मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष सप्तमी, कलियुग वर्ष ५११६
अपनी पुत्रीको पत्रद्वारा झूठा इतिहास बतानेवाले नेहरुजीने छोटे बच्चोंको संस्कारित करनेका कार्य (?) कैसे किया होगा ?
नेहरु जयंतीके निमित्तसे…
विचार एवं आचारके विषयमें नेहरुजीने बच्चोंके समक्ष कौनसा आदर्श रखा है ? नेहरुजीके जन्मदिवसपर बालदिवस मनाया जाता है । सभी हिन्दुओंको संगठित होकर इसका बहिष्कार करना चाहिए ।
जवाहरलाल नेहरु भारतके प्रथम प्रधानमन्त्री थे । मत भिन्न-भिन्न हो सकते हैं; परंतु वस्तुस्थिति एक जैसी ही होती है । प्रस्तुत लेख जवाहरलाल नेहरुजीके कुछ पहलुओंको उजागर करनेवाला है । जवाहरलाल नेहरुने ‘द डिस्कवरी ऑफ इंडिया एवं ‘द ग्लम्प्सेस ऑफ वल्र्ड हिस्टरी’ ऐसी दो पुस्तके लिखीं । इन पुस्तकोंद्वारा उन्होंने भारतके इतिहासके साथ अन्य विषयोंपर भी लिखा है । प्रस्तुत लेख उन्होंने इस पुस्तकमें क्या लिखा है ? इसपर आधारित है ।
१. ‘द ग्लिम्प्सेस ऑफ वल्र्ड हिस्टरी’ पुस्तकमें बताए अनुसार तैमूरलंगने केवल लूटने एवं विध्वंस करने हेतु भारतमें आकर हिन्दू एवं मुसलमानोंमें अंतर न करते हुए १ लाख लोगोंकी हत्या करना
‘द ग्लिम्प्सेस ऑफ वल्र्ड हिस्टरी’ पुस्तकमें मुसलमान घुसपैठ तैमूरलंगके विषयमें नेहरू अपनी पुत्री इंदिरा गांधीके लिए लिखते हैें कि भारतके वैभवसे यह क्रूर मनुष्य आकृष्ट हुआ । भारतपर आक्रमण करनेके प्रस्तावके लिए अपने सरसेनापतिका मन मोडना उसके लिए कठिन था । भारतमें गर्मीके मौसमके कारण वहां जाने के लिए सनसेनापति तीव्र विरोध कर रहे थे । अंतमें तैमूरने उन्हें शब्द दिया कि हम भारतमें नहीं रहेंगे । वहां जाकर केवल लूट एवं विध्वंस कर वापिस आना है । इस कथनके अनुसार उसने इन शब्दोंका पालन किया । जिस समय तैमूरलंग उसके मंगोल सैन्यके साथ वहां आया, उस समय वहां उसे विरोध करनेवाला कोई नहीं था । अतः वह आनंदके साथ हत्या करता गया । इसमें हिन्दू एवं मुसलमानमें पक्षपात न कर दोनों मारे गए । उसके पासके एक लाख कैदी उसे भारी पडनेसे उसने सभीकी हत्या करनेका आदेश दिया ।
२. तैमूरकी आत्मकथा ‘मलफुजत-ए-तिमुरी’ से स्पष्ट होता है कि उसने इस्लामिक जिहादके लिए भारतपर आक्रमण किया एवं नेहरुतीने पुत्रीसे यह सत्य छिपाया । नेहरुजीने लिखा हुआ यदि सत्य माना गया, तो किसीको भी ऐसा प्रतीत होगा कि तैमूरलंगने जिहादके लिए नहीं, अपितु केवल लूट करने हेतु आक्रमण किया था । साथ ही वह धर्मनिरपेक्ष था ऐसा भी लगेगा; परन्तु तैमूरने उसके ‘मलफुझत-ए-तिमुरी’ आत्मकथामें हिन्दुस्थानपर किए आक्रमणके विषयमें इसप्रकार लिखा है ।
वह कहता है कि मेरे मनमें नास्तिकोंके विरुद्ध आक्रमण कर स्वयं गाजी बननेकी इच्छा उत्पन्न हुई । (उसे ज्ञात था कि नास्तिकोंका संहार करनेवाला विजेता अथवा कैवारी माना जाता है एवं वह मारा गया, तो उसे शहीद कहा जाता है ।) इसके अनुसार मैंने निश्चय किया; परन्तु मेरे लिए इस बातका निर्णय लेना असंभव हो गया था कि मैं मेरा उपक्रम चीनके नास्तिकोंके विरुद्ध करूं अथवा भारतके नास्तिक एवं अनेकेश्वरवादियोंके विरुद्ध करूं ? इसलिए मैेंने कुरानसे शुभचिन्ह ढूंन्ढ निकाला एवं मुझे अगली पाक्तियां मिली । हे देवदूत, नास्तिकोंके विरुद्ध युद्ध कर उन्हें कठोर दण्ड दे । (संदर्भ : कुरान, आयत ९, कविता ७३)
(सैन्यके) पलटनके पलटणीचे आमीर इन शब्दोंसे अस्वस्थ हो गए; परंतु मैंने उनसे कहा कि मुहम्मदकी आज्ञाका पालन करने हेतु नााqस्तकोंके विरुद्ध युद्ध करने हेतु मैं भारतपर आक्रमण करूंगा, जिससे आपको एवं आपके परिवारजनोंको ईश्वरके आशीर्वाद एवं शांति मिलेगी । उस देशके लोगोंको हम सही रूपसे आस्थाकी ओर मोडकर उस भूमिको नास्तिक एवं अनेकेश्वरवादकी गन्दगीसे मुक्त कर उसे पवित्र करेंगे । उनके मन्दिर एवं मूर्तियां उद्ध्वस्त कर भगवानके गाजी अथवा मुजाहिदीन बनेंगे ।
उन्होंने नाराजीसे अनुमति दी, तब भी मैैं उनपर निर्भर नहीं रहा । ऐसे समय मैंने इस्लामके विचारकोंका मत जाना । उन्होंने कहा कि इस्लामका केवल अल्ला ईश्वर है एवं मुहम्मद अल्लाका देवदूत है ऐसा माननेवाले लोगोंका सुलतान इस नातेसे तुम्हारा कर्तव्य है कि अपने धर्मकी रक्षा कर उसे अधिक दृढ करने हेतु शत्रुकी आस्थाओंका दमन करनेका यथासम्भव प्रयास करें चाहिए तथा सुलतानकी आज्ञाका पालन करना प्रत्येक मुसलमानका कर्तव्य ही है । जानकारोंके इस बोधामृतसे सैन्यप्रमुख हिंदुस्थानविरुद्ध पवित्र युद्ध (जिहाद) करने हेतु सिद्ध हो गए तथा घुटनोंपर रहकर सफलताके अध्यायका पुनरुच्चार करने लगे । इससे स्पष्ट होता है कि यह आक्रमण इस्लामिक जिहादके लिए था; परन्तु यह सत्य नेहरुजीने अपनी पुत्रीसे (इंदिरा गांधीसे ) छिपाया ।
३. कैदमें स्थित मूर्तिपूजकों एवं इस्लामके शत्रुओंको छोड देना युद्धके नियमोंका उल्लंघन करनेके समान है । इसलिए तैमूरने कैदमें स्थित १ लाख हिन्दुओंकी हत्या करनेका आदेश देकर उनकी हत्या करना
तैमूरलंगने एक रात्रिमें १ लाख लोगोंकी हत्या की थी । इस अध्यायका शीर्षक ही ‘१ लाख हिन्दुओंकी हत्या’ ऐसा है । इसमें कहा गया है कि इस दरबारमें अमीर जहां शा, अमीर सुलेमान शा, तथा अन्य अनुभवी आमीरोंने मेरे ध्यानमें यह बात लाई कि हिन्दुस्थानमें प्रवेश करनेसे लेकर अबतक १ लाख हिन्दू नास्तिकोंको बन्दी बनाया है एवं वे मेरे ही छावनीमें हैं । शत्रुओंकी सफलताके विषयमें ज्ञात होते ही आक्रमण करनेके पहले दिन ये कैदी हर्षाेल्लासके संकेत कर हमें शाप दे रहे थे । वे सब संगठित होकर स्वयंको मुक्त कर हमारी छावनियोंको उद्ध्वस्त करनेसे पूर्व एवं शत्रुओंसे हाथ मिलाकर सामर्थ्य बढानेसे पूर्व मैंने धर्मगुरुका परामर्श लिया ।
इस भयंकर युद्धके दिन इन १ लाख कैदियोंको सामुग्रीके साथ छोड देना उचित नहीं है । इन मूर्तिपूजकोंको एवं इस्लामके शत्रुओंको छोड देना युद्धके नियमोंका उल्लंघन करनेके समान है । इसलिए उनकी हत्या करनेके अतिरिक्त और कोई पर्याय ही शेष नहीं था । यह सुननेपर यह युद्धके नियमोंके अनुसार रहनेसे मैंने त्वरित अगली आज्ञा दी कि छावनीमें जिनके पास नास्तिक कैदी हैं, वे उन कैदियोंकी हत्या करें एवं जो इस आज्ञाका उल्लंघन करेगा, उसकी भी हत्या की जाएगी एवं उसकी सम्पत्ति इस बातकी जानकारी देनेवालेको (खबरीको) दी जाएगी । इस विषयमें इस्लामके गाजीको ज्ञात होते ही उन्होंने उनके वैâदियोंकी हत्या की । १ लाख नास्तिक, अपवित्र मूर्र्तिपूजक उस दिन मारे गए । मौलाना नसिरुद्दीन उमर, विचारक एवं उपदेशक, जिसने अपने जीवनमें कभी एक चिडिया भी नहीं मारी थी, मेरी आज्ञाका पालन करनेहेतु उसने १५ हिन्दू मूर्तिपूजकोंकी हत्या की । अत्यंत अधमतासे इन मूर्तिपूजकोंको नरकमें भेजा गया ।
इससे पुनः सिद्ध होता है कि नेहरुजी अपनी पुत्रीको तैमुरलंगके सर्वधर्मसमभावके संन्दर्भमें ऐसा झूठ बता रहे थे, जो जिहादियोंके जितना ही कडवा था ।
४. गजनीके महमूदके सम्बन्धमें भी झूठा इतिहास लिखनेवाले नेहरू
नेहरूने केवल तैमुरलंगके सम्बन्धमें ही नहीं, अपितु हमारे पूर्वजोंपर असीम अत्याचार कर उनकी हत्या करनेवाले प्रत्येक क्रूर अधम व्यक्तिका क्लेशदायी भाग उनके लेखनसे हटाकर उसे स्वीकारार्ह किया ।
गजनीके महमूदके सन्दर्भमें भी उन्होंने ऐसा ही लिखा है । महमूद आस्थावानकी अपेक्षा योद्धा था । अन्य विजेताओंके समान उसने भी अपनी सफलताके लिए धर्मका दुरुपयोग किया । वह केवल यहांकी सम्पत्ति एवं अलंकार उसके देशमें ले जाने हेतु भारत आया था ।
४ अ. महमूदका सचिव उत्बीद्वारा लिखित जानकारीके अनुसार जिहादके लिए महमूदने हिन्दुओंपर बारबार आक्रमण कर बलप्रयोग कर पूरे नगरोंको अपने नियंत्रणमें लिया : यद्यपि महमूदने तैमूरसमान आत्मचरित्र न लिखा हो, परंतु उसके अबू नुस्र मुहम्मद इब्न मुहम्मद अल् जब्बरूल् उत्बी नामक सचिवने इन जिहादी कृत्योंका विस्तृत रुपसे वर्णन किया है ।
उत्बी कहता है कि जिहादके लिए उसने (महमूदने) हिन्दुस्थानपर अनेक बार आक्रमण किए । रक्षा करनेवाले सैन्यको खदेडकर वहांकी सम्पत्ति लूटकर उसने अत्युच्च पहाडीके गढ जीत लिए एवं हिन्दुस्थानके लोगोंकी पूरी सम्पत्ति हथियाकर पूरे नगर-दर-नगर उसने बलका उपयोग कर नियन्त्रणमें लिए । तबतक वहां केवल नााqस्तक (मुसलमानोंका धर्म न माननेवाले) थे एवं उन्हें मुसलमानोंके उंट एवं घोडोंके पांवके नीचे कुचला नहीं गया था।
४ आ. मथुरा नगर एवं यहांके भवनोंसे महमूद आकृष्ट हुआ ! : गजनीके महमूदका हा विद्रूप मुखौटा झाकनेके लिए ‘द डिस्कवरी ऑफ इण्डिया’ पुस्तकमें नेहरू उसके लिए सहस्रों लाल दिनार व्यय करना अपरिहार्य है, तथा उसका निर्माणकार्य करने हेतु अनेक कुशल एवं अनुभवी कारागिरोंको नियुक्त करनेपर भी न्यूनतम २०० वर्ष लगेंगे । वहांकी मूर्तिर्योंमें ५ मूर्तियां १५ फूट उंचाई एवं सोनेकी हैं । इन मूर्तियोंको पीछेकी ओर कोई आधार नहीं है । इनमें एक मूर्तिकी आंखोंमें दो अमूल्य माणक थे । एक माणकका मूल्य ५० सहस्र दिनार था । दूसरी मूर्तिमें विद्यमान नीलम पानीसे भी शुद्ध एवं स्फटिकसे भी अधिक चमकनेवाला था । उसका भार ४५० मिस्कल था (१ मिस्कल अर्थात ४.२५ ग्राम) दूसरी एक मूर्तिके दोनो पंजोंका भार ४ सहस्र ४०० मिस्कल इतना था । सभी मूर्तियोंको लगे सोनेका भार ९८ सहस्र ३०० मिस्कल इतना था । चान्दीकी २०० मूर्तियां थीं, जिनके टुकडे कर वजनमशीनमें रखे बिना भार करना असम्भव था ।
सुलतानने सब मंदिर डाम्बर, पेट्रोल आदि पदार्थोंसे मिलनेवाला ज्वलनशील तेल डालकर उन्हें नष्ट करनेकी आज्ञा दी । जिस उद्देश्यसे अजमल कसाब एवं उसके मित्र भारतमें आए थे, उसी उद्देश्यसे इमारतके इस तथाकथित रसिकने (महमूदने) यह भव्य दिव्य मण्दिर उद्ध्वस्त किया ।
५. अपनी बेटीसे निस्संकोच रूपसे असत्य बोलनेवाला व्यक्ति त क्या विश्वास करने योग्य है ?
इतिहासके पाठ्यपुस्तककी संक्षेपमें शैली निश्चित करनेवाले श्री. नेहरू ही थे । आजतक एन.सी.इ.आर.टी., आय.सी.एच.आर. एवं. जे.एन.यू. समान तथाकथित लोग तांत्रिक एवं विद्यालयीन संस्थाओंने ऐतिहासिक घटनाओका विकृतीकरण करनेका दुष्कृत्य किया है । झूठेको झूठा बोलनेका अब समय आगया है, भले ही वह व्यक्ति कोई भी हो ।
दायित्व निभानेवाले एक व्यक्तिद्वारा कहे गए असत्यको यह समाज किस प्रकारसे प्रतिसाद देगा ?
अपनी पुत्रीसे निस्सन्कोच रूपसे असत्य बोलनेवाला व्यक्ति क्या विश्वासपात्र है ? जिस समाजमें सत्य परम धर्म है, ऐसी शिक्षा देनेवाले पतंजली समान अनेक ऋषिमुनि होकर गए, क्या उस समाजसे ऐसे व्यक्तिको सम्मान मिलना संम्भव है ?
– श्री. नीरज अत्री (अध्यक्ष, विवेकानंद कार्य समिति), पंचकुला, हरियाना
(लेखक राष्ट्रीय ऐतिहासिक अनुसन्धान एवं तुलनात्मक अध्ययन केन्द्रद्रके अध्यक्ष हैं । उन्हें [email protected] संगणकीय पतेपर सम्पर्क कर सकते हैं ।)