‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ के संकट से केवल ‘देसी गाय’ ही, मनुष्य को बचा सकती है – अन्वेषणकर्ताओं का निष्कर्ष

‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ ! पुरे मनुष्य जाति पर आया हुआ संकट !

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  • ग्लोबल वॉर्मिंग के संकट से मनुष्य को बचाने के लिए पहले गाय तो, बचनी चाहिए !

  • देश के सहस्रों पशुवधगृहों के संकट से उसे बचाने के लिए केंद्र शासन प्रयास करे, यह हिन्दुओं की अपेक्षा है !

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इस अनुसंधान का निष्कर्ष निम्नानुसार है . . .

१. इस अनुसंधान से विदेशी एवं संकरित जाति के दूध देनेवाले प्राणियों की अपेक्षा देसी गायों में अधिक तापमान सहन करने की क्षमता है तथा जल-वायु परिवर्तन का उनपर अल्प प्रभाव पडता है, इस बात की पुष्टि हुई है !

२. देसी गायों को उन की त्वचा के कारण तापमान सहन करने में सहायता होती है।

३. एनडीआयआरए के वैज्ञानिकों के मतानुसार धूप के माह में एवं सर्दीयों में अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान का परिणाम गायों के दूध देने की क्षमतापर होता है।

४. धूप के माह में ४० अंश से अधिक एवं सर्दियों में २० अंश से अल्प तापमान होनेपर दूध का उत्पादन ३० प्रतिशत से घटता है ! यह अध्ययन से ध्यान में आया है।

५. अधिक तापमान के कारण संकरित जाति की गायों से १५ से २० प्रतिशत अल्प दूध मिल सकता है; परंतु देसी गायोंपर इस का परिणाम नहीं होता !

६. तापमान में हुई वृद्धी अधिक कालावधितक चालू रहने से दूध देने की क्षमतासहित गाय-भैसों की प्रजनन क्षमतापर भी विपरीत प्रभाव पडता है !

७. राष्ट्रीय डेअरी अनुसंधन संस्थान के डॉ. ए.के. श्रीवास्तव ने बताया कि, देश के कुल दूध उत्पादन में से ५१ प्रतिशत दूध देसी जाति के गायोंद्वारा, तो २५ प्रतिशत दूध विदेशी जाति के गायों से मिलता है। तापमान बढते जाने से स्थिति और भी गंभीर हो सकती है ! ऐसे समय में देसी गायों को पालना, यही उसपर उत्तम उपाय है। गायों में ‘साहीवाल’ एवं भैसों में ‘मुर्रा’ वंश देशभर में कहीं भी पाले जा सकते हैं !

८. बरेली के पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आयव्हीआयआरए) के मुख्य वैज्ञानिक श्री. ज्ञानेंद्र गौड ने बताया कि, यदि तापमान बढा, तो उस का परिणाम संकरित गायोंपर होकर वह सर्वाधिक मात्रा में अस्वस्थ होती हैं। उस के कारण वह चारा खाना अल्प करती हैं तथा दुर्बल होती हैं। इस का परिणाम दूध देने में भी होता है। इस के विपरीत देसी वंश की गायें तुरंत अस्वस्थ नहीं होती !

९. देशभर में गायों की ३९ एवं भैसों की १३ प्रजातियां हैं। देशी जाति के ‘गीर’ गाय ने कुछ वर्ष पूर्व ब्राझील में ६२ लिटर दूध दिया था !

१०. ग्लोबल वार्मिंग का दूध के उत्पादनपर बहुत हानिकारक प्रभाव पड सकता है, ऐसा नैशनल डेअरी डेव्हलपमेंट (एनडीडीबी) का कहना है !

११. वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष २०२० तक दूध का उत्पादन प्रतिवर्ष ३० लाख टन से अधिक घट सकता है, यह सतर्क करनेवाली चेतावनी दी है !

१२. वर्ष २०१५-१६ में दूध का कुल उत्पादन १६ करोड टन हुआ है !

१३. आयव्हीआयआरए में दूध देनेवाली २५० गायें-भैसें हैं। उन से लगभग २ सहस्र ७०० लिटर दूध मिलता है; किंतु तापमान में वृद्धी के कारण उन दिनों में केवल २ सहस्र २०० लिटर दूध ही मिल सका है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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