काला पडा ‘सनबर्न फेस्टिवल !

‘प्रखर धूप के कारण (सूर्य के अतिनील किरणों के कारण) त्वचा काली पडने को अंग्रेजी भाषा में ‘सनबर्न’ कहा जाता है । २८ से ३१ दिसंबर २०१६ की कालावधि में फुरसुंगी (जि. पुणे) में शब्द के अर्थ से साधम्र्य रहनेवाला एवं नशीले पदार्थों के माध्यम से युवा पीढी को सांस्कृतिक एवं नैतिक दृष्टि से काला पडा ‘सनबर्न फेस्टिवल’ आयोजित किया गया है । व्यसनाधीनता को प्रोत्साहित करनेवाले इस कार्यक्रम को संस्कृतीप्रेमी नागरिकों की ओर से भारी मात्रा में विरोध हो रहा है एवं ‘देश की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में ऐसे कार्यक्रम होने ही नहीं चाहिए’, ऐसी मांग बढ रही है ।

१.‘सनबर्न फेस्टिवल‘ के लिए पुणे को ही क्यों चूना गया ?

‘सनबर्न’ की पाश्र्वभूमि पर पुणे एवं नशीले पदार्थ इस विषय पर गंभीरता से देखना आवश्यक सिद्ध होगा । गोवा शासन द्वारा अस्वीकृत इस कार्यक्रम के लिए आयोजकों ने मुंबई तथा नागपुर जैसे नगर अथवा अन्य राज्यों के नगरों की अपेक्षा पुणे का चयन करना ‘रॅन्डम सिलेक्शन’ नहीं है । पुणे को घेरे नशीले पदार्थों में पुणे के चयन का कारण हो सकता है !

२. नशीले पदार्थों के घेरे में पुणे !

पुणे नगर को विद्या का मायका समझा जाता है । पुणे शैक्षणिक केंद्र होने से ही परराज्य तथा विदेश के अनेक युवक-युवती शिक्षा के निमित्त नगर में आते हैं । संभवतः इसीलिए अमली पदार्थों की तस्करी एवं नशीलेपदार्थों को ग्राहक प्राप्त करवाने हेतु पुणे नगर पर लक्ष्य केंद्रित किया जाता है । युवावर्ग का व्यसनों के अधीन होने का प्रमाण लक्षणीय है । एक अंकवारी के अनुसार भारत में १० करोड ८० लाख युवक विविध व्यसनों के जाल में फंसे हैं । देश में धूम्रपान के कारण प्रतिवर्ष १० लाख मृत्यु होते हैं । सर्वाधिक प्रमाण में सिगारेट पीनेवाले लोगों मेें चीन के पश्चात भारत का क्रमांक लगता है !

पुणे नगर एवं परिसर में नशीले पदार्थों की तस्करी तथा नशीले पदार्थ जब्त करने की घटनाएं हो रही हैं । हाल-ही में पुलिस द्वारा सिम्बायोसिस महाविद्यालय में पढनेवाले एक विद्यार्थी के साथ अन्य एक को मेफोड्रोन (एमडी) नामक नशीला पदार्थ विक्रय के लिए रखने के प्रकरण में बंदी बनाया गया है । उससे १ लाख ९ सहस्र रुपए मूल्य का मेफोड्रोन एवं एक स्कोडा कार जब्त की गई । विमाननगर परिसर के सीसीडी चौक में सार्वजनिक मार्ग पर दोनों भी नशीले पदार्थों के विक्रय हेतु आनेवाले हैं, ऐसा समझने पर पुलिस द्वारा उन्हें बंदी बना लिया गया । पिंपरी में भी इसी माह में नशीले पदार्थ विरोधी पथक द्वारा ब्राऊन शुगर का विक्रय करने हेतु आइ एक बुरखाधारी महिेला फैजानअहमद अन्सारी को नियंत्रण में लेकर उससे ५० लाख रुपयों की १ किलो ब्राऊन शुगर जब्त की गई । बीच बीच में कोरेगाव पार्कसमान उच्चभ्रू स्थान पर भारी मात्रा में नशीली पदार्थों का व्यवहार किए जाने के समाचार आते रहते हैं । हाल-ही में अपराध शाखा के डकैती प्रतिबंधक विभाग द्वारा लेवी मडुग्वे नामक नाइजेरियन व्यक्ति को साधू वासवानी चौक में नियंत्रण में लिया गया । उससे १ लाख १३ सहस्र रुपयों का केन जब्त किया गया । नशीले पदार्थों के साथ ही ‘रेव पार्टियों’ का विषय भी भयदायी है । लोणावळा में तथा पुणे-मुंबई महामार्ग पर बंगलों में पुलिस को गुमराह कर ‘रेव पार्टियां’ आयोजित की जाती है, यह स्पष्ट रहस्य है । मार्च २००७ में सिंहगढ के पास आयोजित ‘रेव पार्टी’ में मारे गए छापे में २५० से अधिक युवकों को नियंत्रण में लिया गया था । संक्षेप में पुणे नगर एवं परिसर के आसपास रहनेवाले नशीले पदार्थां के घेरे में भयानकता स्पष्ट करने हेतु उपरोक्त प्रातिनिधिक उदाहरण पर्याप्त हैं ।

३. उच्चभ्रू वर्ग ही नशीले पदार्थो के अधीन क्यों है ?

सामान्य तौर पर नशीले पदार्थों का सेवन एवं रेव पार्टियों में उच्चभ्रू युवक-युवतियों का सहभाग दिखाई देता है । इसका कारण है संस्कारों की पूंजी ! दिन-ब-दिन संंस्कारों की पूंजी न्यून होती जा रही है, तब भी अभी तक मध्यमवर्गीय परिवारों में संस्कारों का प्रभाव दिखाई देता है । इसके विपरीत अनेक बार उच्चभ्रू घरों में हिन्दू संस्कृति, धर्माचरण एवं संस्कारों को बेकार समझने के कारण ही ऐसे घर के युवक व्यसन एवं नशीले पदार्थों के अधीन जाकर स्वयं ही बेकार बनते हैं ।

४. पाश्‍चात्त्य संगीत उच्छृंखलता बढानेवाला ही है !

‘हाय प्रोफाईल’ प्रीतिभोज में दिखाई देनेवाली और भी एक समान बात यह कि ‘डीजे’ के दणदणाट में बजाया जानेवाला पाश्‍चात्त्य संगीत (पॉप संगीत) ! ‘सनबर्न’ फेस्टिवल में भी दनदनाहट में ‘इलेक्ट्रॉनिक’ वाद्य बजाते समय घिनौना नृत्य किया जाता है । मौज के नाम पर युवकों के कदम भी पॉप संगीत पर थिरकने लगते हैं । इस से उच्छृंखलता बढती है । ऐसा अनुभव भारतीय शास्त्रीय संगीत के संदर्भ में कभी नहीं आएगा । शास्त्रीय संगीत लगाने पर किसी के भी मन में बेसुध होकर थिरकने का विचार नहीं आएगा । उलटे भारतीय संगीत श्रोताओं को मनःशांति का अनुभव कराता है ।

५. अर्थ एवं पर्यटन वृद्धी के अन्य स्त्रोत क्या समाप्त हुए है ?

गणेशोत्सव की कालावधि में पुणे नगर के गणेश कला क्रीडा मंदिर में संपन्न ‘पुणे फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन के समारोह में महाराष्ट्र राज्य के पर्यटनमंत्री ने पुणे नगर को पाश्‍चात्त्य नववर्ष के उपलक्ष्य में (१ जनवरी) ‘सनबर्न फेस्टिवल’ की भेंट मिलेगी ऐसा घोषित किया था । इस के अनुसार ‘सनबर्न’ के आयोजकों के लिए महाराष्ट्र शासन ने व्यवस्था की राजस्व तथा पर्यटन में वृद्धि होने हेतु ऐसे कार्यक्रम आयोजित करना स्वागतार्ह है, ऐसा कह अपनी प्रशंसा की; परंतु वास्तव में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ‘सनबर्न’समान फेस्टिवल के आयोजन का विचार करना अर्थात अपने पास रहनेवाले माणिक, हिरे एवं मोती कोे दुर्लक्षित कर पथरों की माला पहनकर घूमने समान है । पुणे में प्रतिवर्ष दिसंबर में सवाई गंधर्व महोत्सव मनाया जाता है । शास्त्रीय संगीत को अनुभव करने हेतु विदेश के रसिक भी इस महोत्सव में उपस्थित रहते हैं । सवाई गंधर्व महोत्सव समान ही ‘ब्रैंडिंग’ करने समान अनेक अद्वितीय घटनाएं पुणे नगर एवं भारत में रहते समय ‘सनबर्न’समान दरिद्रता सूझना दुर्भाग्यपूर्ण ही कहना होगा ।

६. तेज की उपासना करनेवाले पूरे भारतीय नागरिक इस कार्यक्रम को वैधानिक मार्ग से विरोध करेंगे !

हिन्दुओं की मूल प्रकृति तेजस्वी है । तेज की उपासना कर अपने में ब्रह्मशक्ति जागृत करना है । इसीलिए सूर्य के कारण त्वचा काली करनेवाले ‘सनबर्न’समान कार्यक्रमों को वैधानिक मार्ग से विरोध करना क्रमप्राप्त सिद्ध होता है ।

– प्रा. (कु.) शलाका सहस्रबुद्धे

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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