पर्यावरण की रक्षा के नाम पर श्री गणेशमूर्तियों का होनेवाला अनादर रोकिए !

हिन्दू जनजागृति समिति की सिंधुदुर्ग जनपद के जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से ज्ञापन प्रस्तुति कर मांग

 

सिंधुदुर्ग (महाराष्ट्र) : पर्यावरणपूरक गणेशोत्सव मनाने के नाम पर हिन्दू धर्मियों पर धर्मशास्त्रविरोधी कृत्य करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है । इसके अंतर्गत कागद की लुगदी से बनाई जानेवाली गणेशमूर्तियों का उपयोग करने और तात्कालिन हौजों में गणेशमूर्तियों का विसर्जन करने का आवाहन किया जा रहा है । इसके कारण पर्यावरण की रक्षा होना तो दूर; परंतु हिन्दू धर्मियों की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं । अतः हिन्दू जनजागृति समिति ने जनपद के जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से ऐसे माध्यमों से श्री गणेशमूर्तियों का होनेवाला अनादर रोकने की मांग की है ।

जिला मुख्यालय में निवासी उपजिलाधिकारी श्रीमती शुभांगी साठे, सावंतवाडी के नायब तहसीलदार मनोज मुसळे, सावंतवाडी नगरपरिषद की सहायक निरीक्षक आसावरी केळबाईकर, मालवण के तहसीलदार अजय पाटणे, मालवण नगरपरिषद के मुख्याधिकारी संतोष जिरगे, देवगढ-जामसंडे नगरपंचायत की नगराध्यक्ष श्रीमती प्रियांका साळसकर, देवगढ के नायब तहसीलदार सत्यवान गवस, कणकवली के नगराध्यक्ष समीर नलवडे एवं मुख्याधिकारी अवधूत तावडे; वेंगुर्ला के तहसीलदार नागेश शिंदे एवं कुडाळ के तहसिलदार अमोल पाठक को ज्ञापन प्रस्तुत किए गए । इस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता उपस्थित थे ।

इन ज्ञापन में कहा गया है कि,

१. महाराष्ट्र शासन के पर्यावरण विभाग ने बिना किसी शास्त्रीय अध्ययन से कागद की लुगदी से बनाई जानेवाली गणेशमूर्तियों के कारण जलप्रदूषण न होने की बात बताकर कागद की लुगदी से बनाई जानेवाली गणेशमूर्तियों की स्थापना करने का आवाहन किया है, साथ ही इस परिपत्रक में पर्यावरण विभाग द्वारा प्रकाशित परिपत्रक में कागद की लुगदी से बनाई जानेवाली गणेशमूर्तियों को प्रोत्साहन मिले, ऐसी गणेशमूर्तियां सर्वत्र उपलब्ध हो और इन गणेशमूर्तियों के शुल्क में विशेष छूट मिले; इसके लिए आवाहन किया गया था; परंतु कागदी की लुगदी से बनाई जानेवाली गणेशमूर्तियां पर्यावरण के लिए घातक होने से राष्ट्रीय हरित आयोग (नैशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल), पुणे ने ३० सितंबर २०१६ को पर्यावरणपूरक त्योहार मनाने की मार्गदर्शक सूचनाओं पर रोक लगाई । (कागद की लुगदी पानी से प्राणवायु खींच लेता है और उससे जीवसृष्टि के लिए हानिकारक मिथेन वायु की उत्पत्ति होती है । वृक्षों से निर्मित कागद की लुगदी में लिग्नीन नामक विषैला पदार्थ होता है । वह यदि पानी में मिल गया, तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं । पानी पर तैरनेवाले लुगदी के टुकडे मछलियों के पंखों में फंसकर उससे मछलियों की मृत्यु हा ेती है । इस वैज्ञानिक शोध को देखते हुए शासन का पर्यावरण विभाग िकतना अध्ययनहीन और अवैज्ञानिक है, यह दिखाई देता है ! सिंधुदुर्ग जनपद के प्रशासनिक अधिकारी इसका संज्ञान लेकर जनपद में कागद की लुगदी से बनाई जानेवाली गणेशमूर्तियों पर प्रतिबंध लगाकर जलाशयों का प्रदूषण रोके, यह अपेक्षा है ! – संपादक दैनिक सनातन प्रभात )

२. आज विश्व को ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे संकट का सामना करना पड रहा है । इससे सभी को पर्यावरण की रक्षा का महत्त्व सभी के ध्यान में आ रहा है । मनुष्य को अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होने हेतु पर्यावरण की रक्षा करना अत्यंत आवश्यक है, तब भी अनेक विषयों में शासन-प्रशासन की ओर से अपेक्षित कार्य होता हुए दिखाई नहीं देता । उसके कारण सामाजिक स्वास्थ्य संकट में पड गया है । इस पर सर्वांगीण एवं वास्तविक उपाय न कर केवल वर्ष में एक बार आनेवाले गणेशोत्सव के उपलक्ष्य में मूर्तिदान और गणेशमूर्तियों का तात्कालिन हौजों में विसर्जन जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं । (प्रशासन में स्थित कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के कारण असीमित वृक्षकटाई, अनियंत्रित खनन, प्र तिदिन बढते जा रहे सिमेंट के जंगल और नदियों-नालों का वर्षाें से होते चले आ रहे प्रदूषण की अनदेखी कर हिन्दुओं के त्योहारों को लक्ष्य बनानेवाले प्रशासन को हिन्दूद्वेषी कहा जाए, तो उसमें अनुचित क्या है ? क्या प्रशासन कभी हिन्दुओं को छोडकर अन्य धर्मियों की परंपराओं में हस्तक्षेप करता है ? क्योंकि ऐसा करने से उसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं, इसे प्रशासन भलीभांति जानता है ! – संपादक दैनिक सनातन प्रभात )

३. बुलडोजर से गणेशमूर्ति को कुचलना श्री गणेश का अक्षम्य और घोर अनादर है, साथ ही प्राणप्रतिष्ठा की हुई मूर्तियों का विसर्जन न कर सीधे बिक्री करना भी अक्षम्य कृत्य है । ऐसी मूर्तियों की बिक्री करने का अधिकार इन संगठनों को किसने दिया ? कूढे की गाडियों में मूर्तियां ले जाना भी हिन्दुओं की धार्मिक भावना आहत करनेवाला कृत्य है ।

४. अतः प्रशासन और अन्य गैरसरकारी संगठन गणेशभक्तों से मूर्तियों का दान न लें । प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा के अनुसार प्राकृतिक जलस्रोत में मूर्तियों का विसर्जन करने में बाधा न डालें । (हिन्दुओं की सभी परंपराएं और धर्मशास्त्र पर्यावरण के लिए पूरक ही हैं । – संपादक दैनिक सनातन प्रभात )

५. प्लास्टर ऑफ पैरिस, रासायनिक रंगों और अविभाजनकारी पदार्थाें के स्थान पर खडिया मिट्टी एवं प्राकृतिक रंगों से श्री गणेशमूर्तियां बनाने के लिए मूर्तिकारों को शासन प्रोत्साहित करें । जो धनराशि तात्कालिन हौजों के लिए उपयोग की जाती है, वही धनराशि इन मूर्तिकारों को अनुदान के रूप में दी जाए ।

६. प्रशासन प्रदूषणकारी कागद की लुगदी से मूर्तियों की निर्मिति, बिक्री एवं विसर्जन पर प्रतिबंध लगाए । शासन ऐसी मूर्तियों को प्रोत्साहन देना तुरंत रोके । शासन जिलाधिकारियों और संबंधित अधिकारियों के लिए इस संदर्भ में परिपत्रक निकालकर उसकी कठोर कार्यवाही करने के आदेश दें । जलप्रदूषण रोकने हेतु शासन खडिया मिट्टी से बनीं और प्राकृतिक रंगों से रंगाई गई श्री गणेशमूर्तियों को प्रोत्साहन देने का निर्णय ले ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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