त्रिपुरा : ९८ ईसाईयों ने किया हिन्दू धर्म में पुनर्प्रवेश

नई देहली : पिछले सप्ताह त्रिपुरा से एक खबर आई, जिसमें हिंदू जागरण मंच ने दावा किया कि वहां के ९८ ईसाईयों ने पुन: हिंदू धर्म अपना लिया है ! खास बात ये है कि ईसाई से हिंदू बननेवाले सभी लोग आदिवासी समुदाय के हैं और इन्होंने करीब ९ साल पहले तक ये हिंदू ही थे। वर्ष २०१० में इन लोगों ने हिंदू धर्म से ईसाई धर्म अपना लिया था !

दोबारा हिंदू धर्म अपनाने पर इनमें से कुछ लोगों ने कहा कि, तब इन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए लालच दिया गया था। हालांकि धर्म परिवर्तन के बाद उनका ईसाई समुदाय में तिरस्कार होने लगा ! उनसे किए गए वादे पूरे नहीं हुए। इस वजह से उन्होंने अब दोबारा हिंदू धर्म अपनाने का फैसला लिया है। वहीं इनमें से कुछ लोगों ने एक पवित्र बैल से जुड़ी हुई कहानी बताई है, जो उनके दोबारा धर्म परिवर्तन करने की एक चौंकानेवाली वजह है !

सार्वजनिक कार्यक्रम में हुई घर वापसी

पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा के उनाकोटि जिले के राची पाड़ा गांव में बीते रविवार (२० जनवरी २०१९) को २३ आदिवासी परिवार के ९८ लोगों ने अचानक से हिंदू धर्म अपना लिया ! इसके लिए वहां हिंदू संगठनों की तरफ से सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। धर्म परिवर्तन के इस कार्यक्रम से विश्व हिंदू परिषद (विहिप) भी जुड़ी हुई थी। इस कार्यक्रम में पुजारियोंद्वारा पूरे रीति-रिवाज और पूजा-पाठ के साथ ईसाईयों का धर्म परिवर्तन और शुद्धिकरण किया गया था।

बिहार और झारखंड के हैं आदिवासी

इसके बाद हिंदू जागरण मंच ने २१ जनवरी २०१९ को प्रेस कॉफ्रेंस कर ९८ आदिवासियों के ईसाई से दोबारा हिंदू धर्म में आने की जानकारी मीडिया को दी। दोबारा हिंदू धर्म अपनानेवालों में से ज्यादातर लोग बिहार और झारखंड के हैं, जो उनाकोटी जिले के सोनामुखी चाय बागान में काम करते थे। इनमें से अधिकतर आदिवासी उरांव और मुंडा समुदाय के हैं। बागान बंद होने के बाद इन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रलोभन दिया गया था !

ये है पवित्र बैल से जुड़ी कहानी

ईसाई से हिंदू बने कुछ लोगों का कहना है कि पिछले माह क्रिसमस के मौके पर गांव के कुछ आदिवासी लड़कों ने पास ही एक पवित्र बैल की हत्या कर दी थी ! बताया जाता है कि हिंदुओं ने इस पवित्र बैल को भगवान शिव के नाम पर छोड़ा था। इसलिए इस बैल को शिव के वाहन नंदी की तरह पवित्र माना जाता था। उसकी हत्या के बाद यहां बहुत कुछ बदल गया। गांव के ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी नहीं थी। हिंदू संगठनों को जैसे ही घटना का पता चला तो उन्होंने गांव में आकर हिंदू से ईसाई बने कुछ आदिवासियों की पवित्र बैल की हत्या करने के आरोप में पिटाई की। हालांकि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि पवित्र बैल की हत्या किसने और क्यों की थी ?

बैल की हत्या के बाद गांव में बने माहौल का असर ये हुआ कि धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासी डर गए। मामले में कैलाशहर पुलिस ने बैल की हत्या के आरोप में चार लोगों को गिरफ्तार भी किया था, जिन्हें जमानत मिल गई। दोबारा हिंदू धर्म अपनानेवाले लोगों के अनुसार दस साल पहले हम भले ही ईसाई बन गए थे, लेकिन मूल रूप से हम सनातन धर्म के ही हैं ! गांव में जब पवित्र बैल की हत्या हुई तो हम लोगों पर काफी मुसीबत आ गई थी। इसके बाद इस पूरे अशांत माहौल को ठीक करने के लिए हम लोगों ने (आदिवासियों ने) एक साथ दोबारा हिंदू धर्म अपनाने का फैसला लिया !

इसलिए की थी पवित्र बैल की हत्या !

मामले में हिंदू जागरण मंच के नेताओं का कहना है कि पवित्र बैल की हत्या के बाद वह लोग उस गांव में गए थे, लेकिन उनकेद्वारा न तो किसी को पीटा गया और न ही किसी पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाया गया। कार्यकर्ताओं ने ग्रामीणों को समझाया था कि आप लोग मूलतः हिंदू हो और आपको ऐसा काम नहीं करना चाहिए ! इन लोगों का दावा है कि इसी दौरान उन्हें पता चला कि पास की दारलोंग बस्ती से ईसाई प्रचारक प्रत्येक रविवार को इस गांव में आकर लोगों को गाय खाने के लिए प्रेरित करते थे ! उन्हीं से प्रेरित होकर कुछ लोगों ने पवित्र बैल की हत्या की थी ! हालांकि इन आरोपों की कोई पुष्टि नहीं है। हिंदू जागरण मंचा का आरोप है कि क्रिश्चियन मिशनरी ग्रामीण इलाकों में रहनेवाले गरीब हिंदुओ को भ्रमित कर और लालच देकर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करते हैं !

अंधविश्वास में बने थे ईसाई

१० साल में दो बार धर्म परिवर्तन करनेवाले इन आदिवासियों का कहना है कि उन्होंने अंधविश्वास में पड़कर ईसाई धर्म अपनाया था ! दरअसल उनके गांव के लगभग हर घर में छोटे बच्चे मानसिक बीमारी के शिकार हो रहे थे। गांव के लगभग हर घर में एक बच्चा दिमागी बीमारी का शिकार है। कुछ घरों में बड़ी उम्र के लोग भी दिमागी बीमारी से पीड़ित हैं ! ईसाई प्रचारकों को जब इसका पता चला तो उन्होंने गांव के लोगों को समझाया कि अगर वह ईसाई धर्म अपना लें और उनके साथ चर्च में प्रार्थना करें तो उनको इस मुसीबत से छुटकारा मिल सकता है। इस वजह से करीब नौ साल पहले इन आदिवासियों ने ईसाई धर्म अपना लिया था। इसके बाद ईसाई मिशनरी के लोगों ने गांव में एक पक्का चर्च बना दिया, जहां सभी लोग मिलकर प्रार्थना करने लगे। इनके दोबारा से हिंदू बनने के बाद से गांव का वह चर्च सूना पड़ा हुआ है !

स्त्रोत : जागरण

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