नवम अखिल भारतीय हिन्‍दू राष्‍ट्र अधिवेशन के पांचवें दिन ‘मंदिरों की रक्षा’ इस विषय पर परिसंवाद

तमिलनाडु में प्राचीन मंदिरों को पुनर्वैभव प्राप्‍त करवाना हो, तो प्राचीनकाल के राजा-महाराजाओं द्वारा डाले गए नियमों के अनुसार मंदिरों का व्‍यवस्‍थापन चलाएं ! – उमा आनंदन्, उपाध्‍यक्षा, ‘टेंपल वर्शिपर्स सोसाइटी’, तमिळनाडु

उमा आनंदन्

फोंडा : भारत में ब्रिटिशों के आने से पूर्व तमिलनाडु राज्‍य में ५८ सहस्र मंदिर थे । आज सरकार के कार्यालय में केवल ४८ सहस्र मंदिरों की प्रविष्‍टि हैं । शेष मंदिरों का क्‍या हुआ ? तमिलनाडु में सर्व मंदिर पहले के राजा-महाराजाओं ने बनाए हैं । ये मंदिर अत्‍यंत संपन्‍न हैं । पहले के राजाओं ने ‘इन मंदिरों का व्‍यवस्‍थापन कौन देखेगा’, ‘व्‍यवस्‍थापन देखनेवालों में कौन-से गुण होने आवश्‍यक हैं’, आदि सर्व सूत्र प्रविष्‍ट कर रखे हैं । इतना ही नहीं, अपितु ‘मंदिर के पुजारी को कितना वेतन देना चाहिए’, राजाओं ने यह भी लिखकर रखा है । इस नियमावली के अनुसार मंदिरों का व्‍यवस्‍थापन चलाने के लिए तमिलनाडु सरकार को मंदिर चलाने की आवश्‍यकता ही नहीं, तमिलनाडु में ‘टेंपल वर्शिपर्स सोसाइटी’ की उपाध्‍यक्षा श्रीमती उमा आनंदन् ने ऐसा प्रतिपादन किया । उस ‘ऑनलाईन’ नवम अखिल भारतीय हिन्‍दू राष्‍ट्र अधिवेशन के पांचवें दिन ‘मंदिरों की रक्षा’ परिसंवाद में वे ऐसा बोल रही थीं ।

उन्‍होंने आगे कहा,

१. तमिलनाडु के मंदिर अत्‍यंत वैभवशाली हैं । उनके पास लाखों एकड भूमि है । अनेक मंदिरों के नाम पर बडी इमारतें हैं । मेरी जानकारी के अनुसार ५ लाख एकड कृषि भूमि मंदिरों के नाम पर है ।

२. मंदिरों की इमारतें सरकार ने किराए पर दी हैं, वहां लूट मची है । उदाहरण के लिए बाजारभाव के अनुसार एक इमारत का किराया यदि ३० सहस्र है, तो सरकार संबंधितों से केवल ३० रुपए ले रही है ।

३. यदि ये वैभवसंपन्‍न मंदिरों का व्‍यवस्‍थापन हिन्‍दुओं के पास आ जाए और वे राजा-महाराजाओं द्वारा बनाई नियमावली के अनुसार चलें, तो हिन्‍दुओं के बच्‍चों को निशुल्‍क शिक्षा और प्रत्‍येक जिले में चिकित्‍सालय खोलकर स्‍वास्‍थ्‍य सेवा दी जा सकेगी । ध्‍यान रखें, स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा का प्रलोभन देकर ही ईसाई हिन्‍दुओं का धर्मपरिवर्तन करते हैं । इसलिए ऐसा करने पर हिन्‍दुओं का धर्मपरिवर्तन रुकेगा ।

४. वर्तमान में राज्‍य सरकार ने कुछ मंदिरों के पुजारियों को भी लिखित रूप में उन्‍हें मानधन न देने की बात कही है ।’ कुछ स्‍थानों पर पुजारियों को ५० रुपए, १०० रुपए अथवा ३०० रुपए का मानधन दिया जाता है; परंतु मंदिरों का व्‍यवस्‍थापन देेखनेवाले को ५० सहस्र से १ लाख रुपए दिए जाते हैं । ये अधिकारी मंदिरों का क्‍या व्‍यवस्‍थापन देखते हैं ?

५. मंदिरों में सरकार द्वारा नियुक्‍त सुरक्षाकर्मियों को ७ सहस्र रुपए से भी अधिक वेतन दिया जाता है । तब भी मंदिरों में प्राचीन मूर्तियों की चोरी हुई और उन्‍हें विदेश भेजा गया ।

६. तमिलनाडु राज्‍य के कुछ मंदिरों की राशि से महंगी चारपहिया गाडियां खरीदी गईं । इतना ही नहीं, उन वाहनों के लिए लगनेवाले इंधन के देयक (बिल) भी मंदिर की राशि से ही दिए गए हैं । मेरा प्रश्‍न यह है कि लोगों को मंहगे वाहनों की आवश्‍यकता ही क्‍या है ?

चिदंबरम् मंदिर को सरकार के बंधन से मुक्‍त करने के लिए की गई न्‍यायालयीन लडाई से ‘टेंपल वर्शिपर्स सोसाइटी’ की स्‍थापना करने की प्रेरणा मिली !

तमिलनाडु का चिदंबरम् मंदिर १ सहस्र ५०० वर्ष प्राचीन है । वह मंदिर सरकार के नियंत्रण में था । उसे मुक्‍त करने के लिए भाजपा के ज्‍येष्‍ठ नेता डॉ. सुब्रह्मण्‍यम् स्‍वामी न्‍यायालय में अभियोग लडें, इस उद्देश्‍य से मंदिर के पुजारी ने मुझसे संपर्क किया । तब हम सब मिलकर डॉ. स्‍वामीजी के पास गए । उस समय डॉ. स्‍वामी ने हमें मंदिर के व्‍यवस्‍थापन, वहां की कार्यप्रणाली के विषय में असंख्‍य प्रश्‍न पूछे; परंतु हम किसी भी प्रश्‍न का उत्तर न दे पाए । ‘हम अपने को कर्महिन्‍दू और श्रद्धालु समझते हैं’; परंतु ‘एक मंदिर कैसे चलाया जाता है, इस विषय में कुछ भी पता नहीं’, इस विचार से मैं शर्मिंदा हुई । तदुपरांत हमने मंदिरों पर अध्‍ययन आरंभ किया । यह अभियोग लडने के लिए जो जानकारी आवश्‍यक थी, वह हम डॉ. स्‍वामी को देते जा रहे थे । हम यह अभियोग उच्‍च न्‍यायालय में हार गए । तदुपरांत उच्‍च न्‍यायालय के खंडपीठ के सामने इसकी सुनवाई हुई । वहां भी हम अभियोग हार गए । उस समय द्रविडी पक्ष के एक गुंडे कार्यकर्ता ने भरी न्‍यायालय मेें न्‍यायाधीश के सामने ही डॉ. स्‍वामी, मुझे और मेरे सहकारी को पीटा । ‘हम सरकार के नियंत्रण से मंदिरों की मुक्‍ति हेतु लड रहे हैं’, इसलिए उसके मन में क्रोध था । तदुपरांत मंदिर रक्षा के लिए हमने लडना आरंभ किया ।’ – उमा आनंदन्, उपाध्‍यक्षा, ‘टेंपल वर्शिपर्स सोसाइटी’, तमिलनाडु.

हिन्‍दू जनजागृति समिति की ओर से महाराष्‍ट्र के सरकारीकृत मंदिरों के भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध आंदोलन ! – श्री. सुनील घनवट, महाराष्‍ट्र और छत्तीसगढ राज्‍य समन्‍वयक, हिन्‍दू जनजागृति समिति

श्री. सुनील घनवट

पूर्व काल में राजा मंदिरों का संवर्धन करते थे । कुछ राजा मंदिर निर्माण भी करते थे; परंतु आज के निधर्मी राज्‍यकर्ता मंदिरोें की संपत्ति लूट रहे हैं । पश्‍चिम महाराष्‍ट्र में मंदिरों का नियंत्रण करनेवाली ‘पश्‍चिम महाराष्‍ट्र देवस्‍थान समिति’ वर्ष १९६७ में स्‍थापित हुई है । इस समिति के अंतर्गत ५ जिलों में ३ सहस्र से भी अधिक मंदिरों का कार्यभार देखा जा रहा है । सूचना अधिकार कानून के अंतर्गत यहां के मंदिरों की भूमि की जानकारी ली, तब ध्‍यान में आया कि ७ सहस्र एकड भूमि का घोटाला हुआ है । भूमि के खनिज उत्‍खनन से मिलनेवाली राशि वर्ष १९८५ से मंदिर को नहीं मिली और आभूषण लापता हैं । इस समिति की स्‍थापना से वर्ष २००४ तक लेखापरीक्षण नहीं हुआ । पंढरपुर के मंदिर का १ सहस्र २५० एकड भूमि की कोई भी जानकारी कार्यालय में उपलब्‍ध नहीं । शिर्डी के साई मंदिर में तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति श्रीमती प्रतिभाताई पाटील केवल एक घंटे के लिए आनेवाली थीं, इसके लिए ९३ लाख रुपए व्‍यय कर मार्ग बनवाया गया । निळवंडे बांध के लिए इसी मंदिर से ५०० करोड रुपए की राशि दी गई । समिति की ओर से इन सभी घटनाओं का निषेध कर, आंदोलन छेडा गया । उस पर न्‍यायालयीन प्रक्रिया चल रही है । इस प्रकार राज्‍य के अनेक मंदिरों में भ्रष्‍टाचार हुए । ये हैं मंदिर सरकारीकरण के दुष्‍परिणाम !

मंदिरों पर अतिक्रमण कर उन पर नियंत्रण करनेवाली सरकार पर कौन नियंत्रण रखेगा ? – अधिवक्‍ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष, हिन्‍दू विधिज्ञ परिषद

अधिवक्‍ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर

‘अप्रतिम व्‍यवस्‍थापन’ के नाम पर निधर्मी सरकार मंदिरों की राशि पर आंखें गडाए मंदिरों का सरकारीकरण कर रही है । धडल्ले से अनेक मंदिरों की भूमि, आभूषण और राशि की लूटपाट हो रही है । देशभर में मंदिर की संपत्ति एक ही ढंग से लूटी जा रही है । लूट की आकडेवारी भले भिन्‍न हो, परंतु तरीका एक ही है । मंदिर नियंत्रण में लेने के उपरांत, सरकार वहां किसी प्रशासकीय अधिकारी की नियुक्‍ति करती है । इस अधिकारी को ‘मंदिर व्‍यवस्‍थापन’ का अनुभव नहीं होता । मंदिरों की राशि लूटनेवालों को होनेवाले दंड कानून में आज सुधार की आवश्‍यकता है । चारधाम मंदिर के न्‍यासी वहां के मुख्‍यमंत्री हैं । यह कैसे ? मंदिरों के न्‍यासी का चुनाव भी भक्‍तों में से ही करना चाहिए । मंदिर नियंत्रण में लेकर उस पर नियंत्रण करनेवाली सरकार पर कौन नियंत्रण रखेगा ?

एक ओर सरकार, मंदिरों का सरकारीकरण कर रही है और दूसरी ओर मुसलमानों के धार्मिक स्‍थलों के नियंत्रण के लिए ‘वक्‍फ बोर्ड’ है । महाराष्‍ट्र के वक्‍फ बोर्ड के पास ९२ सहस्र एकड भूमि है, तब भी शासन उसे अनुदान देती है । यह भेद-भाव दूर होना चाहिए । इसके लिए प्रसारमाध्‍यम, सामाजिक प्रसारमाध्‍यमों और आंदोलनों द्वारा यह विषय सर्वसामान्‍य व्‍यक्‍ति तक पहुंचाना चाहिए ।

आंध्रप्रदेश में मंदिरों की १.२५ लाख एकड भूमि न्‍यायालयीन लडाई कर अतिक्रमणकारियों से मुक्‍त की ! – श्री. बी.के.एस.आर. अय्‍यंगार, सामाजिक कार्यकर्ता तथा इतिहासकार, आंध्रप्रदेश

श्री. बी.के.एस.आर. अय्‍यंगार

आंध्रप्रदेश में मंदिरों की १.२५ लाख एकड भूमि पर अतिक्रमण था । इस विषय में सरकार के देवस्‍वम बोर्ड से संपर्क करने पर भी अधिकारियों ने उस पर कोई कार्यवाही नहीं की । तदुपरांत हम यह विषय न्‍यायालय ले गए और कानूनन लडाई से अतिक्रमणकारियों के बंधन से १.२५ एकड भूमि मुक्‍त करने में हमें सफलता मिली । उस समय उच्‍च न्‍यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि ‘मंदिरों की कोई भी भूमि बेची नहीं जा सकती है ।’ राज्‍य के विविध मंदिरों की लाखों एकड भूमि पर अतिक्रमण हुआ है; परंतु उस विषय में देवस्‍वम मंडल के अधिकारियों को गंभीरता नहीं । यह भूमि पुन: पाने के लिए हिन्‍दुओं को जोरदार संघर्ष करने की आवश्‍यकता है ।

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