प.पू. आसारामबापूके संदर्भमें कुछ हिंदूद्वेषी समाचारप्रणालोंद्वारा उपस्थित किए प्रश्नोका खंडन

भाद्रपद शुक्ल ३, कलियुग वर्ष ५११५

१. प.पू. आसारामबापू सत्संगमें संगीतके तालपर नाचते हैं, कूदते हैं, तालियां बजाते हैं, जिम्मा खेलते हैं ।
२. श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा गोपियोंका वेश धारण कर उनके समान आचरण करते हैं ।

खंडन : संतोंका आचरण बाह्य रूपसे अलग दिखाई देता हो, तो भी उसके पीछेका कारण आध्यात्मिक होता है । प.पू. आसारामबापू अपने भक्तोंको भक्ति करनेका उपदेश देते हैं । उनकी वाणीके चैतन्यके कारण भक्त साधना आरंभ करते हैं । प.पू. बापूके सत्संगमें उन्हें साधनाके विषयमें मार्गदर्शन मिलता है । इस अवसरपर वे प.पू. बापूको श्रद्धास्रोतके रूपमें मानते हैं । संत भगवानका रूप होनेके कारण वे भी साधना करते हैं । उस समय भजन गाते हुए नाचना, कूदना, जिम्मा खेलना उस भक्तिका प्रकटीकरण होता है । महाराष्ट्रकी कीर्तन यात्रामें लाखों वारकरी नाचते हुए, भजन करते हुए तथा किकलियां खेलते हुए मार्गपर अग्रसर होते हैं ।

२. प.पू. आसारामबापू समुद्रमें मोटरनावसे घूमते हैं एवं तालाबमें तैरते हैं । क्या ऐसे व्यक्तियोंको संत कहें ?

खंडन : अध्यात्मका अभ्यास न होनेके कारण ही ऐसी मानसिकता हो सकती है कि संतोंको मोटरनावसे चक्कर नहीं लगाना चाहिए अथवा उनको तालाबमें नहीं तैरना चाहिए । अपने तर्ककी चौकटमें बिठाकर संतोंको देखना असंभव है । जिन्हें प.पू. आसारामबापू संत नहीं प्रतीत होते वे उन संतोंको कैसे पहचानेंगे, जो समाजमें रहनेवाले हैं, परंतु समाजके समक्ष संतके रूपमें न आए हों ?

३. प.पू. आसारामबापूके पास १० सहस्र करोड रुपयोंकी अचल संपत्ति है । संत मोहमायासे दूर रहते हैं; तो इनके पास इतनी संपत्ति किसलिए ?

खंडन : संतों अथवा उनकेद्वारा चलाई जानेवाली संस्थाके पासकी संपत्ति अध्यात्मप्रसारके कार्यके लिए रहती है । कुछ संत राष्ट्र एवं धर्मरक्षाका कार्य भी करते हैं । आश्रममें आकर रहनेवाले भक्तोंकी सुविधा हेतु, उन्हें त्योहार, उत्सव भली-भांति मनाना संभव होने हेतु होनेवाले व्यय इसी संपत्तिसे किए जाते हैं । भक्तोंकी प्रचुर संख्याके कारण उनका भोजन, निवासव्यवस्थाके लिए भूखंड लेना, उसपर आश्रमका निर्माण कार्य करना अनिवार्य हो जाता है । संत ही भक्तोंकी सुविधाओंकी पूर्ति करते हैं । उन्हें संपत्ति लेकर क्या करना है ? कुछ भक्तोंके अर्पणसे वे भक्तोंको सुविधाएं देते हैं । यदि लोगोंको लूटकर पैसे ही कमाना होता, तो क्या संतोंने भी राजनीतिज्ञोंके समान अपनी संपत्ति स्विस बैंकमें नहीं रखी होती ? क्या संतोंने ऐसा किया, ऐसा कभी सुनाई दिया ? राजनीतिज्ञों समान ‘सर्वज्ञानी’ समाचार प्रणालके पत्रकार एवं संपादकोंको अध्यात्म एवं भक्तिका गंध भी नहीं है । इसलिए वे इस प्रकारके प्रश्‍न पूछते हैं तथा संत एवं साधकोंकी दृष्टिसे हास्यजनक सिद्ध होते हैं ! संतोंके संदर्भमें ये लोग अपनी कल्पनासमान एक व्यक्तिका चित्रण मनपर अंकित करते हैं । सिंधुदुर्ग जनपदके कणकवलीके संत प.पू. भालचंद्र महाराज विवस्त्र घुमते थे, उन्हें भी लोग उस समय मनोरुग्ण सिद्ध कर पत्थर मारते थे; परंतु जब लोगोंको उनके पास जानेके पश्चात चमत्कारकी अनुभूति हुई, तब लोग उन्हें संत मानने लगे । शेगावके श्री गजानन महाराज जूठी पत्तलपरका अन्न ग्रहण करते थे । उनका संतत्व भी चमत्कारका अनुभव होनेके पश्चात ही स्वीकार किया गया । संत स्वयं कभी चमत्कार नहीं करते । भक्तोंके लिए भगवान ही संतोंके माध्यमसे चमत्कार दिखाते हैं, जिसका अनुभव भक्त करते हैं । प.पू. आसारामबापूजीके संदर्भमें उनके लाखों भक्तगणोंको ऐसी ही अनुभूतियां आई हैं ।   भक्तोंमें अनेक भक्त उच्चशिक्षित लोग हैं । ‘बापूके करोडो भक्तों’को बुद्धि नहीं है, वे संतको नहीं पहचान सकते, उन्हें बापूने फंसाया ‘ क्या समाचारप्रणालोंके संपादककोंको ऐसा कहना है ? क्या करोडों भक्तोकि अपेक्षा ये संपादक अधिक बुद्धिमान हैं ? क्या ये संपादक बुद्धिसे भी सारासार विचार नहीं कर सकते ? यदि कोई इसका अर्थ, समाचार प्रणालोंके संपादक बिक गए हैं, ऐसा लगाए तो क्या वह अनुचित होगा ? क्या इन संपादकोंने समाचारप्रणालपर कभी प.पू. आसारामबापूका महान कार्य दर्शाया है ?

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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