श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी, कलियुग वर्ष ५११६
. . . इसलिए इसरायलको उत्तरदायी ठहराना हास्यास्पद है !
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इसरायलद्वारा गाजापट्टीपर आक्रमणकी तीव्रता जैसे जैसे बढाई गई, वैसे वैसे भारतीय प्रसारमाध्यमोंका गाजावासियोंके प्रति प्रेम अधिक ही उभर आया । कुछ दिन पूर्व, 'जी न्यूज'; समाचारप्रणालद्वारा 'रोनेवाले बच्चे अच्छे नहीं दिखते'; ऐसे शीर्षकवाली दृश्यश्राव्यचक्रिका प्रसारित की गई । इसमें इसरायलने गाजापट्टीके नागरिक बस्तीपर रॉकेटके आक्रमणसे घायल एवं मां-बापको खोए हुए बच्चोंके छायाचित्र दिखाए । 'बच्चे, किसी भी जाति अथवा धर्मके हों, रोते हुए अच्छे नहीं दिखते'; ऐसा, 'डायलॉग'; मारकर उनकी इस दुःस्थितिके लिए इसरायलको उत्तरदायी ठहराया जा रहा था । ‘एन.डी.टी.वी.’वाले तो इससे भी एक कदम आगे जाकर सीधे गाजा ही जा पहुंचे !
वहांके चिकित्सालयमें जलकर घायल हुए बच्चोंका साक्षात्कार प्रसारित किया । इन बच्चोंने ‘इसरायलद्वारा उनके घरोंपर रॉकेटसे आक्रमणकर उनका जीवन कैसे, नष्ट किया इसका पहाडा पढकर सुनाया । कुछ समाचारप्रणालोंने तो इसरायलको ‘युद्धखोर’ कहकर अपमानित किया । ऐसे समाचार प्रसारित कर स्वयंको ‘मानवतावादी’ दर्शानेवाले इन प्रसारमाध्यमोंको यह भी भान नहीं रहा कि वे ‘हमास’ जैसे जिहादी संगठनोंको बढावा दे रहे हैं । विश्वमें इसरायलके विरोधमे वातावरण संतप्त करने हेतु ‘हमास’ के आतंकवादी सुनियोजित रूपसे नागरिकोंका उपयोग करते हैं । उनके इस षडयंत्रकी बलि केवल भारतीय ही नहीं, अपितु अंतर्राष्ट्रीय प्रसारमाध्यम भी चढ रहे हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है ।
‘हमास’को बढावा देना निंदनीय !
मुसलमानप्रेमी मानवतावादी आवाज उठाते हैं कि ‘हमास’ के जिहादी आतंकवादियोंपर कार्यवाही करनेके नामपर इसरायल वहांके नागरिकोंको लक्ष्य बनाता है' । इसमें कितनी सत्यता है ?, इसरायल ऐसा क्यों करता है ?, यह जाननेकी भद्रता भी कोई नहीं दिखाता । ‘हमास’ने विविध विद्यालय, चिकित्सालय इत्यादि सार्वजनिक स्थानोंको आतंकवादी छावनीमें रूपांतरित किया है । कुछ दिन पूर्व समाचार प्रसारित हुआ था कि इसरायलने एक विद्यालयपर आक्रमण किया है, जिसमें अनेक बच्चोंकी मृत्यु हो गई । इसलिए विश्वभरके प्रसारमाध्यमोंने इसरायलके नामपर ढोल पीटा; परंतु ‘हमास’के आतंकवादियोंका लक्ष्य चूका एवं उनकेद्वारा इसरायलकी दिशामें छोडा गया रॉकेट गाजाके विद्यालयपर गिरा, इस सत्यको इसरायलने प्रमाण देकर स्पष्ट किया । यह समाचार प्रसारमाध्यमोंतक पहुंचा ही नहीं अथवा मुसलमान प्रेमके कारण दबाकर रखा गया ?
वर्ष २०१४ के आरम्भसे ‘हमास’ने इसरायलकी नागरिक बस्तियोंपर २०० रॉकेट दागे । गत २-३ वर्षोंमें साधारणतः ९ सहस्र रॉकेट इसरायलकी दिशामें दागे गए, यह सत्य कितने लोग जानते हैं ? इसरायलमें 'आयर्न ड्रोन सिस्टिम'; कार्यरत है । इसलिए ये रॉकेट इसरायली भूमिपर गिरनेसे पूर्व ही उनके सैनिकोंद्वारा वह हवामें ही उद्ध्वस्त कर दिए जाते हैं । यदि इतने रॉकेट इसरायलकी भूमिपर गिरे होते, तो इसरायल कबका उद्ध्वस्त हो गया होता । इतना करनेपर भी ‘हमास’ अलिप्त रहता है ।
इसके विपरीत 'इसरायलने हमारा सत्यानाश किया'; ऐसा दिखावा करते हुए विविध स्थानोंसे करोडों रुपयोंकी आर्थिक सहायता प्राप्त करनेमें वह सफल होता है । इस धनसे गाजावासियोंका पुनर्वसन करनेके स्थानपर उससे शस्त्रसंग्रह क्रय कर उसका उपयोग इसरायलके विरोधमें किया जाता है । गत कुछ वर्षोसे ‘हमास’द्वारा इस धनका उपयोग फिलीपाईनसे इसरायलकी भूमिमें पहुंचनेके लिए अनेक किलोमीटर लंबी सुरंग खोदनेके लिए किया गया है । ‘हमास’के आतंकवादी इन सुरंगोंसे इसरायलमें जाकर हत्याकांड कर रहे हैं । इन सभी घटनाओंका तीव्र विरोध क्यों नहीं किया जाता ?
शत्रुको पूर्णतः नष्ट करनेमें अयोग्य क्या है ?
कुकृत्य करनेवाला जितना पापी होता है, उसे सहायता करनेवाला उतनाही पापी होता है । ‘हमास’ एवं गाजावासियोंके विषयमें यह हूबहू लागू होता है । गाजाके मुसलमान ‘हमास’ की प्रत्येक कार्यवाहीका समर्थन करते हैं तथा उन्हें विविध प्रकारसे सहायता भी करते हैं । जिहादी आतंकवादियोंका समर्थन करनेसे गाजावासियोंके प्राण संकटमें पड गए हैं । इसलिए इसरायलको उत्तरदायी ठहराना हास्यास्पद है । गत अनेक वर्षोंमें इसरायलने ‘हमास’के साथ अनेक बार शस्त्र अनुबंध किया है; परंतु हमासने उसका अनुचित लाभ उठाया है । अतः उसका नाश करनेके अतिरिक्त इसरायलके पास अन्य विकल्प नहीं है । विश्वभरमें जिहादी आतंकवादियोंने आतंक मचा रखा है । भारतके समान इसरायल भी उनका लक्ष्य है । दोनों देशोंमें इतना ही अंतर है कि भारत इस समस्याका समाधान करने हेतु नरमी अपनाता है जबकि इसरायल सख्ती करता है ।
अपने नागरिकोंके भयमुक्त एवं शांतिपूर्ण जीवन यापन हेतु इसरायल स्वयंके सैनिकोंके प्राण संकटमें डालकर बहुत प्रयास करता है । इन प्रयासोंको ‘मानवताशून्य’ अथवा ‘पाशवी’के रूपमें तिरस्कृत करना बुद्धिमानीका लक्षण नहीं है ।
वास्तवमें केवल भारतीय इसरायलका दुःख समझ सकते हैं; क्योंकि दोनोंको दुःख देनेवाले एक ही हैं । यही बात भारतीय प्रसारमाध्यमोंके ध्यानमें क्यों नहीं आती ?
यदि भारतीय प्रसारमाध्यमोंमें शत्रु कौन एवं मित्र कौन यह समझनेकी बुद्धि नहीं है, तो इन प्रसारमाध्यमोंका क्या करना चाहिए, यह अब राष्ट्रप्रेमियोंद्वारा ही निश्चित करना योग्य होगा !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात