श्रावण कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५११६
'अब लडाई सीमापर नहीं, अपितु वह बाजारहाट, मंदिर, रुग्णालय आदि किसी भी स्थानपर हो सकती है । इसका अर्थ प्रत्येक मनुष्य एक अघोषित नागरी सैनिक ही है । आपको लगता है कि आप नि:शस्त्र एवं निर्दोष हो; परंतु जिहादी आतंकवादियोंको वैसा नहीं लगता । उनकी दृष्टिमें साधारण नागरिक भी शत्रु है । इसलिए उनपर भी उनकेद्वारा निश्चित रूपसे आक्रमण होंगे ।
१. आतंकवादके विषयमें असंवेदनशील शासन एवं नागरिक !
आज पूरे विश्वमें अनेक देश जिहादी आतंकवादकी छायामें हैं; परंतु विदेशके नागरिकोंकी अपेक्षा भारतीय नागरिक सर्वाधिक दुर्बल एवं कौशल्यहीन हैं । सरकार आतंकवादको गंभीरतासे नहीं देखती, यह इसके पीछेका प्रमुख कारण है । लोग ऐसे भ्रममें हैं कि आतंकवाद चिंताका विषय है; परंतु वह केवल जम्मू-कश्मीरमें । यहां उसका क्या है ?'
२. नागरिकोंका अत्यधिक आत्मविश्वास एवं उसकी वाहवा करनेवाले प्रसारमाध्यम !
गुप्तचर तंत्र क्या करते हैं ? पुलिस अथवा सैन्य दल क्या करते हैं ? इससे भी महत्वपूर्ण क्या यह नहीं है कि हम क्या करते हैं ? लोगोंको आतंकवादका उपद्रवमूल्य पर्याप्त रुपसे समझमें ही नहीं आता । 'विस्फोट हो गया ना, अब पुनः विस्फोट नहीं होगे', इस अत्यधिक आत्मविश्वासमें वे रहते हैं । प्रसिद्धिमाध्यम भी इस अत्यधिक आत्म-आत्मविश्वासकी प्रशंसा करते हैं । एक दुर्घटनाके समय प्रसारमाध्यमोंने दिखाया, 'जहां बमविस्फोट हुआ, वहांसे ही २ घंटोंसे प्रचंड भीडमें स्थानीय रेल्वे दौडने लगी !' यह असंवेदनशीलता एवं बेपर्वाईका (बेदरकारपन) लक्षण था ।
३. विदेशमें लोगोंको आपत्कालीन प्रशिक्षण देते हैं !
जिहादी आतंकवादकी छायामें रहनेवाले देशके नागरिकोंको सैनिकी प्रशिक्षण सक्तीका किया गया है । उनको 'खून-खराबाके अवसरपर क्या करें ?', इसका कौशल्य प्राप्त करा दिया जाता है । 'विस्फोटके पश्चात ठीक क्या करें ?', इसकी विस्तृत रूपसे धारणा उन्हें रहती है । वे इस प्रकारसे प्रशिक्षित होते हैं । एक स्थानपर बमविस्फोट होनेके पश्चात महाराष्ट्रके गृहमंत्री रा.रा. पाटिलने 'लंडन ट्यूब'के विस्फोटके उपरांत परिस्थितिके संदर्भमें जानकारी देते हुए कहा, 'लंडन ट्यूब' रेल्वेमें विस्फोटका समाचार फैनेपर लोगोंने सर्वप्रथम उससे संबंधित मार्ग स्वयं होकर रिक्त किए; क्योंकि उन्हें वैसा प्रशिक्षण मिला था । प्रत्यक्षमें जहां घातपात हुआ था, वहां सीधे जानेवाले वाहनधारकोंने मार्गके बाजूमेें अपने वाहन खडे किए थे, जिससे सभी मार्ग रुग्णवाहिका, अग्निशमन दल तथा सुरक्षातंत्रके वाहनोंके लिए रिक्त मिले ।'
४. आतंकवादी आक्रमणके विषयमें प्रशिक्षणहीन भारतीय नागरिक !
४ अ. भारतीय नागरिकोंका ऐसा कोई प्रशिक्षण हुआ नहीं है । आतंकवादसे सामना करने हेतु उनके पास आवश्यक कौशल्य भी नहीं है । आतंकवादी आक्रमणको वे किसी प्राकृतिक आपदाकी तरह देखते हैं । पशुवधगृहके भेडोंके समान वे आतंकवादी आक्रमणका चूपचाप सामना करते हैं । उन्हें इस बातका विस्मरण हो जाता है कि अपने हाथमें भी करनेयोग्य अनेक बाते हैं ।
४ आ. विस्फोट जैसे आपत्कालके अवसरपर क्या करना चाहिए ?, इसका प्रशिक्षण न रहनेसे मार्गपर वाहनोंका घिराव हाता है । हर कोई उठकर तत्काल घर जाने अथवा घातपातके स्थानपर द्रष्टाकी भूमिका निभानेका प्रयास करता है । द्रष्टाओंकी भीड अपने यहांकी सबसे अधिक उद्विग्नता उत्पन्न करनेवाली घटना है । पुलिसकी आधी शक्ति तो द्रष्टाओंको नियंत्रित करनेमें ही चली जाती है । 'तोडफोडके स्थानपर भीड नहीं करना चाहिए यह साधारण नियम है; परंतु तब भी भीड होती है । इसमें प्रसिद्धिमाध्यम भी 'जिसमें उसमें मैं’ के रूपमें उपस्थित रहते हैं । इस भीडमें अनेक घायल व्यक्तीयोंको समयपर सहायता मिलना असंभव होता है ।
४ इ. भीडमें शौकीन एवं नवशे सभी तरहके लोग होते हैं । ऐसे बेकार लोगोंके कारण घटनाकी दाहकता एवं मृतोंकी संख्या बढती जाती है ।
४ ई. अर्थात् केवल आपत्कालीन प्रशिक्षणपर ही नागरिकोंको जोर देना आवश्यक नहीं है । मूलतः अंतराराष्ट्रीय आतंकवादका अर्थ क्या है ? पूरे विश्वमें कौनकौनसे आतंकवादी गुट अस्तित्वमें हैं ? उनके स्थानीय भाईलोग (सगेसंबंधी ) कौन है ? उनके उद्दिष्ट क्या है ? उनका लक्ष्य कौन कौन है ? ये सब जानकारी हमारे पास रहना आवश्यक है ।
५. सहाय्य करते समय भान रहना महत्त्वपूर्ण है !
५ अ. यद्यपि लोगोंकी सहायताके लिए दौडकर जानेकी मानसिकता मूलतः अच्छी है; परंतु समयका भान रखकर एवं अपने पास कौनसा कौशल्य है, इसका विचार करनेके पश्चात ही सहायताके लिए दौडकर जाना उत्तम है । आपत्कालीन परिस्थितिमें अत्यधिक उत्साह दर्शानेवाले वीरोंको नियंत्रित करना पडता है, जिसके अनेक उदाहरण हमारे पास हैं ।
५ आ. मुंबईके एक बमविस्फोटके उपरांत के.ई.एम. रुग्णालयमें प्रथमोपचार करनेवाले 'चीफ वार्डबॉय'ने कहा था कि यदि लोगोंको रुग्णोंकी देखभाल करना असंभव हो, तो उन्हें उत्साहित होकर उनकी सहायताके लिए दौडकर नहीं जाना चाहिए । जिसे जो कार्य करना संभव है, वह वही करे । इसके पीछेका कारण यह कि विस्फोटके घाव विचित्र रहते हैं । कोई एक मनुष्यका शरीर उपरी तौरपर खूनसे सना नहीं दिखाई देता; परंतु उसके शरीरके अंदर रक्तस्राव होता रहता है । ऐसे समय उसे घटनास्थलपर तत्काल प्रथमोपचार मिलना आवश्यक है, जिसके उसके प्राणकी रक्षा हो सकती है ।
६. आपत्कालीन प्रशिक्षण ग्रहण किए लोगोंको सहायताका दायित्व लेना आवश्यक !
एक दुर्घटनामें अनेक लोगोंको चौपहिये वाहन अथवा रिक्शामें ठूंसकर भरा गया था । ऐसे समय रुग्णालयमें आनेपर मृतदेहोंकी पहचान हुए बिना आधुनिक वैद्योंके हाथमें कुछ भी नहीं रहता । घटनास्थलपर उपस्थित लोगोेंमें कोई वैद्य, परिचारिका अथवा जिसने प्रशिक्षण लिया हो, ऐसे लोगोंको दायित्व लेना चाहिए । कुछ वृद्ध लोग रक्तको देखकर उन्हें कुछ हो गया है, इस भयसे अधिक अस्वस्थ होते हैं । ऐसे समय रक्तचाप बढनेसे उनके आरोग्यपर संकट आता है । इसलिए आपत्कालीन प्रशिक्षण अत्यधिक आवश्यक है ।
७. क्या नई युद्धनीति स्वीकार करनेके लिए हम सक्षम हैं ?
नई सामायिक नीतिमें शत्रुके सैन्यको पूर्णतः नहीं मारा जाता अथवा हाथ-पांव एवं शरीरके साथ उसे वापस नहीं जाने दिया जाता । उन्हें अपंग कर उनके देशमें भेजा जाता है । इसलिए वे जीवित रहनेतक 'पेन्शन'का व्यय शत्रुराष्ट्रको करना पडता है । उनका रुग्णालयमें रहने एवं अन्य बातोंका व्यय भी शत्रुराष्ट्रके सरकारको उठानेपर विवश करना ही इस नीतिका उद्देश्य है । इसी नीतिके कारण अफगानिस्तानमेें घरटी एक अपंग दिखाई देता है । आतंकवादियोंसे लडाई करते समय हमें भी इन उद्दिष्टोंका ही विचार कर कदम उठाने होंगे ।
संदर्भ : श्री. पराग पाटिल, साप्ताहिक 'लोकप्रभा', ८ अगस्त २००८