हिन्दू धर्मविरोधी आधुनिकतावादी विचारों की होली कर सात्त्विक धर्माचरण कर होली का आनंद लें ! – सुनील घनवट

नागपुर एवं जळगांव में पत्रकार परिषद

नागपुर

बाईं ओर से अधिवक्ता श्रीमती वैशाली परांजपे, श्रीमती मंगला पागनीस, श्री. सुनील घनवट, श्री. अतुल अर्वेन्ला एवं श्री. रमेश अगरवाल

जळगांव

बाईं ओर से श्री. कपिल ठाकुर, श्री. मोहन तिवारी, श्री. प्रशांत जुवेकर एवं श्री. दत्तात्रय वाघुळदे

नागपुर : अमंगल विचारों को दूर कर सत्त्प्रवृत्ति का मार्ग दिखानेवाला त्योहार है होली ! किंतु आज हिन्दुआें के किसी भी त्योहार-उत्सवों के समय कुछ लोगों का पर्यावरणप्रेम अथवा पशुप्रेम तुरंत जागृत हो जाता है । गणेशोत्सव आनेपर ‘मूर्तिदान करें’, महाशिवरात्रि की अवधि में ‘शिवपिंडीपर दूध समर्पित न कर उसे निर्धन लोगों में बांटें’, जैसे आवाहन कर स्वयं के विवेकवादी कहलानेवाले अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति जैसी तथाकथित आधुनिक संगठन भोलेभाले हिन्दू समाज का बुद्धिभ्रम करते हैं । अब होली है, तो इस उपलक्ष्य में ‘होली छोटी करें और पुरी दान में दें’ का दुष्प्रचार चल रहा है । हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ राज्यों के संगठक श्री. सुनील घनवट ने १९ मार्च को आयोजित पत्रकार परिषद में आवाहन करते हुए कहा कि हिन्दू इस झांसे में न आएं और तथाकथित आधुनिकतावादी विचारों की ही होली कर धर्मशास्त्रसम्मत सात्त्विक धर्माचरण कर होली का आनंद उठाएं ।
इस अवसरपर धर्मजागरण मंच के प्रशासनिक विभाग के महानगरप्रमुख श्री. रमेश अगरवाल, सनातन संस्था की श्रीमती मंगला पागनीस, हिन्दू विधिज्ञ परिषद की अधिवक्ता श्रीमती वैशाली परांजपे एवं नागपुर समन्वयक श्री. अतुल अर्वेन्ला उपस्थित थे । जळगांव में भी पत्रकार परिषद की गई ।

श्री. सुनील घनवट ने आगे कहा,

१. आज मुसलमान और ईसाईयों को इस्लाम और बाईबल की शिक्षा मिलती है; किंतु दुर्भाग्यवश बहुसंख्यक हिन्दू समाज को केवल विद्यालय-महाविद्यालयों में ही नहीं, अपितु मंदिरों में भी धर्मशिक्षा नहीं दी जाती । इसके फलस्वरूप हिन्दुआें में हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार किए जानेवाले धर्माचरण के संदर्भ में घोर अज्ञान होता है । निरीश्‍वरवादी अर्थात नास्त्किवादी इसी अज्ञान का लाभ उठाकर हिन्दुआें में भ्रम फैलाते हैं ।

२. विवेकवाद का बुर्का पहने ये तथाकथित विवेकवादी ‘कचरे की होली करें’, का आक्रोश तो करते हैं; किंतु वास्तव में कचरे में मिले हुए प्लास्टिक को जलाने से कितनी बडी मात्रा में प्रदूषण होगा, इसका भान उन्हें नहीं होता ।

३. हिन्दू धर्मशास्त्र मूलतः पर्यावरणपूरक ही है । ‘होली के लिए कोई भीच अच्छा वृक्ष तोडें’, ऐसा कहींपर भी लिखा नहीं गया है, अपितु धर्मशास्त्र में वृक्ष की सूखी हुई टहनियों का उपयोग करने तथा उन्हें काटते समय भी मूल वृक्ष को भी किसी प्रकार की हानि न पहुंचे, इसकी ओर भी ध्यान देकर वृक्ष की क्षमायाचना करने की भी बात कही गई है । के लिए कहा गया है । आधुनिकतावादी इसका अध्ययन करें कि विश्‍व में ऐसा और कौनसा धर्म है, जो पर्यावरण का इतना ध्यान रखता हो ?

४. क्या किसी एक भी आधुनिकतावादियों ने आजतक कभी ‘क्रिसमस ट्री बनाने के लिए वृक्ष न तोडें’, ‘चर्च के बाहर अनावश्यक पद्धति से मोमबत्तियां न जलाकर उनका उपयोग निर्धन लोगों के घर में प्रकाश फैलाने के लिए करें’, ‘३१ दिसंबर को मदिरापान न कर उन पैसों को निर्धनों में बांटे’, ‘कबरोंपर चादर न चढाकर उन्हें भिखारीयों को दें’, ‘ईद के दिन बकरियां और गायों की हत्या न करें’, ‘हजयात्रा के पैसों को निर्धनों को दान में दें’ के आवाहन का अभियान चलाते हुए किसी ने देखा है ?

५. यह कृत्य केवल हिन्दू धर्म को लक्ष्य बनाने के लिए हैं, जो आधुनिकतावादियों का पाखंड है । अब हिन्दुआें को इन लोगों से यह पूछना चाहिए कि ‘हम हिन्दू हैं; इसलिए हम हिन्दू धर्म की प्रथाआें के विषय में बोलते हैं’, ऐसा कहनेवालों को क्या मुसलमान और ईसाई अपने नहीं लगते ? अन्य समयपर सर्वधर्मसमभाव का रोना रोनेवाले यहां क्यों पक्षपात करते हैं ?

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