राजधानी दिल्ली में एक रोड का नाम औरंगजेब रोड है। जिसका नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति ए।पी।जे। अब्दुल कलाम के नाम पर कर दिया गया। इस बात से कुछ लोग ‘आहत’ हैं। इनमें असदुद्दीन ओवैसी से लेकर मार्क्सवादी इतिहासकार इरफान हबीब तक शामिल हैं। उनकी नाराजगी जानने से पहले इस बात पर गौर करना जरूरी है कि किसी सार्वजनिक भवन, सड़क अथवा पार्क के नामकरण के पीछे तर्क क्या होता है`?
व्यक्तिगत आचरण से लेकर सार्वजनिक जीवन में जो लोग सार्वभौमिक मूल्यों के अनुकूल एक नया मापदंड बनाते हैं वे समाज में अनुकरणीय बन जाते हैं। नामकरण के पीछे दो तर्क होता है। पहला, ऐसे लोगों के प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन और दूसरा उनके कर्तृत्व एवं व्यक्तित्व को पीढि़यों के सामने जीवंत और ज्वलंत उदाहरण बनाए रखना। सड़क, उद्यान, सार्वजनिक भवनों के नामों पर बार-बार ध्यान जाता है और हमारी उपचेतना में उसका सहज रूप से असर होता है। हमें अपने आचरण एवं जीवन मूल्यों को सरोकार युक्त बनाने की प्रेरणा मिलती रहती है। ये सरोकार समाज, राष्ट्र एवं मानवता एवं सार्वभौम मूल्यों के प्रति होता है।
औरंगजेब रोड का नामकरण जिस व्यक्ति के नाम पर है उसका व्यक्तिगत आचरण और सार्वजनिक जीवन में मापदंड क्या था ? वह एक मुगल शासक था। वह शासक कैसा था यह तो बाद की बात है। पहला सवाल है वह व्यक्ति कैसा था ?
औरंगजेब का शासन ४९ वर्षों तक था। वह भारत के चरित्र को बदल देना चाहता था। ताकत का क्रूरतापूर्ण प्रयोग उसका मूल चरित्र था। हिन्दुओं का इस्लाम में धर्मांतरण करना उसका एक मुख्य उपक्रम था। यह कार्य इस्लाम के प्रचार-प्रसार से नहीं बल्कि भेदभाव, क्रूरता और अत्याचार के द्वारा करता था। किसी भी प्रकार का रूकावट उसके लिए असहनीय था। यह किस सीमा तक था इसका उदाहरण सिखों के नवें गुरू तेगबहादुर (1621-1675) के प्रति उसके फरमान से पता चलता है। गुरु तेगबहादुर धर्मरक्षा के लिए एक कटिबद्ध आध्यात्मिक पुरूष थे। वे साहस और अटल व्यक्तित्व के अनुपम उदाहरण थे। वे औरंगजेब के सामने जब नहीं झुके तब उनकी हत्या का फरमान जारी कर दिया गया। सिर काटकर २४ नवम्बर, १६७५ को यह कुकृत्य पूरा किया गया।
औरंगजेब दुनिया का पहला साम्प्रदायिक फासीवादी शासक था। मार्क्सवादी इतिहासकार इस हत्यारे शासक को ‘उदार’ साबित करने में पिछले ६० सालों से लगे रहे हैं। एक तर्क दिया जाता है कि उसके दरबार में ३० प्रतिशत से अधिक नोब्लस (नौकरशाही) थे। हिन्दू बहुल देश में कोई शासक क्रूर हो या उदार, उसे तो हिन्दुओं पर निर्भर रहना ही होगा। अंग्रेजों के प्रशासन में तो ९० प्रतिशत हिन्दुस्तानी थे। तब तो उस तर्क के आधार पर क्या अंग्रेज शासन ‘भारतीय’ और ‘लोकतांत्रिक’ मान लिया जाए?
हिन्दुओं पर उसने जिझिया टैक्स क्यों लगाया था ? धर्म के आधार पर वैधानिक रूप से भेदभाव का इसका क्या कोई और दूसरा उदाहरण है?
भारतीय पंथनिरपेक्ष विमर्श का खोखलापन का एक उदाहरण हत्यारे औरंगजेब का महिमामंडन है। औरंगजेब रोड का नामकरण इतिहास का शुद्धीकरण है, राष्ट्रीयकरण है और भारत की सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति है।
प्रो. राकेष सिन्हा, मानद निदेशक, भारत नीति प्रतिष्ठान
स्त्रोत : ए बी पी न्यूज