स्टार प्लस चैनल पर चल रहे धारावाहिक ‘सिया के राम’ में भगवान श्रीराम और माता सीता का घोर अनादर

अनेक श्रद्धालु हिन्दुआें ने हिन्दू जनजागृति समिति को ‘‘‘सिया के राम’’’ शीर्षक से स्टार प्लस चैनल पर चल रहे धारावाहिक अर्थात सीरियल के विषय में बताया है ।

हिन्दुआें का कहना है कि, वास्तविकता को तोड मरोड कर धारावाहिक, श्रीराम और माता सीता को महत्त्वहीन बनाकर प्रस्तुत कर रहा है ।

शिकायतों का निरीक्षण करने पर हिन्दू जनजागृति समिति ने स्टार टीवी नेटवर्क से अपील कर निवेदन किया है कि, ‘इस धारावाहिक को तत्काल, स्टार प्लस से हटा दिया जाए ।’ हिन्दू जनजागृति समिति ने स्पष्ट किया है कि, यह धारावाहिक न केवल भ्रामक और मूल लेखन के विपरीत है, अपितु रामायण और हिन्दुत्व पर धर्मनिरपेक्षता और उदारवादी विचार मूल्यों को भी थोपता है ।

परंतु अब तक समिति को स्टार टी.वी. नेटवर्क से कोई उत्तर नहीं मिला है । वहीं हिन्दू भी आगे दिए संपर्क क्रमांक तथा इमेल पत्ते पर अनादर के विरुद्ध ई-मेल अथवा दूरभाष कर शांतिपूर्ण और न्यायिक मार्ग से स्टार प्लस चैनल का विरोध कर रहे है ।

संपर्क : स्टार प्लस नेटवर्क
संपर्क क्रमांक : (०२२) ६६३० ५५५५, (०२२) ४९६२ ५५९०
इ-मेल : [email protected] , [email protected]


धारावाहिक ‘‘‘सिया के राम’’’ : वास्तविकता से कोसों दूर !

हिन्दुओ, वैधानिक मार्ग से देवी-देवताआें का अनादर रोककर अपना धर्मकर्तव्य निभाएं ! – हिन्दू जनजागृति समिति

अनेक श्रद्धालु हिन्दुओं ने समिति को स्टार प्लस चैनल पर चल रही निर्माता-निर्देशक निखिल सिन्हा की ‘‘सिया के राम’’ धारावाहिक के विषय में बताया कि, इसमे वास्तविकता को तोड-मरोड कर श्रीराम व माता सीता को महत्त्वहीन बनाकर प्रस्तुत किया गया है । परिवादों का निरीक्षण करने पर समिति ने स्टार टीवी नेटवर्क से अपील कर निवेदन किया है कि, इस धारावाहिक को तत्काल, स्टार प्लस से हटा दिया जाए ।’ पूरी कथा कार्यक्रम के निर्माताओं के हिन्दू धार्मिक विधियों के प्रति अज्ञान के साथ-साथ हिन्दू प्रथाओं पर पशु अधिकारों की आधुनिक कथाओं का प्रत्यारोपण करने के उद्देश्य को भी दर्शाती है ।

गत माह, स्टार प्लस चैनल ने भारत में अत्यधिक आडंबर के साथ भगवान श्रीराम की कथा पर आधारित एक नया टीवी धारावाहिक ‘‘सिया के राम’’आरंभ किया । इस धारावाहिक ने रामायण को ‘सीता की दृष्टि’ से दिखाने का दावा किया था । इसके निर्माता-निर्देशक निखिल सिन्हा ने यह भी कहा था कि, धारावाहिक वास्तविकता को दर्शाता है और यह वास्तविक कथा पर आधारित है । किंतु, एक माह होने पर यह धारावाहिक अपने ही बनाए तथ्यों के अनुसार कथा दिखाता और वाल्मीकि रामायण के लेखन से पूर्णतः भटका प्रतीत हो रहा है । इसने केवल वास्तविक कथा को ही विकृत नहीं किया है; अपितु आधुनिक धर्मनिरपेक्ष-उदारतावादी मत को रामायण में थोपने का भी प्रयास किया है ।

अ. धारावाहिक के प्रथम भाग में, राजा दशरथ अपने पुत्रों के लिए चिंतित है व कौशल्या अपनी विवाहित पुत्री शांता के लिए अश्रु बहाती रहती हैं ।

खंडन : वाल्मीकि रामायण में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है । बालकांड (११.२) में राजा दशरथ धार्मिक, सत्यवादी व प्रतापी राजा के रूप में वर्णित किया है । वे विलाप करनेवालों में से बिलकुल नहीं थे ।

आ. धारावाहिक में शांता को दशरथ-कौशल्या की पुत्री के रूप में बताया गया है जिसे ऋषि श्रृंग को मोहित करने और उनसे विवाह करने हेतु भेजा जाता है, जिससे कि ऋषि आएं और पुत्रकामेष्टि यज्ञ कर सकें । शांता के हर प्रकार से प्रतिभासंपन्न होने पर भी दशरथ उससे संतुष्ट नहीं थे और पुत्र की लालसा रखते थे । इसलिए शांता अपनी स्वतंत्रता तथा सुख-सुविधा को त्यागने के लिए विवश हो जाती है और  श्रृंग ऋषि के साथ वन में रहने हेतु चली जाती है । धारावाहिक आगे यह भी दिखाता है कि इस तथ्य को आरंभ में श्रीराम तथा दूसरे राजकुमारों से छिपाकर रखा जाता है ।

खंडन : वाल्मीकि रामायण के अनुसार, अंग देश के राजा रोमपद, जो राजा दशरथ के घनिष्ट मित्र थे, उन्होंने शांता को गोद लिया था और उसे अपनी पुत्री के रूप में पाला-पोसा था । वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि जब रोमपद का राज्य भयंकर सूखे से त्रस्त था, तब उन्होंने ऋष्यश्रृंगा को अपने राज्य में बुलवाया था (१.१०.७) । ऋषि के राज्य में आते ही वर्षा होने लगी । तत्पश्‍चात रोमपद ने शांता का विवाह ऋषि से करवा दिया (१.१०.२९-३२) । विवाह के उपरांत शांता तथा ऋष्यश्रृंगा अंग राज्य में ही रहने लगे (१.१०.३३) न कि वन में । पश्‍चात दशरथ ने रोमपद से सहायता का अनुरोध किया कि वे अपने दामाद ऋषि श्रृंग से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करने को कहें, जिससे दशरथ को पुत्र प्राप्त हो सके ।

इसलिए वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह स्पष्ट होता है कि शांता का अपने पति के साथ विवाह उस काल के नियमानुसार ही हुआ था तथा शांता की ओर से कोई भी अनिवार्यता अथवा बलिदान देने जैसा कुछ नहीं था न ही उसे विवाह से किसी प्रकार की यातना सहनी पडी । यहां तक कि महाभारत में शांता तथा ऋषि श्रृंग की कहानी में यह बताया गया है कि दोनों की प्रेमकथा नल-दमयंती अथवा वशिष्ठ-अरुंधती समान थी । इसलिए यह प्रश्‍न उठना स्वाभाविक है कि धारावाहिक ने क्यों शांता को एक पीडिता के रूप में तथा पुत्रियों के विरुद्ध काल्पनिक भेदभाव को दर्शाने के एक साधन के रूप में प्रयुक्त किया गया ? अथवा यह दर्शाने के लिए कि स्त्रियां किस प्रकार बलिदान देने के लिए विवश हो जाती थीं ? जबकि वास्तविक लेख में ऐसा कोई वर्णन नहीं है ।

इ. इस धारावाहिक में विरूपण का एक अन्य प्रकरण है, अश्‍वमेध यज्ञ (अश्‍व की बलि) । धारावाहिक के अनुसार जब राजा दशरथ अश्‍वमेध यज्ञ का निष्पादन करते हैं तो सीता को उस अश्‍व का मार्ग रोकते हुए दिखाया गया है । तत्पश्‍चात श्रीराम घोषणा करते हैं कि बलि की क्रिया को पूर्ण करने हेतु अश्‍व को न मारकर उसके स्थान पर अश्‍व की स्वर्ण प्रतिमा का प्रयोग किया जाना चाहिए । श्रीराम पशु अधिकारों के विषय में व प्रथाएं कैसे टूटनी चाहिए इसके संदर्भ में व्याख्यान भी देते हैं ।

खंडन : १. धार्मिक परिप्रेक्ष्य पशुओं के जीवन के प्रति असंवेदनशील नहीं होते हैं । हिन्दू शास्त्रों में पशुओं की सेवा करना गृहस्वामियों (भूत यज्ञ) का एक कर्तव्य बताया गया है । वे पशुओं को ब्रह्मांड के अविभाज्य अंग मानते हैं तथा लोगों को अहिंसा का आचरण करना सिखाते हैं । मनु स्मृति (५.५३) में वर्णित है कि जो व्यक्ति मांसाहार का त्याग करता है उसे १०० अश्‍वमेध यज्ञ करने के समतुल्य आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है ।

२. यह भी स्मरण रखें कि अश्‍वमेध यज्ञ को समाज के समग्र अर्थात भौतिक, आध्यात्मिक तथा पर्यावरणीय कल्याण हेतु किया जाता था । यह राजा के लिए अपने धन को निर्धनों तथा दुखी-पीडितों  में वितरित करने का एक माध्यम था । प्रजा को उनकी आवश्यकता अनुसार दान दिया जाता था । जिसके पास भूमि नहीं होती उसे भूमि अथवा जिसके पास घर नहीं होता उसे घर दिया जाता इत्यादि । इस यज्ञ से समाज की सात्त्विकता में भी वृद्धि होती थी । सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि इस अनुष्ठान में बलि चढनेवाले पशु को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और वह उच्च लोक में जन्म लेता है । इसीलिए, यज्ञों में पशुओं की बलि देने को ‘हिंसा’ नहीं माना जाता है । पशुओं को मारने-काटने के लिए उनका पालन करना अथवा खाल इत्यादि के लिए उनकी हत्या करना, अधर्म समझा गया है क्योंकि इसमें पशुओं को कोई लाभ नहीं होता ।

३. प्रथम तो वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऐसा अश्‍वमेध यज्ञ कभी हुआ ही नहीं जैसा कि धारावाहिक में दर्शाया गया है । वाल्मीकि रामायण के अनुसार दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ के साथ अश्‍व की बलि दी थी । परंतु पुत्र होने के उपरांत उन्होंने कभी अश्‍व की बलि नहीं दी ।

४. श्रीराम के जन्म से पूर्व राजा दशरथ द्वारा किए गए अश्‍वमेध यज्ञ में भी वास्तविक अश्‍व की बलि दी गई थी न कि अश्‍व की मूर्त्ति की (१.१४.३२-३६) ।

५. सीता को अश्‍व रोकते हुए दिखाया गया है । उन्हें इस बात से अनभिज्ञ दिखाया गया है कि जो अश्‍व को रोकता है तथा उसे बांधता है उसे युद्ध करना होता है ।

६. वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम धर्म के प्रतीक थे अर्थात धर्म के अवतार और उन्हें भलीभांति ज्ञात था कि यज्ञ में अश्‍व की बलि देना हिंसा नहीं है । अतः श्रीराम ने वास्तविक अश्‍व को मूर्त्ति के अश्‍व से बदलने के लिए कभी नहीं कहा होगा । किंतु इस सूक्ष्म अंतर को समझे बिना ही यह धारावाहिक आधुनिक वाम उदारमतवादी प्रथाओं के आधार पर पशु अधिकारों के संदर्भ में व्याख्यान देने का प्रयास करता है ।

७. धारावाहिक में ऋषि वशिष्ठ द्वारा अश्‍वमेध यज्ञ को आम धारणा पर आधारित प्रथा बताया गया है । किंतु अश्‍वमेध यज्ञ कोई प्रथा नहीं अपितु यह एक धार्मिक अनुष्ठान है, जो स्वयं वेदों में वर्णित है । यह राजा का अपनी प्रजा के हितों के लिए एक धार्मिक कर्तव्य होता है । कुछ धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कलियुग में यज्ञों में पशुओं की बलि देना निषिद्ध है, क्योंकि अब लोगों में यज्ञों को योग्य प्रकार से निष्पादित करने की योग्यता नहीं रही जिसके फलस्वरूप पशुओं को उच्च लोक प्राप्त हो सके । किंतु भगवान श्रीराम कलियुग में नहीं थे, अपितु त्रेतायुग में थे जब वशिष्ठ, ऋषि श्रृंग इत्यादि जैसे सैकडों महान ऋषि थे, जो विश्‍व के कल्याण हेतु कठिन से कठिन यज्ञ करने का भी सामर्थ्य रखते थे ।

इ. हिन्दू संस्कृति में राक्षसों को मानव से भिन्न प्रजाति का समझा गया है । किंतु इस धारावाहिक में कुछ तथाकथित विद्वानों द्वारा राक्षसों को जनजातीय लोगों के रूप में दर्शाया गया है ।

श्रीराम-लक्ष्मण तथा मारीच एवं सुबाहु के नेतृत्व में राक्षसों के युद्ध को शाही राजा तथा जनजातीय लोगों के मध्य हुए युद्ध के रूप में चित्रित किया गया है ।

ई. एक दृश्य में जनक तथा उनकी पत्नी के मध्य हुए संवाद में यह भी दिखाया गया कि सीता की माता, सीता की शिक्षा को लेकर बहुत चिंतित होकर उनसे कहती हैं कि सीता के शिक्षित होने से उसे विवाह के उपरांत अनेक समस्याओं का सामना करना पडेगा । यह रामायण पर पिछले कुछ शताब्दियों से प्रचलित नारी शिक्षा के संदर्भ में अवधारणाओं को लादने का अनुचित प्रयास है ।

संक्षेप में, धारावाहिक ‘‘सिया के राम’’ रामायण तथा हिन्दू प्रथाओं का पूर्ण रूप से उपहास कर रहा है । यदि वास्तव में धारावाहिक निर्माताओं का उद्देश्य शुद्ध होता तो वे पूर्ण रूप से एक नया पौराणिक धारावाहिक बना सकते थे । फिल्म तथा धारावाहिक उद्योग अपनी टी.आर.पी. बढाने के लिए पुनः-पुनः ऐतिहासिक तथा पौराणिक चरित्रों के नाम से ऐसे धारावाहिक/ फिल्में बनाते हैं, जो वास्तविकता से कोसों दूर हैं । ‘जोधा-अकबर’ के साथ भी यही हुआ था ।

वाल्मीकि रामायण में दी गयी धार्मिक शिक्षा को जनसाधारण तक पहुंचाने हेतु यह धारावाहिक एक अच्छा मंच हो सकता था । किंतु निर्माताओं ने आधुनिक वाम उदार प्रथाओं का प्रचार करने हेतु हिन्दू धर्म का विकृतीकरण किया । क्या यह मनोरंजन के नाम पर रामायण तथा हिन्दू धर्म का उपहास नहीं है ? पूरी कथा कार्यक्रम के निर्माताओंकी न केवल हिन्दू धार्मिक विधियों के प्रति अज्ञानता दर्शाती है अपितु हिन्दू प्रथाओं पर पशु अधिकारों की आधुनिक कथाओं का प्रत्यारोपण करने के उद्देश्य को भी दर्शाती है ।

अब प्रश्‍न है कि क्या सिन्हाजी इतिहास के विकृतिकरण का नैतिक उत्तरदायित्त्व लेंगे ?

– लेखक श्री. नितिन श्रीधर

स्त्रोत : न्यूज ग्राम


 समितीद्वारा ‘स्टार प्लस’ को भेजा गया पत्र

|| Shree ||

Namaskar,

We at Hindu Janajagruti Samiti have received several complaints from devout Hindus against the denigrating TV Serial launched on Star Plus titled ‘Siya Ke Ram’ which is distorting facts.

We are sending this appeal letter to notify you regarding the humiliating and appalling representation of revered Hindu Deities, Shriram, Shri Sita and an absolute mockery of Ramayana and Hinduism.

Nikhil Sinha, the producer-director of the serial had stated while launching this serial that “the serial was well rooted in facts and based on the original story. So far, we have only looked at Ramayana from Maryada Purushotam Ram’s perspective. But this show will highlight Sita’s perspective and their love story.” However, one month down the line, the serial appears to have deviated completely from the original text of Valmiki Ramayana.

Sadly, in the first few episodes of the serial, the original story of Ramayana has not only been misleading but also tries to impose more supposed liberal values thereby ridiculing the Hindu scriptures. We would also like to understand from the producer-director of the serial which Hindu Holy Scriptures he has used as reference while creating this serial?

To illustrate, many of the scenes referencing Shanta, the daughter of King Dasharatha and Kausalya filmed in the serial are fictional, distorting truth and out of context and try to depict made-up prejudice against daughters, or to show how women are forced to make sacrifices when no such thing is actually recorded in the original Hindu scriptures.

Further, few of the episodes relating to Ashwamedha Yajna (horse-sacrifice) depicted in the serial never happened as per Valmiki Ramayana scripture. Secondly, even in the Ashwamedha Yajna that was conducted by King Dasharatha before the birth of Shriram, a real horse was sacrificed and not an idol of a horse. Thirdly, Shri Sita is shown as stopping the horse without realizing the fact that whoever stops the horse and ties it must wage a war. Yet, in order to portray Shri Sita as rebellious, the scene has been included in the serial. The whole storyline depicts not only the ignorance of the film makers of the show about Hindu Shaastra and culture, but also their plan to impose contemporary liberal narratives of animal rights on Hindu practices and also trying to portray Shriram as a liberal individual.

In addition, few incidents created in regards to the Rakshasas (demons) who were portrayed as tribal fighting against tyranny and oppression. And the clash between Shriram, Shri Laxman and the Rakshasas headed by Maricha and Subhahu were depicted as a fight between the royal kings and tribal people which clearly is propaganda to malign Shriram and misrepresent the Ramayana!

There was also a conversation between Janak and his wife, wherein Shri Sita’s mother is apprehensive about educating Shri Sita and, if Shri Sita is educated, she will face numerous problems after marriage! Thus, this serial is stereotyping the perceptions about girl child education prevalent from last few centuries on the Ramayana.

In short, ‘Siya Ke Raam’ ends up making a complete farce of the Ramayana and Hindu customs. The serial starts with a disclaimer saying that the serial intends to hurt no religious sentiments, yet that is precisely what it is doing.

We urge you to consider the above points and remove this serial immediately from Star Plus. We stress that our aim in bringing up these points is to educate and ensure that Hindu Deities and Hinduism gets accurately represented to society. Hinduism has been misrepresented at many levels. Though it is an ancient tradition, Hinduism has a lot to offer the modern world, and we want children and adults alike to be able to understand and study it without it being misrepresented. You can take one step towards ensuring that Hindu Deities, Hindu Scriptures and Hinduism are not misunderstood, by removing this denigrating Serial from Star Plus.

Hindu Janajagruti Samiti (HJS) is a registered NGO in India working for Hindu Dharma and also for society and national welfare. The Samiti is active throughout the world, educating people about Hindu Dharma in a scientific way, campaigning against malpractices done in the name of Hindu Dharma and solving problems related to the misrepresentation of Hindu Dharma. For further details please refer to our website http://www.hindujagruti.org/

Sincerely,
Hindu Janajagruti Samiti


 

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