मणिपुरके ईसाई आतंकवादकी भयावहता !

     मणिपुर-नागालैंड क्षेत्रमें आतंकवादियोंने समांतर शासनकी स्थापना की है । वहांकी भीषण सद्यस्थितिके विषयमें शेष भारत अनभिज्ञ है । इस संदर्भमें जागृति करनेवाला एवं इस समस्यापर राष्ट्रवादी उपाय कथन करनेवाला यह लेख हमारे पाठकोंके लिए प्रसिद्ध कर रहे हैं ।

सारणी


१. ईसाई आतंकवादका प्रमुख केंद्र बना मणिपुरका उखरूल जनपद !

        मणिपुरकी राजधानी इंफालसे ८० कि.मी. दूरीपर उखरूल नामक जनपद है । वहांके १०० प्रतिशत निवासी ईसाई हैं । वर्तमानमें यह जनपद आतंकवादका प्रमुख केंद्र है । राष्ट्रविरोधी कार्रवाइयोंके लिए यह जनपद कुप्रसिद्ध है । नागा आतंकवादी इसी क्षेत्रमें  कार्यरत हैं । यहांकी स्थिति ऐसी है कि, ईसाई धर्मका स्वीकार किए बिना कोई भी यहां रह नहीं सकता । ‘नागालैंड फॉर खाईस्ट ओन्ली’, ऐसा लिखा हुआ फलक वहां  दिखाई देता है । ऐतवारके दिन वहांके सभी व्यवहार पूर्णतः बंद होते हैं ।

 

२. आतंकवादियोंका पोषण करनेवाला मणिपुरका कांगे्रसी शासन !

        मणिपुरमें आतंकवादियोंने समांतर शासन स्थापित किया है, ऐसा कहना उचित होगा, ऐसी ही वहांकी परिस्थिति है । वहां सामान्य सिपाहीसे लेकर उच्चपदस्थ अधिकारियोंतक प्रत्येकको अपने वेतनसे ८० प्रतिशत राशि ही दी जाती है एवं शेष २० प्रतिशत राशि आतंकवादियोको खंडनीके रुपमें दी जाती है ! इतनाही नहीं, तो मणिपुर शासनको विकासकार्य हेतु किए गए आर्थिक प्रबंधके ४० प्रतिशत भाग आतंकवादियोंको देना पडता है ! शेष प्रबंधसे ४० प्रतिशत भाग भ्रष्टाचारमें नष्ट होता है, तो केवल २० प्रतिशत भाग विकासकार्यके लिए उपयोगमें आता है । इतनी भयावह परिस्थिति वर्तमानमें वहां उत्पन्न हुई है ।

 

३. जिसका अस्तित्व ही नहीं है, ऐसे  ‘भगवे आतंकवाद’ के विषयमें चीखनेवाली; किंतु ‘ईसाई आतंकवाद’ के विषयमें ‘ची-चपड’ भी न निकलनेवाली समाचारपत्रिकाएं एवं समाचारप्रणाल  !

       तीन वर्ष पूर्व मणिपुरमें प्रशासकीय सेवा करनेवाले विशेष विकास अधिकारी (एस्.डी.ओ.) डॉ. किशन सिंह कुसोम खुलेन क्षेत्रके प्रमुख थे । उस समय आतंकवादियोंने उनके वेतनसे २० प्रतिशत खंडनीकी मांग की एवं उन्होंने देनेसे मना किया । इसलिए आतंकवादियोंने डॉ. किशन सिंहके साथ उनके तीन सहकारियोंका अपहरण किया एवं तदुपरांत उन सभीकी हत्या की । अन्य एक घटनामें आतंकवादियोंने उखरूलके जनपदाधिकारी कार्यालयको जला दिया । देशके सेनाधिकारी भी ‘ईशान (उत्तर-पूर्व) भारत बचाओ’, ऐसी मांग शासनकी ओर कर रहे हैं । इस क्षेत्रमें हो रही ऐसी घटनाएं भारतके अन्य राज्योंमें कहीं भी प्रसिद्ध नहीं होती । समाचारपत्रिका एवं समाचारप्रणालके माध्यमसे भी इन घटनाओंका वास्तव शेष भारततक नहीं पहुंचता ।

 

४. मणिपुरमें मचाई गर्ई अराजकता, स्वतंत्र ‘ईसाई राष्ट्र’ निर्माण करनेका ही षडयंत्र !

        उखरूलमें सामान्य जनता प्राणोंके भयसे जीवन जी रही है । आतंकवादी खंडनीकी मांग करते हैं; खंडनी देनेसे मना करनेपर हत्या करते हैं । महामार्ग रोककर वहांका व्यापार-उद्योग बंद कर देते हैं । वहांका शासन भी इन आतंकवादियोंसे जनताका संरक्षण नहीं करता है । आतंकवादी कार्रवाइयोंपर प्रतिबंध लगानेमें शासन पूर्णतः असफल रहा है । वहांकी जनताको पेट्रोल २५० रुपये प्रतिलीटर इस भावसे खरीदना करना पडता है, तो गॅसकी एक टंकीके लिए पूरे २००० रुपये देने पडते हैं । मणिपुरमें लगभग प्रतिदिन ही बम्बविस्फोट हो रहे हैं । जनता मर रही है; परंतु यह दुष्टचक्र रूकता ही नहीं है । इन सभी कार्रवाइयोंके पीछे मणिपुरको स्वतंत्र ‘ईसाई राष्ट्र’ बनानेका आतंकवादियोंका षडयंत्र छिपा है । अतएव जनताके मनमें प्रचंड क्रोध है; परंतु उनका कोई भी त्राता नहीं है, यह वास्तविकता है ।

 

५. देशबंधुओ, ईशानके राज्योंकी ओर ध्यान देने हेतु सुसंगठित समाज निर्माण करें !

५ अ. ‘सुसंगठित समाज’ इस शब्दका अर्थ क्या है ?

        केवल कुछ त्योहार, उत्सव अथवा समारोहके कारण एकत्रित आनेवाला समाज ‘संगठित समाज’ नहीं है, तो समाजके अपने बांधवोंके सुखदुःख, भाव-भावनाओं, आदर-अनादर, यशापयश इत्यादिके साथ वैचारिक, मानसिक, भावनिक एवं बौद्धिक स्तरपर एक हुआ समाज ही वास्तविक अर्थसे ‘संगठित समाज’ कहा जाता है ।

५ आ. ईशानके देशबांधवोंके साथ निरंतर संपर्कमें रहनेके लिए आगे बढें !

      सुसंगठित समाज ही राष्ट्रकी सबसे बडी शक्ति एवं बल है । राष्ट्र एवं संस्कृतिरक्षाके लिए ऐसा समाज एकत्रित होनेपर शत्रु एवं आपदाओंका सामना करना सहज संभव होता है । समाजके मनमें एक-दूसरेके प्रति बंधुभाव जागृत होना चाहिए । उन्हें एकत्रित रूपमें बांध रखनेवाला सूत्र अर्थात राष्ट्र । इस भारतसे अर्थात अपनी मातृभूमिसे एकनिष्ठ रहना तथा उसकी रक्षाके लिए निरंतर सिद्ध रहना, यह प्रत्येककी सहज भावना एवं सहज स्वभाव होना चाहिए । अतएव सर्वदूर फैले अपने देशबांधवोंसे निरंतर संपर्कमें रहनेके लिए हमें ही आगे बढना चाहिए ।

(संदर्भ : ‘धर्मभास्कर’, मार्च २०१२)

लेखनकर्ता : श्री. दुर्गेश परुळकर, डोंबिवली

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