हिंदू राष्ट्र निर्माण के लिए प्रतिदिन निकालें एक रुपया, एक घंटा : पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती

मुरादाबाद : गोवर्धनमठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने हिंदू राष्ट्र निर्माण की बात दोहराते हुए कहा कि इसके लिए सभी प्रतिदिन एक रुपया, एक घंटा निकालें।

वह गुरुवार को नारायण पादुका पूजन कार्यक्रम में बोल रहे थे। सिविल लाइंस में राजन एन्क्लेव स्थित निर्यातक विनय लोहिया के आवास पर हुए इस आयोजन में मौजूद लोगों ने धर्म, राष्ट्र और अध्यात्म से जुड़ी कई जिज्ञासाएं उनके समक्ष रखीं। क्रमवार सामने आए सवालों का उन्होंने गहराई से जवाब दिया।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 80 फीसदी हिंदू एकजुट हैं। शेष 20 फीसदी हिंदुओं को जागरूक करने का लक्ष्य है। इसके लिए उन्होंने प्रतिदिन एक रुपया और एक घंटा निकालने का रास्ता सुझाया। कहा कि इस दौरान एकत्र होने वाले रुपयों को अपने क्षेत्र के विकास में लगाएं।

उन्होंने कहा कि कम से कम दस परिवार भी एक साथ बैठते हैं और धर्म-आध्यात्म पर चर्चा करते हैं, तो इससे न सिर्फ उनके ज्ञान में विकास होगा, बल्कि वह दूसरों को भी प्रेरित करेंगे। ऐसा होने से कोई भी बाहरी शक्ति सनातन धर्म के अनुयायियों को भ्रमित नहीं कर पाएगी। इससे हिंदू राष्ट्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा।

राजनीति में शुचिता के सवाल पर शंकराचार्य ने कहा कि शुचिता की आधारशिला जागरूकता है। यहां की चुनावी प्रक्रिया बहुत जटिल है। टिकट लेने से लेकर चुनाव जीतने तक में काफी रुपये खर्च हो रहे हैं। ऐसे में चुने हुए जनप्रतिनिधि से शुचिता की उम्मीद करना बेमानी होगी। लोकतंत्र के नाम पर उन्माद है। जनता के हित में कानून बनता है, तो भीड़तंत्र की वजह से प्रधानमंत्री को माफी मांगकर वह वापस लेना पड़ता है। राजनीति में शुचिता के लिए व्यक्तित्व, मेधा और सेवा के बल पर चुनाव होना जरूरी है। आयोजन की शुरुआत मंत्रोच्चार और शंखनाद के बीच हुई। इस दौरान ने नारायण पादुका के दर्शन किए। स्तुति पूर्ण होने पर प्रसाद ग्रहण किया।

ज्ञान, विज्ञान और व्यवहार में बैठाएं सामंजस्य युवा पीढ़ी को धर्म और अध्यात्म से जोड़ने के सवाल पर शंकराचार्य ने कहा कि ज्ञान, विज्ञान और व्यवहार का सामंजस्य बैठाकर उन्हें (युवाओं को) जोड़ा जा सकता है। युवा खुद को समष्टि (सामूहिकता) से जोड़ लेंगे, तो हिंदुओं के आगे कोई टिक नहीं सकता। युवाओं को शील और स्वास्थ्य से परिपूर्ण होना चाहिए। इससे उनके जीवन में अपार बल उत्पन्न होगा। सबसे ऊपर संवाद, फिर सेवा और बाद में सेना के नियम का पालन करें। अपने साथ दूसरों के हितों का ध्यान रखें।

संतुलन के लिए जरूरी है वर्ण व्यवस्था जातिगत व्यवस्था के सवाल पर शंकराचार्य ने कहा कि मनुस्मृति में जाति धर्म को शाश्वत कहा गया है। वर्ण व्यवस्था नहीं होगी तो शिक्षा, रक्षा, अर्थ और सेवा के प्रकल्प संतुलित नहीं रह पाएंगे। इसलिए वर्ण व्यवस्था आवश्यक है।

मंत्र तारक भी है और मारक भी मंत्र का भेद क्या है, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि मंत्र तारक भी है और मारक भी है। वर्तमान में बहुत से गुरु व्यक्तियों को ऐसे मंत्र दे देते हैं, जो मंत्र की क्षमता को सहन नहीं कर सकते। कई बार ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति विक्षिप्त तक हो सकता है। इस लिए मंत्र के साथ खिलवाड़ करना मतलब अपने साथ खिलवाड़ करना है।

प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम विपरीत होगा तो कैसे चलेगा देश उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाने वाले युवाओं से जुड़े सवाल पर शंकराचार्य ने कहा कि राष्ट्र को जो प्रशासनिक अधिकारी चलाते हैं, उनका प्रशिक्षण सनातन धर्म को विलुप्त करने जैसा होता है। ऐसे में सोच सकते हैं कि जब प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम ही विपरीत रहेगा तो देश कैसे चल पाएगा।

ऋषियों की दूरदर्शिता की वजह से चारों पीठ भारत में शंकराचार्य ने कहा कि अखंड भारत काबुल तक था। भारत के विभाजन के बाद भी चारों पीठ भारत में हैं। यह ऋषियों की दूरदर्शिता का परिणाम है।

बच्चे ने पूछा कि भगवान ने संसार क्यों बनाया है कार्यक्रम में एक दस वर्षीय बालक ने शंकराचार्य से सवाल किया कि भगवान ने संसार क्यों बनाया है। इस पर सबसे पहले शंकराचार्य ने बालक को प्रोत्साहित किया। फिर समझाया कि जीव संसार का आलंबन लेकर ईश्वर तक पहुंच सके, इसलिए संसार का निर्माण किया गया है।

संदर्भ : अमर उजाला 

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