आज की युवा पीढी के सामने सनातन धर्म का श्रेष्ठत्व योग्य पद्धति से प्रस्तुत करना आवश्यक – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति

हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे का नेपाल दौरा

काठमांडू (नेपाल) – पाश्चात्यों सहित विश्वभर के लोग आनंद की खोज में स्वयं ही सनातन धर्म एवं संस्कृति की ओर आकर्षित होते हैं । इसके विपरीत हिन्दू अपने अंधबौद्धिक गुलामगिरी के कारण पाश्चात्य विकृति की ओर मुड रहे हैं । आधुनिक विज्ञान की अपेक्षा सनातन संस्कृति का श्रेष्ठत्व आज के युवकों को बताने की आवश्यकता है । आधुनिक विज्ञान के साथ वैद्यकीय, खगोल, स्थापत्य, धातुकर्म, गणित इत्यादि सभी के मूल अपने वेदांत में मिलते हैं । आधुनिक विज्ञान से पहले ही अपने यहां सोने के आभूषण, तांबे के बर्तन इत्यादि बनाना सामान्य बात थी । इसलिए हिन्दू धर्म का ज्ञान आज की युवा पीढी के समक्ष योग्य पद्धति से प्रस्तुत करें, तो सनातन धर्म की श्रेष्ठता उनके ध्यान में आएगी, ऐसा मार्गदर्शन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे ने किया । यहां ‘नेपाल टीवी’, ‘न्यूज २४’ एवं ‘प्राईम टीवी’ इन स्थानीय वाहिनियों ने सद्गुरु डॉ. पिंगळे से भेंटवार्ता ली । इस अवसर पर वे मार्गदर्शन कर रहे थे ।

‘नेपाल टीवी’ इस जालस्थल पर सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी से भेंटवार्ता करती हुई आर्या खरेल

विशेष

‘महाशिवरात्रि’ विषय पर सद्गुरु डॉ. पिंगळे ने मार्गदर्शन किया था । वह सुनकर धर्म एवं अध्यात्म के विषय में इतनी सरल भाषा में किए मार्गदर्शन का लाभ अधिक लोगों को हो; इसलिए नेपाल में धर्मप्रेमी श्रीमती कविता राणा ने स्वयं ही एक विद्यालय के विद्यार्थियों के लिए मार्गदर्शन एवं ‘प्राईम टीवी’पर भेंटवार्ता आयोजित की ।

नेपाल दौरे में सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे ने ली विविध हिन्दुत्वनिष्ठों की भेट !

बौद्ध धर्म के देवी के चित्र सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी को दिखाते हुए बौद्ध गुरु लामा घ्याछो रिम्पोछे
बौद्ध गुरु लामा घ्याछो रिम्पोछे से वार्तालाप करते हुए सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे

‘नेपाल ज्योतिष परिषद’के सदस्य ज्योतिषाचार्य श्री. लक्ष्मण पंथी एवं श्री. जनार्दन न्यौपाने, बौद्ध गुरु लामा घ्याछो रिम्पोछे, ‘कालिका एफ.एम.’की संचालिका श्रीमती रीना गुरुंग, ‘दैनिक समाचार नया पत्रिका’के वरिष्ठ संपादक श्री. परशुराम काफ्ले, ‘स्पिरिच्युअल टूरिजम’ आस्थापन के संचालक प्रा. भरत शर्मा, ‘ओंकार टीवी’के संस्थापक श्री. मुकुंद शर्मा, ‘त्रिचंद्र विश्वविद्यालय’के प्रा. डॉ. गोविंद शरण, ‘त्रिभुवन विश्वविद्यालय’के प्रा. निरंजन ओझा, ‘संस्कृत विश्वविद्यालय’के पूर्व संचालक (डायरेक्टर) प्रा. डॉ. काशीनाथ न्यौपाने, ‘फार्माकॉलजी विभाग’के प्रमुख डॉ. सम्मोदाचार्य कौडिण्य, ‘लीडरशिप अकादमी’के श्री. संतोष शहा एवं श्रीमती आर्या शहा, ‘लोकतांत्रिक समाजवादी पक्ष’के श्री. मनीष मिश्रा, ‘मानव धर्म सेवा’के श्री. सागर कटवाल एवं श्री. प्रेम कैदी, इन हिन्दुत्वनिष्ठों की सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे ने भेट ली । वे देवघाट में महर्षि महेश आश्रम भी गए ।

द्वेष अपने विनाश का कारण बनता है ! – सद्गुरु डॉ. पिंगळे

धर्मपरंपराओं की रक्षा करेंगे, तो संप्रदाय बचेगा । संप्रदाय को श्रेष्ठ बनाएंगे, तो जैसे टहनी को वृक्ष से अलग करने पर टहनी ही नष्ट हो जाती है । वेदों के विषय में सरल भाषा में बताना हो, तो परमात्मा का जो ज्ञान हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते, उसे ‘वेद’ कहते हैं; परंतु परमात्मा शब्दों के परे है, ऐसा मार्गदर्शन सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने किया । ‘स्वधर्म टीवी’के श्री. सुवास आगम ने सदगुरु डॉ. पिंगळेजी की जिज्ञासा से कर्म, तीर्थक्षेत्र, कुंभमेला, शिवलिंग, ब्राह्मण, अग्निहोत्र आदि विविध विषयों पर भेंटवार्ता ली । वे इस अवसर पर मार्गदर्शन कर रहे थे ।

सदगुरु डॉ. पिंगळेजी ओगे बोले,

१. कर्म के उद्देश्य पर फल निर्भर करता है । धर्मसंमत कर्तव्य ही कर्म है । पूर्वजन्म के पुण्यकर्म इस जन्म में सौभाग्य बनकर आते हैं और पूर्वजन्म के पापकर्म दु:ख बनकर आते हैं । एकतरफा द्वेष करने पर, यही द्वेष अपने विनाश का कारण बन जाता है ।

२. जहां पवित्रता एवं दिव्यता हो, वह तीर्थ है । कर्म करते समय स्वार्थी बुद्धि के साथ ऐसा भाव रखकर गंगा में डुबकी लगाएंगे कि इससे मेरे पाप नष्ट होंगे, तो महापाप लगेगा ।

३. भाषाशास्त्र के अनुसार एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं । शिवलिंग में ‘लिंग’ शब्द का अर्थ है प्रतीक, अर्थात शिव का प्रतीक, ऐसा कहा गया है । अपनी ज्ञान परंपरा की असफता के कारण लोग गलत अर्थ लगाते हैं ।

स्वयं में गुणवद्धि करना ही खरा ज्ञान !- सद्गुरु डॉ. पिंगळे

‘ग्लेन बड्स स्कूल’में मार्गदर्शन करते समय सद्गुरु डॉ. पिंगळे
सद्गुरु डॉ. पिंगळे के मार्गदर्शन के लिए उपस्थित ‘ग्लेन बड्स स्कूल’के विद्यार्थी

विद्यार्थियों को अपनी क्षमता का आकलन कर, ध्येय सुनिश्चित करना चाहिए । क्षमता से अधिक अपेक्षा करने पर तनाव आता है । जीवन की समस्याओं का भली-भांति समझकर प्रयत्न करने पर, सफलता मिलती है । निश्चयात्मक बुद्धि एवं स्वसूचना देकर आलस दूर कर सकते हैं । जीवन की अडचनों का अभ्यास कर उन्हें स्वीकारना चाहिए । दैनंदिन जीवन की समस्याओं एवं असफलताओं का सामना करने के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा आवश्यक है । इसके लिए कुलदेवता अथवा उपास्यदेवता का नामस्मरण करना चाहिए । अपने में गुणों की वृद्धि करना ही खरा ज्ञान है, ऐसा मार्गदर्शन सद्गुरु डॉ. पिंगळे ने किया । ‘ग्लेन बड्स स्कूल’के १० वीं एवं १२ वीं के विद्यार्थियों के लिए सदगुरु डॉ. पिंगळे का ‘यशस्वी जीवन के लिए अध्यात्म’ इस विषय पर मार्गदर्शन आयोजित किया था । उस समय वे मार्गदर्शन कर रहे थे । मार्गदर्शन के प्रारंभ में विद्यालय के संचालक श्री. राजेश महाराजन ने सदगुरु डॉ. पिंगळेजी का स्वागत किया ।

विविध हिन्दुत्वनिष्ठों की भेंट में सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी द्वारा मार्गदर्शन

१. शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक, इसप्रकार युद्ध के ३ स्तर होते हैं । भूसंपादन के लिए किए युद्ध शारीरिक, कूटनीति युद्ध, मानसिक युद्ध और वर्तमान में शुरू युद्ध अहं के लिए अर्थात आध्यात्मिक स्तर पर पहुंच गए हैं ।

२. नेपाल में तंत्रसाधना के विषय में अधिक आकर्षण दिखाई देता है । तंत्र का उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है । चित्त शुद्धि के उपरांत तंत्र साधना करने पर भक्ति निर्माण होती है । वेदों का उद्देश्य छोडकर तंत्र का उद्देश्य अलग रखने पर विकृति निर्माण होती है ।

३.धर्म परंपरा की बातें करते समय मानसिक स्तर पर न बोलें । सत्य से जुडकर रहने पर किसी से तर्क-वितर्क नहीं करना पडता ।

सद्गुरु डॉ. पिंगळे के मार्गदर्शन के उद्बोधक वाक्य

१. जो स्वयं के विचारों के अतिरिक्त अन्यों का विचार स्वीकार नहीं सकते वह अज्ञान है !
२. इंद्रिय दमन करने पर परमतत्त्व प्राप्त हो सकता है ।
३. पाप एवं पुण्य नष्ट करने पर परमेश्वर की प्राप्ति होती है ।
४. गुणगौरव करने से साधना नहीं होती, अपितु अहं नष्ट करने से साधना होती है ।
५. सुख का निमित्त बाह्य होने से, साथ में दुःख आता है । जब तक सुख का आलंबन बाह्य है, तब तक दुःख है ।
६. ज्ञान एवं ज्ञानी के लक्षण : योग्य-अयोग्य की जो समझ दे वह है ज्ञान । वह अयोग्य एवं असत्य के विरुद्ध खडे रहने का साहस निर्माण करता है !
७. ‘अपनी क्षमता नहीं है’, ऐसे नहीं कहना है; इसलिए कि प्रतिकूलता भौतिकदृष्टि से भी हो सकती है ।
८. अन्नदान करते समय ‘अन्यों को भोजन देकर मैं ऋणमुक्त हो जाऊंगा’, इस भाव से देने पर लाभ होगा । दान करते समय सेवकभाव चाहिए । ‘परमात्मा का परमात्मा को ही लौटा रहे हैं’, ऐसा भाव रखने से लाभ होगा ।
९. ‘हम अपात्र हैं’, जो यह जानता है, वही खरा पात्र होता है । अपने पाप जो जग के सामने चिल्ला-चिल्लाकर कहता है, वही महात्मा बन सकता है ।
१०. यज्ञ अर्थात यज्ञकुंड, आहुति एवं मंत्र । देहरूपी यज्ञकुंड की जठाराग्नि में अन्नरूपी आहुित नामरूपी मंत्र सहित देने पर प्रत्येक दिन हमें यज्ञ का फल प्राप्त हो सकता है ।

हिन्दुत्वनिष्ठों के अमभिप्राय

१. श्री. प्रेम कैदी, मानव धर्म सेवा – आप जितनी अच्छे ढंग से भारत में कार्य करते हैं, वैसे नेपाल में कोई नहीं करता ।

२. श्री. परशुराम काफ्ले, वरिष्ठ संपादक, दैनिक समाचार नया पत्रिका – आपके बताए अनुसार जग में स्थिति बदल रही है ।

३. प्रा. भरत शर्मा, संचालक, स्पिरिच्युअल टूरिजम – मैं प्रतिदिन अपने कार्यालय में भीमसेनी कपूर का उपयोग करता हूं । इसलिए यहां आनेवाला प्रत्येक व्यक्ति कहता है कि तुम्हारे कार्यालय में शांत लगता है और यहां से जाने का मन नहीं करता ।

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