हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से ऑनलाइन डॉक्टर विचारगोष्ठी का आयोजन

  • मुंबई, ठाणे, रायगढ, पालघर एवं गुजरात के मान्यवर डॉक्टर सम्मिलित

डॉ. ज्योति काळे

मुंबई : कोरोना महामारी के कारण पूरा विश्‍व ही त्रस्त है । कोरोना की पहली लहर समाप्त होती है न होती है, तबतक दूसरी लहर ने सर्वत्र हाहाकार मचाया है । अब कोरोना के साथ अन्य फूफंदजन्य बीमारीयां भी फैल रही है । कुछ अवधि के उपरांत कोरोना की तिसरी लहर भी आने की संभावना है, साथ ही पूरे वर्ष में चक्रवाती तूफान, बाढ आदि संकटों की शृंखला ही चल रही है । कोरोना की चिकित्सा करते समय औषधियां, ऑक्सिजन, टीका इन सभी की उपलब्धता होते हुए भी लोग मर रहे हैं । अनेक स्थानों पर प्रशासन के साथ ही चिकित्सा करनेवाले डॉक्टर भी असहाय हैं । कोरोनासहित प्रत्येक बीमारी की चिकित्सा करते समय जिस प्रकार शारीरिक और मानसिक कारणों का विचार किया जाता है, उसी प्रकार बीमारीयों के आध्यात्मिक कारणों पर भी विचार होना आवश्यक है । कोरोना के संदर्भ में आवश्यक देखभाल और चिकित्सकीय उपचार लेने के साथ ही नामस्मरणादि उपाय भी करने चाहिएं । कोरोना काल में रोगियों की चिकित्सा करनेवाले डॉक्टरों को निरंतर काम और स्वयं के साथ ही उनके परिवारजनों को भी कोरोना का संक्रमण होने की संभावना के कारण बहुत बडे तनाव का सामना करना पड रहा है । इस स्थिति में स्थिर रहना, उनके लिए बडी चुनौती ही बन गई है । ऐसे समय अष्टांग साधना और मन को सकारात्मक स्वसूचनाओं से उन्हें बहुत लाभ मिल सकता है । सनातन संस्था की डॉ. ज्योति काळे ने ऐसा प्रतिपादित किया । हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से डॉक्टरों के लिए हाल ही में आयोजित डॉक्टर विचारगोष्ठी कार्यक्रम में वे ऐसा बोल रही थीं । इस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ राज्य संगठक श्री. सुनील घनवट ने समाज, राष्ट्र एवं धर्म की वर्तमान स्थिति और उसमें डॉक्टरों का योगदान विषय पर उपस्थित डॉक्टरों को संबोधित किया ।

इस विचारगोष्ठी में मुंबई, ठाणे, रायगढ एवं पालघर जनपदोंसहित गुजरात के अनेक मान्यवर डॉक्टर जुड गए थे । इस समय डॉ. सोनाली भट, डॉ. सुनीता साळुंखे, वैद्या गौरी नरगुंदे-डुबळे ने चिकित्सकीय उपचारों के साथ ही साधना करते समय और स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया चलाते समय स्वयं को प्राप्त अनुभव सभी के सामने रखे ।

विचारगोष्ठी के अंतिम सत्र में एक डॉक्टर के रूप में रोगियों की चिकित्सा करने के साथ ही हम राष्ट्र एवं धर्म कार्य में भी किस प्रकार योगदान दे सकते हैं, साथ ही राष्ट्र एवं धर्म पर हो रहे आघात करने हेतु करने आवश्यक कृत्यों के संदर्भ में भी अनेक डॉक्टरों ने मनोगत व्यक्त कर संवाद किया । इस अवसर पर डॉ. रमाकांत यादव, डॉ. गौतम पाठक, डॉ. चिराग मोदी और डॉ. संतोष जालूकर ने उनके द्वारा पूछी गई शंकाओं का निराकरण होने की बात बताई, साथ ही उन्होंने वर्तमान स्थिति के संदर्भ में अपना निरीक्षण भी रखा । इस विचारगोष्ठी का सूत्रसंचालन सनातन संस्था की डॉ. ममता देसाई ने किया ।

सेक्युलर (धर्मनिरपेक्ष) भारत में संविधान में बताई गई समानता कहां है ? – सुनील घनवट, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ राज्य संगठक, हिन्दू जनजागृति समिति

१. हिन्दू जनजागृति समिति कीओर से डॉक्टरों के लिए आयोजित की गई विशेष विचारगोष्ठी और नियमित सत्संग के माध्यम से मार्गदर्शन लेकर अनेक डॉक्टर अब नियमित साधना करने लगे हैं । उसे जोडकर उन्हें भारत के हिन्दुओं के प्रति होनेवाले पक्षपात के संदर्भ में जागरूक होने की आवश्यकता है ।

२. हमारे संविधान की धारा २८ एवं २९ के अनुसार अल्पसंख्यक समुदायों को अपने लोगों को धार्मिक शिक्षा प्रदान करने का अधिकार है; परंतु धारा ३० के अनुसार हिन्दुओं को धार्मिक शिक्षा देने पर प्रतिबंध है । भारत में अल्पसंख्यकों के हितों का विचार किया जाता है और बहुसंख्यक हिन्दुओं को दूर किया जाताहै । क्या इसी को समानता कहते हैं ?

३. आज विदेशी लोग सनातन संस्कृति को अपना रहे हैं । ऐसे में भारत के विद्यालयों में हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ भगवद्गीता की शिक्षा देना संविधान की तथाकथित समानता की कक्षा में नहीं आता, इस वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए हमें इन धाराओं में संशोधन करने की मांग करनी चाहिए ।

डॉक्टरों द्वारा व्यक्त अनुभवकथन

डॉ. सोनाली भट, ठाणे : हम डॉक्टर लोग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर तो काम करते ही हैं । अभीतक मैने आध्यात्मिक आरोग्य के संदर्भ में केवल सुना था; परंतु इसका ज्ञान मुझे इस विचारगोष्ठी से मिला । आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति में सत्त्वगुण बढाना आवश्यक है । उसके लिए स्वयं में निहित दोष दूर करने पडते हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा बताई गई स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया को अपनाने से ही संभव है । इसके लिए सनातन संस्था के ग्रंथ घर-घर में होने चाहिएं ।

वैद्या गौरी नरगुंदे-डुबळे, मुंबई : प्रत्येक व्यक्ति में अल्पाधिक मात्रा में स्वभावदोष होते हैं और इन स्वभावदोषों के कारण हमें दुख भोगना पडता है । इस सत्संग में बताई गई स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया को अपनाने से हमें निश्‍चितरूप से लाभ मिलेगा ।

डॉ. सुनिता साळुंखे : पहले मन में बहुत विचार होते थे । उसके कारण मन एकाग्र नहीं होता था । मैने इस विचारगोष्ठी से प्राप्त जानकारी के अनुसार साधना आरंभ की । उसके कारण मुझ में उत्साह बढा और नामजप एकाग्रता से होने लगा । आगे जाकर अनावश्यक विचार न्यून हुए । घर के काम करते समय और मेरे क्षेत्र में रोगियों की चिकित्सा करते समय मुझे साधना का लाभ मिला ।

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​