हिन्दू जनजागृति समिति का ‘आदर्श गणेशोत्सव अभियान।
सामूहिक गणेशोत्सव : विविध अनुमतियों के लिए एक खिडकी योजना आरंभ होने के लिए सभी मंडलों को संगठित कर शासन को ज्ञापन प्रस्तुत करेंगे। – अधिवक्ता श्री. विवेक भावे, हिन्दू विधिज्ञ परिषद
हिन्दुओं के त्योहार एवं उत्सव हिन्दू संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। लोकमान्य तिलकजी ने राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए गणेशोत्सव को सामूहिक रूप देने की संकल्पना दी; परंतु आज धर्मशिक्षा के अभाव से इस मूल उद्देश्य को ही दूर रखा गया है। अब उत्सवों में विकृतियां पनप रहीं हैं एवं उत्सवोंका बाजारीकरण हो रहा है। इस ग्लानि को दूर कर पुनः एक बार राष्ट्र एवं धर्म के उत्थान के लिए कार्यप्रवण हिन्दुओं की एक शक्ति बने; इसके लिए हिन्दू जनजागृति समिति अन्य समविचारी हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन एवं धर्माभिमानियों के साथ कार्यरत है। पिछले कुछ दशकों से उत्सवों में होनवाली अनिष्ट घटनाओं को रोकने के लिए शासन को ज्ञापनें प्रस्तुत करना, उत्सव मंडलों का उद्बोधन करना, समाचारवाहिनियोंपर आयोजित परिचर्चाएं, नियतकालिक एवं प्रवचनों के माध्यम से मूर्तिविसर्जन का शास्त्र विशद करना, इस प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। आज इसे एक व्यापक स्वरूप प्राप्त हुआ है। इससे युवकों का बडी मात्रा में संगठन हो रहा है एवं त्योहार एवं उत्सवों को आदर्श पद्धति से मनाने का संकल्प किया जा रहा है। भावी हिन्दू राष्ट्र की ओर यह एक कदम ही है।
मुंबई में १५ जुलाई को इस विषय पर एक शिविर संपन्न हुआ। उसीका वृत्तांत यहां प्रस्तुत कर रहें हैं . . .
कल्याण : धार्मिक उत्सव हिन्दुओं के जीवन का अभिन्न अंग हैं। लोगों ने सामूहिक उत्सवों को मनोरंजन के रूप में नहीं, अपितु उत्सव के रूप में ही मनाने चाहिए। उत्सव में धर्माचरण करने से उसका लाभ हम ही को मिलनेवाला है। सामूहिक उत्सव मनाते समय हमें अग्निशमन दल, पुलिस प्रशासन एवं महानरपालिका जैसी अनेक सरकारी अनुमतियों के लिए विविध स्थानों की भागदौड करनी पड़ती है। यह अनेक मंडलों को कष्टप्रद होता है। इस कष्ट के निराकरण हेतु शासन की ओर से ‘एक खिडकी योजना’ का आरंभ हो; इसके लिए हम सभी मंडल संगठित रूप से शासन को ज्ञापन प्रस्तुत करेंगे। हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ता श्री. विवेक भावे ने ऐसा आवाहन किया।
यहां के पश्चिम क्षेत्र के नवजीवन फाऊंडेशन में २९ जुलाई को सायंकाल ५ से ८.३० की अवधि में हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से सामूहिक उत्सव समन्वय शिविर का आयोजन किया गया था। उसमें वे बोल रहे थे। इस शिविर को कल्याण के सद्गुरु स्वामी समर्थ सेवा न्यास के संस्थापक वंदनीय श्री मोडक महाराज ने आशीर्वादरूपी संदेश दिया।
कार्यक्रम का आरंभ शंखनाद एवं दीपप्रज्वलन से किया गया। डॉ. दीक्षा पेंडभाजे ने कार्यक्रम का सूत्रसंचालन किया। हिन्दू जनजागृति समिति की श्रीमती वेदिका पालन ने शिविर का उद्देश्य स्पष्ट किया। २४ मंडलों के प्रतिनिधि, २ हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के प्रतिनिधि और २६ धर्माभिमानियों ने इस शिविर का लाभ उठाया। अंतिम सत्र में एक गुटचर्चा का आयोजन किया गया था। इस गुटचर्चा में सभी ने अपने अच्छे-बुरे अनुभव कथन किए। इसके साथ ही ‘आदर्श गणेशोत्सव’ के माध्यम से बडी मात्रा में संगठन खडा करने की, साथ ही स्वयं धर्मशिक्षा लेकर उसके अनुसार आचरण की भी बात कही गई।
हिन्दू संस्कृति के अनुसार उत्सव मनाए गए, तो उसका समाज के साथ साथ ही स्वयं को भी लाभ मिलेगा। – श्री. अभिजीत भोजणे, हिन्दू जनजागृति समिति
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सामूहिक उत्सवों का आरंभ किया और उसके माध्यम से अनेक क्रांतिकारी भी सिद्ध हुए। आज गणेशोत्सव प्रतियोगिता के रूप में मनाए जा रहे हैं। आज जो सजावट की जाती है, उसके लिए बडी मात्रा में धन का व्यय किया जाता है; परंतु उससे हमें कुछ लाभ नहीं मिलता। इसके विपरीत हिन्दू संस्कृति के अनुसार उत्सव मनाए गए, तो समाज के साथ साथ स्वयं को भी उससे लाभ मिलनेवाला है। हमें इसका ध्यान रखना चाहिए कि सामूहिक उत्सव एवं त्योहार हिन्दू संस्कृति के अभिन्न अंग हैं और उसके अनुरूप उनकी पवित्रता टिकाई रखी जानी चाहिए। ऐसा करने से ही हम पर ईश्वर की कृपा होगी।
सामूहिक उत्सवों के माध्यम से संगठित रूप से धर्मकार्य का समय अब आ गया है। – श्री. गिरीश धोकिया, अध्यक्ष दूधनाका गणेशप्रेमी मंडल
लोकमान्य तिलक ने समाज को संगठित करने हेतु गणेशोत्सव को सामूहिक स्वरूप में मनाने की संकल्पना रखी थी। तो क्या आज हम वैसा कर रहे हैं ?, इसका चिंतन किया जाना चाहिए। अब सामूहिक उत्सवों के माध्यम से संगठित रूप से धर्मकार्य का समय आ गया है। साथ ही प्लास्टर ऑफ पैरिस के उपयोग के कारण होनेवाले जलप्रदूषण को टालने के लिए हम खडिया मिट्टी से बनीं गणेशमूर्तियों की स्थापना का संकल्प लेंगे। गणेशोत्सव में ऊंचे ऊंचे स्वरों में गाने बजाना, मदिरापान करना, अंगविक्षेप करते हुए नृत्य करना, मंडप में जुआ खेलना जैसी अप्रिय घटनाओं को टालकर धर्माचरण करते हुए आदर्श गणेशोत्सव मना कर सभी के सामने आदर्श रखेंगे।
हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा चलाए जा रहे अभियान को उत्सव के माध्यम से लोगों के सामने ले जा कर आदर्श स्थापित करेंगे। – श्री. बाळा परब, रामबाग सामूहिक गणेशोत्सव मंडल
मंडलों के माध्यम से अनेक धार्मिक उपक्रम चलाए जाते हैं। इस माध्यम से हमे अपनी संस्कृति को संजोना चाहिए। हमें आनंदप्राप्ति हेतु उत्सव मनाने चाहिए; परंतु आज उनमें विकृतियों ने प्रवेश किया है, जो खेदजनक है। हिन्दू संस्कृति विश्व की सबसे महान संस्कृति है, ऐसे में आज हम किस प्रकार से उत्सव मना रहे हैं, इसका हमें चिंतन करना चाहिए। आज हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा चलाया जा रहा यह अभियान प्रशंसनीय है। समिति सभी मंडलों के लिए आधारस्तंभ के रूप में खडी है। हम हिन्दू जनजागृति समिति के इस अभियान को उत्सव के माध्यम से लोगों के सामने ले जाकर एक आदर्श सामने रखेंगे।
हिन्दुओ में धर्मशिक्षा का अभाव होने से हिन्दुओंद्वारा ही अज्ञानवश कुछ विकृत कृत्य किए जाते हैं। – आधुनिक वैद्य डॉ. उपेंद्र डहाके, कल्याण नगर उपाध्यक्ष, भाजपा
धर्मशिक्षा के अभाव से हिन्दुओंद्वारा अज्ञानवश विकृत कृत्य किए जाते हैं। आज उत्सवों के लिए लोगों से बलपूर्वक चंदा लिया जाता है। यह एक प्रकार से फिरौती वसूल करने जैसा ही है। महिलाओं की ओर देखकर अंगविक्षेप करना भी एक प्रकार से महिलाओं का विनयभंग ही है। इसके साथ ही शोभायात्रा में मदिरापान कर सहभागी होना, मंडप में जुआ खेलना जैसी अनेक घटनाएं होती हैं। उसके कारण ही हम पर बंधन डाले जा रहे हैं। श्री गणेश तो बुद्धि की देवता है, तो इसमें ऐसी विनाशकारी बुद्धि क्यों आई ?, इस पर हमें चिंतन करना चाहिए एवं हममें निहित भेदभाव को भूलकर हमें संगठित होकर आदर्श गणेशोत्सव मनाना चाहिए।
हमें मंडलों के माध्यम से धर्मजागृति एवं धर्मरक्षा का कार्य करना है। – श्री. शंभू गवारे, प्रवक्ता, सनातन संस्था
आनेवाले समय में हमें संगठित रहने की आवश्यकता है। वर्ष २०२३ में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना तो होने ही वाली है। उसमें हम अपना योगदान देकर धर्मकार्य में सहभागी होंगे। लोकमान्य तिलक ने इस उत्सव के माध्यम से भारतीय लोगों के मन में अंग्रेजों के विरोध में व्याप्त असंतोष को संगठित किया। हमें मंडलों के माध्यम से धर्मजागृति एवं धर्मरक्षा का कार्य करना है।
सामूहिक मंडलों को संगठित करने का उपक्रम बहुत ही प्रशंसनीय है। – वंदनीय श्री मोडक महाराज, संस्थापक, सद्गुरु स्वामी समर्थ सेवा न्यास, कल्याण (पश्चिम)
आप के द्वारा सामूहिक मंडलों को संगठित करने का जो उपक्रम हाथ में लिया गया है, वह उत्कृष्ट एवं प्रशंसनीय है। मेरे भी मन में इसी प्रकार से मंडलों को संगठित करने के विचार थे; परंतु देर से क्यों न हों आपके माध्यम से ईश्वर ही यह कार्य करवा ले रहे हैं, इसका मुझे बहुत संतोष है। मंडलों के माध्यम से जो अनिष्ट कृत्य किए जाते हैं उस संदर्भ में उद्बोधन किया जाना, आदर्श पद्धति से उत्सव मनाए जाने चाहिए। इस माध्यम से हिन्दू संस्कृति की रक्षा हो एवं सभी मंडलों में एकता बनी रहें, ऐसा मुझे लगता है। मेरी ओर से आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं और आशीर्वाद।
आज के हिन्दू धर्माचरण नहीं करते। माता-पिता अपने बच्चों को संस्कारित करने के लिए प्रयास नहीं करते, उससे आज की पीढी धर्म के संदर्भ में संस्कारहीन बनती जा रही है। यदि ऐसी ही स्थिति रही, तो शीघ्र ही हम इस देश में अल्पसंख्यक बन जाएंगे। इसमें परिवर्तन लाने हेतु धर्माचरण की आवश्यकता है। हमें केवल जन्महिन्दू न रहते हुए धर्माचरणी बनकर हिन्दू धर्माभिमानी बनना चाहिए। उससे ही हम अपनी अगली पीढी एवं हमारी संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं। उसके लिए हर हिन्दू को कुछ बंधनों का पालन करना पडेगा, तभी तो आनेवाली पीढी में धर्माभिमान उत्पन्न होगा।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात