तोड़ा जा रहा है १९७१ में पाकिस्‍तान की कमर तोडने वाले युद्धपोत विक्रांत

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, कलियुग वर्ष ५११६

मझगांव यार्ड पर खड़ा विक्रांत

मुंबई : देश के इस पहले विमान वाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत को तोड़ने का काम मझगांव डॉक के दारूखाना इलाके में शुरू हो गया है। मुंबई महानगरपालिका इसे १०० करोड़ रुपए में खरीद कर संग्रहालय बनाना चाहती थी। इसके लिए वह सुप्रीम कोर्ट भी गई, लेकिन उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी। पोत के ६० प्रतिशत हिस्से को मुंबई की मैरिटाइम हिस्ट्री सोसायटी में भेजा जाएगा। कुछ हिस्सा गोवा के नेवल एविएशन म्यूजियम और अन्य पुर्जे विभिन्न संग्रहालयों और संबद्ध केंद्रों को दिए जाएंगे।

विक्रांत का गौरवशाली इतिहास

 •  १९५७ में ब्रिटेन से भारत लाया गया था।
•  १९५९ को नौसेना में शामिल हुआ था।
•  १९९७ में इसे सेवामुक्त किया गया था।
  २०,००० टन है वजन।
•  ८ महीने लगेंगे तोड़ने में।

आईएनएस विक्रांत भारत का पहला एयरक्राफ्ट कैरियर था, जिसने इतिहास के पन्नों में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवाया। इसे १९७१ युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान (अभी बांग्लादेश) के चिटगांव और कॉक्स बाजार बंदरगाह पर तैनात किया गया था। इसके डर से पाकिस्तानी सेना को बांग्लादेश छोड़ भागना पड़ा।

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मार्च १९६१ में यूके में भारतीय राजदूत विजयलक्ष्मी पंडित ने नॉर्दर्न आयरलैंड के बेलफास्ट में इसे कमीशन किया। ३ नवंबर, १९६१ को मुंबई (तब बॉम्बे) में इसे औपचारिक रूप से नौसेना में शामिल किया गया। इस मौके पर आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरू और कई गणमान्य लोग मौजूद थे।

 • कमीशन के १० साल बाद विक्रांत ने पहली बार १९७१ बांग्लादेश में बड़ा रोल प्ले किया और वो भी तब, जब इसके बायलर में बड़ी दरार आ चुकी थी। पाकिस्तान ने बंगाल की खाड़ी के रास्ते अपनी पनडुब्बी गाजी भेजकर विशाखापट्टनम हार्बर के आसपास बारूदी सुरंगें लगवाई थी, ताकि एयरक्राफ्ट कैरियर को बंदरगाह से दूर रखा जा सके। लेकिन विक्रांत के आगे उसके एक न चली।

 • आईएनएस विक्रांत द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ब्रिटेन की रॉयल नेवी द्वारा बनाए गए ६ मेजेस्टिक क्लास के एयरक्राफ्ट कैरियर में से एक है। पहला कैरियर ही बन पाता, इससे पहले ही युद्ध खत्म हो गया।

 • इन ६ एयरक्राफ्ट कैरियर्स में से एक भी रॉयल नेवी में शामिल न हो सका। दो-दो कैरियर कनाडा और ऑस्ट्रेलिया नेवी को दिए गए, जो अब सेवा में नहीं हैं और तोड़े भी जा चुके हैं। पांचवां कैरियर हरक्यूलिस भारतीय नौसेना को दिया गया, जिसका नाम रखा गया विक्रांत। लेवीथान नाम के छठवें कैरियर को भी तोड़ा जा चुका है।

१९४५ में हरक्यूलिस का निर्माण ऐन मौके पर रोक दिया गया था। उस वक्त इसे ब्रिटिश नौवाहन विभाग के स्टेट प्रिज़रवेशन में रखा गया था, इसके बाद १९५७ में इसे भारत को दिया गया। इसके लिए विक्रांत को आयरलैंड के बेलफास्ट भेजा गया और एक प्राइवेट शिपयार्ड में उन्नत बनाने के साथ आधुनिक साजो-सामान से भी लैस किया गया। इसके बाद मार्च १९६१ में इसे कमीशन किया गया।

 • हरक्यूलिस को विकर्स आर्मस्ट्रांग ने बनाया था। कमीशन से पहले जब भारत ने खरीदा, तो चार साल तक इसे बेलफास्ट के हारलैंड और वोल्फ यार्ड में दोबारा तैयार किया गया। यहां इसमें फ्लाइट डेक और भाप-गुलेल लगाई गई, जिसकी खोज युद्ध के बाद हुई थी। इस पर ब्रिटिश सी-हॉक और मित्र देशों के एयरक्राफ्ट की दो स्क्वॉर्डन तैनात की गई थी।

 • कैप्टन प्रीतम सिंह विक्रांत के पहले कमांडिंग अफसर थे। १८ मई, १९६१ को उनके नेतृत्व में ही विक्रांत पर पहले एयरक्राफ्ट ने लैंड किया। इस मौके पर लेफ्टिनेंट (बाद में एडमिरल) आरएस तहिलियानी भी मौजूद थे।

 • बांग्लादेश युद्ध तक विक्रांत ने शायद ही कभी गनफायर किया हो। १९६२ में भारत-चीन युद्ध के समय इसे असम में तैनात किया जाना था, जहां एयरफील्ड से तब सी-हॉक विमानों उड़ान भर रहे थे। स्क्वॉर्डन ने इस हवाई पट्टी को कुछ ही हफ्तों में तैनात किया था।

 • १९६५ में जब विक्रांत मरम्मत के लिए गया, तो पाकिस्तानियों ने इसे डुबो देने का दावा किया। विक्रांत को जामनगर भेजा गया और उसके तुरंत बाद कराची में नाइट ऑपरेशन को अंजाम दिया गया। इसके बाद इसे वापस बंबई बुला लिया गया।

 • बांग्लादेश की लड़ाई में अपना कौशल दिखाने के लिए विक्रांत को २ महावीर चक्र और १२ वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

 पहला हैरियर VSTOL जम्पजेट मिला। हैरियर ऑपरेशन के वक्त यह युद्धपोत उन्हें नौसेना के बंदरगाह पर खड़े होने के बाद  भी उड़ान भरने की सहूलियत देता था।

स्त्रोत : दैनिक भास्कर

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