श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा का रासायनिक संवर्धन करते समय प्रतिमा पर नाग, साथ ही अन्य महत्त्वपूर्ण प्रतीक मुद्रित करने की अपेक्षा प्रतिमा का मूल रूप ही परिवर्तित किया, इस संदर्भ में . . .
कोल्हापुर (महाराष्ट्र) : हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा श्री. मधुकर नाझरे ने जनपदाधिकारी तथा अध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति की ओर ७ अगस्त के दिन यह परिवाद प्रविष्ट किया गया है कि, यहां के श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा पर रासायनिक संवर्धन प्रक्रिया करने के संदर्भ में जनपदाधिकारी कार्यालय में २४ जुलाई २०१५ को हिन्दू जनजागृति समिति, श्रीपूजक तथा मंदिर देवस्थान समिति की एकत्रित बैठक आयोजित की गई थी।
उस समय जनपदाधिकारियोंने यह स्पष्ट किया था कि, प्रतिमा का पूर्ण दायित्व पुरातत्व विभाग की ओर रहेगा। यदि इस संदर्भ में किसी भी प्रकार की दुर्घटना घटी, तो उसके लिए पुरातत्व विभाग को ही उत्तरदायी निश्चित किया जाएगा। प्रत्यक्ष में रासायनिक संवर्धन प्रक्रिया करते समय प्रतिमा का मुख्य हिस्सा अर्थात मस्तक पर नाग मुद्रित न कर, पुरातत्व विभाग ने पूरा मुकुट मुद्रित किया। साथ ही प्रतिमा के संदर्भ में अन्य महत्त्वपूर्ण प्रतीकोंको भी मुद्रित नहीं किया। अतः प्रतिमा का रूप परिवर्तित करने के कारण संबंधितोंपर उचित कार्यवाई करें।
इस परिवाद में यह भी प्रस्तुत किया है कि, इस संदर्भ में उचित कार्यवाई करने के लिए अनदेखा किया गया, तो श्री महालक्ष्मीदेवी के संदर्भ में इस अनुचित कृत्य के विरोध में अपनी इच्छा विरूद्ध हमें जनआंदोलन का आयोजन करना बाध्य होगा।
हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा जनपदाधिकारियोंको प्रस्तुत किए परिवाद में यह बताया गया है कि,
१. पुरातत्व विभाग के अधिकारी डॉ. मनेजर सिंह ने यह स्पष्ट बताया है कि, ‘हमारी ओर से नाग मुद्रित करना रह गया है।’ अब पुनः धर्मशास्त्र का मत प्राप्त करने की अपेक्षा यह अपराध छिपाने का प्रयास किया जा रहा है। यह बात गंभीर है तथा एक प्रकार से श्रध्दालुओंकी यह तीव्र वंचना ही है।
२. वास्तव में इस प्रक्रिया में किन पदार्थोंका उपयोग किया जाएगा, यह पुरातत्व विभाग ने संवर्धन प्रक्रिया से पूर्व स्पष्ट ही नहीं किया था। प्रतिमा के संवर्धन के पश्चात प्रत्येक अधिकारी पत्रकारोंको बताते थे कि, पृथक पदार्थोंका उपयोग किया गया है। कुछ पत्रकारोंको बताया गया कि, हम ने प्रथम रासायनिक प्रक्रिया की। प्राकृतिक पदार्थोंका मुलामा किया, तो कुछ पत्रकारोंको बताया गया कि, रासायनिक प्रक्रिया में ‘इथिल सिलिका’ का उपयोग किया गया है, तो कुछ पत्रकारोंको बताया गया कि हम ने केवल प्राकृतिक पदार्थ का ही उपयोग कर मुलामा चढाया है। इस में कहीं भी एकमत दिखाई नहीं दिया; अतः कोल्हापुर के श्री महालक्ष्मीदेवी के भक्तोंके ध्यान में यह बात आई कि, उन से कुछ छिपाया जा रहा है।
३. इस के साथ मूल प्रतिमा में देवी का वाहन सिंह स्पष्ट दिखाई देता है, तो संवर्धन की गई प्रतिमा में सिंहरूप स्पष्ट दिखाई नहीं देता, मूल प्रतिमा के छायाचित्र की आंखे संवर्धन की गई प्रतिमा के छायाचित्र की अपेक्षा अधिक तेजस्वी प्रतीत होती है, साथ ही संवर्धन की गई प्रतिमा की तुलना में मूल प्रतिमा पर अलंकार अधिक उभर आते हैं। इन सारी बातोंके कारण प्रतिमा के मूल स्वरूप में परिवर्तन किया गया है। इस संदर्भ में भी करवीरमाहात्म्य एवं शिलालेख में स्पष्ट उल्लेख होते हुए भी प्रतिमा के प्रतीक परिवर्तित किए गए हैं।
४. ऐसे समय दर्शन हेतु सहस्त्रों किमी दूरी से आनेवाले श्रध्दालुओंको क्या मूल रूप में परिवर्तित की गई इस प्रतिमा से श्री महालक्ष्मी का तत्त्व प्राप्त होगा ? हिन्दू जनजागृति समिति पत्रद्वारा यह मांग की रही है कि, यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न भी यहां उपस्थित हो रहा है। अतः हम जनपदाधिकारी के रूप में कोल्हापुरकरोंको दिए गए शब्द के अनुसार रासायनिक प्रक्रिया करते समय प्रतिमा के मूल रूप में परिवर्तन किया जाने के कारण इन शास्त्रविरोधी कृत्य को उत्तरदायी लोगोंपर त्वरित कार्यवाई करें। आप मंदिर के पदसिद्ध अध्यक्ष भी हैं, अतः श्री महालक्ष्मीदेवी के दरबार में दिया गया शब्द झूठा कर श्री महालक्ष्मी की अवकृपा प्राप्त न करें, ऐसी आप से नम्र विनती है।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात