३ दिसंबर को आनेवाली दत्तजयंती के अवसर पर जानते है दत्तात्रेय देवता की उपासना का अध्यात्मशास्त्र !

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मृग नक्षत्रपर सायंकाल भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ, इसलिए इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्मोत्सव सर्व दत्तक्षेत्रों में मनाया जाता है ।

दत्तजयंती पर दत्ततत्त्व पृथ्वीपर सदा की तुलना में १००० गुना कार्यरत रहता है । इस दिन दत्त की भक्तिभाव से नामजपादि उपासना करनेपर दत्ततत्त्व का अधिकाधिक लाभ मिलने में सहायता होती है ।

जन्मोत्सव मनाना

दत्तजयंती मनाने संबंधी शास्त्रोक्त विशिष्ट विधि नहीं पाई जाती । इस उत्सवसे सात दिन पूर्व गुरुचरित्र का पारायण करने का विधान है । इसीको गुरुचरित्रसप्ताह कहते हैं । भजन, पूजन एवं विशेषतः कीर्तन इत्यादि भक्ति के प्रकार प्रचलित हैं । महाराष्ट्र में उदुंबर (गूलर), नरसोबाकी वाडी, गाणगापुर इत्यादि दत्तक्षेत्रों में इस उत्सव का विशेष महत्त्व है । तमिलनाडु में भी दत्तजयंती की प्रथा है । कुछ ब्राह्मण परिवारों में इस उत्सव के निमित्त दत्तनवरात्रि का पालन किया जाता है एवं उसका प्रारंभ मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी से होता है ।

दत्तयाग

इसमें पवमान पंचसूक्त के पुरश्चरण (जप) एवं उसके दशांश से अथवा तृतीयांश से घृत (घी) एवं तिलसे हवन करते हैं । कुछ स्थानोंपर पंचसूक्त के स्थानपर दत्तगायत्री का जप एवं हवन करते हैं । दत्तयाग के लिए किए जानेवाले जपकी संख्या निश्चित नहीं है । स्थानीय पुरोहितों के परामर्श अनुसार जप एवं हवन किया जाता है ।

भगवान दत्तात्रेय की उपासना के अंतर्गत कुछ नित्य के कृत्यों के विषय में ईश्वर से प्राप्त ज्ञान

प्रत्येक देवता का विशिष्ठ उपासनाशास्त्र है । इसका अर्थ है कि, प्रत्येक देवता की उपासना के अंतर्गत प्रत्येक कृत्य विशिष्ट प्रकार से करनेका शास्त्राधार है । ऐसे कृत्य के कारण ही उस देवता के तत्त्व का अधिकाधिक लाभ होने में सहायता होती है । दत्त उपासना के अंतर्गत नित्यके कुछ कृत्य निश्चितरूप से किस प्रकार करने चाहिए, इस संदर्भ में सनातन के साधकों को ईश्वर से प्राप्त ज्ञान यहां प्रस्तुत सारणी में दिया है । ये और ऐसे विविध कृत्योंका शास्त्राधार सनातन-निर्मित ग्रंथमाला ‘धर्मशास्त्र ऐसे क्यों कहता है ?’ में दिया है ।

उपासनाका कृत्य कृत्यविषयक ईश्वरद्वारा प्राप्त ज्ञान
१. दत्तपूजनसे पूर्व उपासक स्वयंको कौनसा तिलक कैसे लगाए ? श्रीविष्णुसमान खडी दो रेखाओंका तिलक लगाए ।
२. दत्तको चंदन किस उंगलीसे लगाएं ? अनामिकासे
३. पुष्प चढाना

अ. कौनसे पुष्प चढाएं ?

आ. संख्या कितनी हो ?

इ. पुष्प चढानेकी पद्धति क्या हो ?

ई. पुष्प कौनसे आकारमें चढाएं ?

 

जाही एवं रजनीगंधा

सात अथवा सात गुना

पुष्पोंका डंठल देवताकी ओर कर चढाएं ।

चतुष्कोणी आकारमें

४. उदबत्तीसे आरती उतारना

अ. तारक उपासनाके लिए किस सुगंधकी उदबत्ती ?

आ. मारक उपासनाके लिए किस सुगंधकी उदबत्ती ?

इ. संख्या कितनी हो ?

ई. उतारनेकी पद्धति क्या हो ?

 

चंदन, केवडा, चमेली, जाही एवं अंबर

हीना

दो

दाएं हाथकी तर्जनी एवं अंगूठेके बीच पकडकर घडीकी सुइयोंकी दिशामें तीन-बार पूर्ण गोलाकार घुमाकर उतारें ।

५. इतर (इत्र) किस सुगंधकी अर्पण करें ? खस
६. दत्तकी न्यूनतम कितनी परिक्रमाएं करें ? सात

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – भगवान दत्तात्रेय : खंड १)

भगवान दत्तात्रेय के संदर्भ में अधिक जानकारी हेतु देखें : https://www.hindujagruti.org/hindi/hinduism/hindu-gods/dattatreya

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