कहेंगे, उतनी राशि हम देंगे।

साधकोंद्वारा यह कार्य एक सेवा के रूप में हम कर रहें हैं, ऐसा बताने पर वे कहने लगे, रंगकाम करनेवाले व्यवसायी भी इतनी लगन के साथ यह कार्य नहीं करते, जितनी लगन से आप यह कार्य कर रहे हैं !

३ इ. शासकीय माधव विद्यालय की दीवार पर लेखन की सेवा शुरू थी उस समय दो सैनिक वहां आए तथा उन्होंने बताया कि, ‘आध्यात्मिक जानकारी लिखी हुई यह दीवार इतनी सुंदर दिखती है कि, वहां से ना हिलें, ऐसा लगता है !’ इन दीवारोंके समीप जाने से ही उसका एक अलग महत्त्व प्रतीत होता है !

४. दीवार पर अध्यात्म के संदर्भ में प्रबोधनात्मक लेखन अच्छा लगने पर धर्मप्रसार के कार्य में सम्मिलित होनेवाले जिज्ञासु

४ अ. दीवार पर अध्यात्म के संदर्भ में प्रबोधनात्मक लेखन अच्छा लगने से, कुछ महत्त्वपूर्ण शासकीय दीवारें उपलब्ध करवाकर देनेवाले उज्जैन जनपद के अपर आयुक्त (एडिशनल कमिश्‍नर) श्री. विशालसिंह चौहान ! : एक स्थान पर रंगकाम की सेवा शुरू थी उस समय उज्जैन जनपद के अपर आयुक्त (एडिशनल कमिश्‍नर) श्री. विशालसिंह चौहान ने दूरभाष कर साधकोंको अपने कार्यालय बुलाकर बताया कि, शासकीय माधव महाविद्यालय की दीवार पर किया हुआ अध्यात्म संबंधी प्रबोधनात्मक लेखन मुझे अच्छा लगा। मैं शासन की ओर से और भी कुछ महत्त्वपूर्ण दीवारें रंगाने के लिए उपलब्ध करवा दूंगा ! आप उसपर लेखन करना आरंभ करें !

उस समय अन्य स्थानोंपर ऐसी ही सेवा शुरू थी इसलिये उन दीवारोंपर लेखन करना संभव नहीं हो पाया था, तब उन्होंने स्वयं ही रात में दूरभाष कर पूछा, दीवारोंपर लेखन करना आप कब आरंभ करेंगे ?

४ आ. सेवा के लिए वाहन उपलब्ध करवा कर देनेवाले व्यवसायी श्री. लालू लोदवाल ! : साधक पशुपतिनाथ मंदिर की दीवार पर लेखन करते समय उज्जैनस्थित एक व्यवसायी श्री. लालू लोदवाल ने देखा। उनको यह अच्छा लगने से उन्होंने सेवा हेतु अपना वाहन उपलब्ध करवा देने की सिद्धता दर्शाई थी।

५. दीवारोंपर आध्यात्मिक जानकारी लिखते समय अनेक लोगोंद्वारा, रुक कर पढ़ना

दीवारोंपर आध्यात्मिक जानकारी लिखते समय अनेक लोग रुककर दीवारोंके ऊपर का लेखन पढते थे। विशेषता तो यह कि, इनमें केवल निकट रहनेवाले ही नहीं, अपितु दूर से भी लोग आ कर यह लेखन पढ कर आगे जाते थे।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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