औषधियों की गुणवत्ता की जांच न करनेवाले एवं नकली कंपनी को बचानेवाले कब गिरफ्तार होगें ? – हिन्दू विधिज्ञ परिषद का प्रश्न

सरकारी चिकित्सालय में नकली औषधियों को देकर जनता के प्राणों से खिलवाड करने की गंभीर घटना !

कुछ दिन पूर्व ही अन्न एवं औषधि द्रव्य प्रशासन द्वारा नागपुर के सरकारी चिकित्सालय ‘इंदिरा गांधी गवर्नमेंट मेडिकल कालेज एवं हॉस्पिटल’ पर छापा मारकर नकली औषधि ‘सिप्रोफ्लोक्सासिन’ (Ciprofloxacin) की 21 हजार 600 नकली गोलियां जप्त की गई थी । इस प्रकरण में महाराष्ट्र में ‘हाफकिन’ जैसी विख्यात औषधि अनुसंधान संस्था होते हुए भी उसकी उपेक्षा कर ‘रिफाइंड फार्मा गुजरात’ नामक नकली औषधि कंपनी से नकली औषधियां क्यों खरीदी गईं ?, साथ ही इन औषधियों की जांच में जानबूझकर १० माह का विलंब क्यों हुआ ?, तब तक नकली औषधियों की आपूर्ति पूरे राज्य के शासकीय चिकित्सालयों में किसने होने दी ?, ये सभी रोगियो के प्राणों से खिलवाड करने की अत्यंत गंभीर घटना है । इस कारण सरकार को केवल नकली औषधियों की आपूर्ति करनेवाली कंपनी पर अपराध प्रविष्ट करना पर्याप्त नहीं है, अपितु औषधियों की गुणवत्ता की जांच न करनेवाले एवं नकली कंपनी को बचानेवाले कब गिरफ्तारी कब होगें, ऐसा प्रश्न ‘हिन्दू विधिज्ञ परिषद’ के अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा है । इस पूरे षड्यंत्र में लिप्त दोषियों पर कठोर कानूनी कार्रवाई करने की मांग भी ‘हिन्दू विधिज्ञ परिषद’ ने महाराष्ट्र सरकार से एक पत्र के द्वारा की है ।

इस संदर्भ में हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने महाराष्ट्र राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. तानाजी सावंत, अन्न एवं औषधि द्रव्य प्रशासन मंत्री धर्मरावबाबा अत्राम, साथ ही अन्न एवं औषधि द्रव्य प्रशासन विभाग के आयुक्त से लिखित शिकायत की है ।

वास्तविक रूप से मार्च 2023 में अन्न एवं औषधि द्रव्य प्रशासन ने नागपुर के कमलेश्वर तहसील में ये नकली गोलियां जप्त की थीं । कमलेश्वर तहसील के सरकारी स्वास्थ्य सुविधा केंद्र से जप्त की गई ये नकली गोलियां जांच के लिए मुंबई की सरकारी प्रयोगशाला में भेजी गई थी । इस जांच का रिपोर्ट 10 माह के उपरांत अर्थात दिसंबर 2023 में सामने आया । इस रिपोर्ट में उजागर हुआ है कि उक्त गोलियों में सिप्रोफ्लोक्सासिन नामक रोगप्रतिरोधक औषधि ही नहीं है । इन नकली औषधियां की आपूर्ति पूरे राज्य के सरकारी औषधि केंद्रों में की गई है । ये औषधि बनानेवाली ‘रिफाइंड फार्मा, गुजरात’ नामक कंपनी का कोई अस्तित्व ही नहीं है । पुलिस ने इस संदर्भ में तीन लोगों के विरुद्ध अपराध प्रविष्ट किया है एवं उनमें से एक व्यक्ति ऐसी ही बनावटी औषधि विक्रय के अपराध में कारावास में दंड भोग रहा है ।

इस संदर्भ में अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने पत्र में आगे कहा, अन्न एवं औषधि द्रव्य प्रशासन द्वारा की गई यह कार्रवाई अत्यंत अपूर्ण एवं अनेक संदेहास्पद है । मार्च 2023 में जांच के लिए ली गई गाेलियों का रिपोर्ट दिसंबर 2023 में इतने विलंब से क्यों आया ? मार्च 2023 से दिसंबर 2023 की अवधि में जिन रोगियों को यह औषधि दी गई, उनका आगे क्या हुआ, यह ज्ञात होना चाहिए । जिन दोषियों पर अपराध प्रविष्ट किया गया है, उनमें से एक व्यक्ति नकली औषधि विक्रय के अपराध में कारावास में दंड भुगत रहा है, उस जांच में यह उजागर क्यों नहीं हुआ ?, अथवा घूस लेकर वह जांच बीचमें ही रोक दी गई ?, ऐसी अनेक शंकाएं निर्माण हो रही है । हाफकिन जैसी संस्थाओं की उपेक्षा कर सरकारी स्तर पर पूरी जांच किए बिना औषधियों खरीदने वालों तथा अन्य सभी दोषियों पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए । इन घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सरकार क्या करनेवाली है, इसकी जानकारी जनता को देनी चाहिए, ऐसा भी अधिवक्ता इचलकरंजीकर ने कहा है ।

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