भगवान कृष्ण का नाम राधा नाम के बिना अधूरा माना जाता है। तभी तो लोग राधे कृष्ण राधे कृष्ण कहकर जयकारे लगाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के करीब १५ दिन बाद राधा जन्माष्टमी मनाई जाती है। जो इस साल ६ सितंबर को है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन राधा का जन्म हुआ था। इस त्यौहार की खास रौनक इनके जन्म स्थान बरसाने में देखने को मिलती है। बरसाना के लाडिली जी मंदिर सहित अन्य सभी मंदिरों को इस दिन विशेष रूप से सजाया जाता है। इस दिन लोग पति और बेटे की लंबी उम्र के लिए और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत रखते हैं।
राधाष्टमी तिथि और पूजा मुहूर्त
तिथि : ६ सितंबर, शुक्रवार
अष्टमी तिथि आरंभ : ५ सितंबर, रात ८.४९ से
अष्टमी तिथि की समाप्ति : ६ सितंबर, रात ८.४३ बजे
राधा अष्टमी व्रत पूजा विधि
व्रत रखने वाले जातक इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि काम निपटाकर साफ सुथरे कपडे धारण करें। अब पूजा घर में एक कलश की स्थापना करें। उस कलश पर तांबे का बर्तन रखें। इसके बाद राधा माता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। इसके बाद माता की मूर्ति को कलश पर रखे पात्र पर स्थापित करें और उनकी पूरी विधि विधान के साथ पूजा करें। भोग के रूप में फल, मिठाई आदि अर्पित करें। इस पूजा को सुबह करने के बाद दिन भर व्रत करें। इस व्रत में निराहार रहा जाता है। शाम के समय में पूजा के बाद फल ग्रहण किया जाता है। फिर अगले दिन अपनी यथाशक्ति अनुसार सुहागिन महिलाओं और ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दक्षिणा दें।
राधा अष्टमी व्रत का महत्व
ऐसा माना जाता है कि राधा रानी के प्राकट्य दिवस पर व्रत रखने से भगवान कृष्ण भी प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से धन की कमी नहीं होती और घर में बरकत बनी रहती है। संतान और पति की लंबी आयु के लिए भी इस व्रत का विशेष महत्व है।
स्त्रोत : जनसत्ता