फतेहपुर के रिटायर रेलवे कर्मचारी अब्‍दुल जमील बने हिंदू, नाम रखा श्रवण कुमार

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में अब्दुल जमील ने गुरुवार (21 जुलाई 2022) को इस्लाम त्यागकर संकटमोचन मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार और पूरे विधि-विधान के साथ पूजा कर हिंदू धर्म अपना लिया। उन्होंने अपना नाम श्रवण कुमार रखा है। सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त अब्दुल जमील ने बताया कि पिछले कई वर्षों से सनातन धर्म के प्रति उनमें दिलचस्पी पैदा हुई थी।

अब्दुल जमील मूल रूप से हाथरस जिले के सादाबाद तहसील के जमील हैं और वर्तमान में फतेहपुर नगर के देवीगंज मोहल्ले में रहते हैं। 38 वर्षों तक रेलवे में सेवा के बाद मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक के पद से सेवानिवृत्त होने वाले 66 वर्षीय अब्दुल जमील ने बताया कि बचपन से ही सनातन धर्म के प्रति आस्था थी।

जमील ने बताया कि करीब दो साल से उनके मन में हिंदू धर्म स्वीकार करने की इच्छा थी। कुछ दिनों पहले उनकी मुलाकात अखिल भारत हिंदू महासभा के प्रांतीय महामंत्री से मुलाकात हुई और इसके बाद दोनों के बीच नजदीकियाँ बढ़ीं। इसके बाद उन्होंने अपने मन की बात कही और धर्म धर्म अपना लिया।

श्रवण कुमार बनने के बाद उन्होंने कहा, “मुस्लिम धर्म में बहुत भेदभाव है। यहाँ भाई, भाई का नहीं है। लोग लालची हैं और संपत्ति के लिए खून तक कर देते हैं। इन सभी बातों से मैं परेशान रहता था। मैंने निश्चय कर कि मैं हिंदू धर्म अपनाऊँगा। मैं भगवान राम की पूजा करता हूँ और वह मेरे आराध्य हैं। मुझे बहुत अच्छा लगा जब पहली बार विष्णु-विष्णु बोलकर हवन पूजन कर रहा था।

उन्होंने कहा कि उन्होंने कोई धर्म परिवर्तन नहीं किया, बल्कि अपने मूल सनातन धर्म में वापसी की है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को अपना आदर्श बताते हुए श्रवण कुमार बने जमील ने कहा कि राम तो समूचे भारत के पूर्वज हैं, इसे सबको सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।

जमील का कहना है कि हिंदू बनने के लिए उन पर किसी तरह दबाव नहीं था। उनका कहना है कि उनके पूर्वज क्षत्रिय थे। उनके परबाबा का नाम पुत्तू सिंह था। पिता का नाम अब्दुल हमीद बेग है। उन्होंने कहा कि दो पीढ़ी पहले हमारा खानदान राजपूतों से ताल्लुक रखता था।

करीब दो महीने पहले सनातन धर्म में वापसी की बात जानकर उनके साले बाबर ने अब्दुल जमील को समझाने की कोशिश की थी। हालाँकि, जब वह नहीं माने तो उसने मारपीट भी की थी। उनका कहना है कि उनकी आस्था सनातन से जुड़ चुकी है और अब कोई भी उससे डिगा नहीं सकता।

अब्दुल जमील के अनुसार, “हिंदू धर्म में जाने की बात सुनकर उनके साले बाबर उर्फ मुस्तकीम ने घर पर बंधक बनाकर बहुत मारा था। मुझे अपने आराध्य भगवान राम पर विश्वास था। मैं उनकी पूजा पिछले तीन माह से घर पर कर रहा हूँ।”

श्रवण कुमार बने जमील ने कहा कि अब उन्हें किसी से डर नहीं लगता। उन्होंने कहा कि अगर किसी उन्हें डराने-धमकाने की कोशिश की तो वे पुलिस में शिकायत दर्ज कराएँगे। इसके साथ ही जिलाधिकारी से मिलकर सुरक्षा माँगने की बात भी कही।

अब्दुल जमील की तीन बेटियाँ व एक बेटा है। उनकी बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। दूसरी बेटी इंजीनियर है, जबकि तीसरी बेटी एमबीबीएस डॉक्टर है। उनकी पत्नी आरजूमंद बानो बेटियों के साथ लखनऊ में रहतीं हैं। वहीं, बेटा मोहम्मद शमील दिल्ली में पायलट ऑफिसर का कोर्स कर रहा है। उनका कहना है कि उनके परिवार पर अब सामाजिक दबाव बहुत बढ़ गया है।

उन्होंने बताया कि 30 अक्टूबर 1978 को वह रेलवे की नौकरी में शुरू की थी। पहली पोस्टिंग फतेहपुर जिले में आरक्षण पर्यवेक्षक के पद पर हुई और 20 साल तक वहीं रहे। इसके बाद उनका स्थानांतरण शिकोहाबाद हो गया। वहाँ उन्होंने 18 साल तक नौकरी की और फिर साल 2014 में रिटायर हो गए।

संदर्भ : ऑपइंडिया

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