प्रशासनिक उपेक्षा के बाद भी एक एेसा गांव जहां अनपढ़ भी बोलते हैं संस्कृत में

राजगढ : बीते १४ वर्ष से संस्कृत को सामान्य बोलचाल में अपनाने वाले झिरी गांव में समय बीतने के साथ अब संस्कृत बोलने वालों की संख्या घटती जा रही है। इसके पीछे प्रशासनिक उपेक्षा को कारण बताया जा रहा है। वहीं गांव को संस्कृतभाषी बनाने की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ पदाधिकारियों की मानें तो सरकार ग्रामीणों की रुचि को प्रोत्साहित ही नहीं कर सकी। लगभग १४ वर्ष से ग्रामीण गांव में संस्कृत विद्यालय खोलने की मांग कर रहे हैं परंतु सरकार ने इस मांग पर कोई पहल नहीं की।

हालांकि स्वयंसेवी अब भी हार मानने को तैयार नहीं है। गांव में ही सरकारी विद्यालय में जनभागीदारी से प्रतिदिन एक घंटे निःशुल्क संस्कृत संभाषण कक्षा लगाकर नई पीढ़ी को संस्कृत से जोड़ा जा रहा है। आरएसएस के प्रांतीय गौ सेवा प्रमुख उदयसिंह चौहान के अनुसार, गांव में वर्ष २००६-०७ में जिला प्रशासन द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार ७० प्रतिशत ग्रामीण निर्बाध गति से संस्कृत में संवाद करने लगे थे।

यह संख्या अब घटकर ५० प्रतिशत के आसपास रह गई है। आरएसएस के विभाग संघचालक लक्ष्मीनारायण चौहान के अुनसार ग्राम स्तर पर संस्कृत को बढ़ावा देने सरकार से कुछ नहीं मिला है, जो कुछ भी प्रयास हो रहे हैं, वह स्थानीय स्तर पर जनभागीदारी से किए जा रहे हैं।

कान्वेंट के बच्चों को भी दे रहे निःशुल्क संस्कृत शिक्षा

जनभागीदारी से प्रतिदिन सरकारी विद्यालय में सुबह ८ से ९ बजे तक निःशुल्क संस्कृत संभाषण कक्षाएं लगाई जा रही हैं। इसमें सामाजिक कार्यकर्ता शीला चौहान एवं पवित्रा चौहान आम विद्यार्थियों, युवाओं सहित कान्वेंट विद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले बच्चे भी संस्कृत सीखकर इसे सामान्य बोलचाल में अपना रहे हैं। सरस्वती शिशु मंदिर में एक कक्षा संस्कृत संभाषण की लग रही है।

गांव में लगभग १२५ परिवारों में लगभग ११०० लोग निवासरत हैं। इनमें ९० परिवार पिछड़ा वर्ग, ३५ परिवार अजा सहित एक-एक परिवार सामान्य एवं अजजा वर्ग के हैं। गांव की सरदारबाई (६२), कमलाबाई चौहान (६८) एवं सीमा चौहान (२६) सहित करीब दो दर्जन महिलाएं अनपढ़ होकर भी फर्राटेदार संस्कृत संभाषण करने में निपुण हो गई हैं। गांव का एक घर ऐसा है, जिसमें सभी सदस्य संस्कृत में संवाद करते हैं, उस घर को संस्कृत गृहम की उपाधि से नवाजा गया है।

ऐसे संभव हुआ यह सब

वर्ष २००३ में संस्कृत भारती के सहयोग से दो वर्ष के लिए विस्तारिका के रूप में महिला विमला पन्ना को यहां भेजा था। मूलतः छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के चोगलीबहार गांव की इस महिला ने गांव में नित्य सुबह, दोपहर एवं शाम को क्रमशः बच्चों, महिलाओं एवं पुरुष वर्ग को निःशुल्क संस्कृत संभाषण करना सिखाया। पन्ना बताती हैं कि महज ६ माह में ही गांव के ७० प्रतिशत लोग संस्कृत की सरलता को समझकर जीवनचर्या में उपयोग करने लगे। कुछ वर्षों बाद उनकी नौकरी शिक्षा विभाग में लग गई एवं संभाषण कक्षाओं का क्रम रुक गया। पन्ना अभी भ्याना के उच्च विद्यालय में संस्कृत की अध्यापिका हैं एवं झिरी में ही रहती हैं। उनके विषय संस्कृत में सभी बच्चों को ९० प्रतिशत से अधिक अंक मिलते हैं।

जहां समाज जाग्रत, वहां सो रही सरकार

संस्कृत भाषा को लेकर झिरी गांव के लोगों में खासी रुची है, संस्कृत के मामले में हम झिरी को देश में मॉडल के तौर पर विकसित करना चाहते हैं, लेकिन जहां समाज खड़ा रहता है, वहां सरकार सोती रहती है। हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। संस्कृत को सामान्य बोलचाल की भाषा बनाने के लिए सरकार ने बीते चौदह वर्षों में सरकार गांव में एक संस्कृत विद्यालय तक नहीं खोल सकी है। प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार होकर भी हमारा प्रयास निरंतर जारी है। सरकारी विद्यालय में प्रतिदिन सुबह 8 से 9 बजे तक निःशुल्क संस्कृत संभाषण कक्षाएं लगाकर गांव को पूरी तरह संस्कृत भाषी बनाना चाहते है।

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