श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा पर नाग का प्रतीक मुद्रित नहीं करनेपर जनपदाधिकारी पुरातत्व विभाग पर कौनसी कार्यवाही करेंगे ? – हिन्दू जनजागृति समिति

रासायनिक संवर्धन की गई श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा पर नाग का प्रतीक न होने का प्रकरण 

हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा पत्रकार परिषद

बायी ओर से समिति के श्री. मधुकर नाजरे, श्री. राजन बुणगे तथा सनातन के डॉ. मानसिंग शिंदे

कोल्हापुर (महाराष्ट्र) : यहां के श्री महालक्ष्मी मंदिर की श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमापर पुरातत्व विभागद्वारा रासायनिक प्रक्रिया करते समय किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया गया, तो पुरातत्व विभाग को उत्तरदायी निश्चित किया जाएगा, ऐसा शब्द जनपदाधिकारियोंद्वारा प्राप्त हुआ था। प्रत्यक्ष में वर्ष १९५५ के वज्रलेप के समय जो गडबडी हुई, उसी प्रकार इस समय भी प्रतिमा के मूल स्वरूप में परिवर्तन किया गया। साथ ही पुरातत्व विभाग के अधिकारियोंको आवश्यक संदर्भ तथा छायाचित्र देने के पश्चात भी प्रतिमा का मुख्य हिस्सा वाला नाग मुद्रित ही नहीं किया गया।

अब इस संदर्भ में जनपदाधिकारी यह स्पष्ट करें कि, ‘कोल्हापुर के नागरिकोंको दिए गए शब्द का पालन करने हेतु पुरातत्व विभाग पर कौनसी कार्रवाई करेंगे ?’ हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. राजन बुणगे ने ६ अगस्त के दिन शाहू स्मारक में आयोजित पत्रकार परिषद में यह सूचना दी कि, इस संदर्भ की अधिकृत याचिका हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा शीघ्र ही प्रविष्ट की जाएगी।

उस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. मधुकर नाझरे तथा आधुनिक वैद्य मानसिंग शिंदे उपस्थित थे।

उस समय श्री. राजन बुणगे यह भी बताया कि,

१. स्वयं को बचाने के लिए धर्मशास्त्र ही झूठा सिद्ध करने का श्रीपूजकोंका प्रयास !

कोल्हापुर के मूर्तिअभ्यासकोंको ज्ञात, प्रतिमा के शिलालेख में तथा करवीर माहात्म्य में उल्लेखित श्री महालक्ष्मी की प्रतिमा पर नाग सैंकडो वर्ष परंपरागत पूजा करनेवाले, साथ ही प्रतिमा के निकट रहकर स्नानादि अभिषेक करनेवाले श्रीपूजकोंको दिखाई नहीं दिए, उनके इस वक्तव्य पर कोल्हापुर के छोटे बालक भी विश्वास नहीं रखेंगे। पूर्व से ही प्रणालोंपर प्रतिमा भंग नहीं हुई थी, ऐसे सफेद झूठ वक्तव्य करनेवालोंसे अब सत्य वक्तव्य की अपेक्षा भी नहीं कर सकते; किंतु उस से वे करवीर माहात्म्य तथा शिलालेख को ही झूठा सिद्ध कर रहे हैं। प्रतिमा की प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात वास्तव में श्रीपूजकोंको ही इन त्रुटियोंके संदर्भ में वक्तव्य करना अपेक्षित था; अपितु वे ही अब चांदी-सुवर्ण का नाग बनाकर अपना अपराध छुपाने का प्रयास कर रहे हैं; किंतु इसके लिए उन्हें भी यह बताना पडेगा कि, धर्मशास्त्रानुसार वे क्या प्रायश्चित्त लेंगे ?

२. प्रतिमा के मूल स्वरूप में परिवर्तन करने के पश्चात क्या श्रध्दालुओंको देवी का तत्त्व प्राप्त होगा ?

श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा भंग होने के कारण, साथ ही जीर्ण होने के कारण धर्मशास्त्रानुसार विसर्जित कर वहां नई प्रतिमा स्थापन करने के सर्व प्रमाण समितिद्वारा प्रस्तुत किए गए थे; किंतु वहां अपनी मनमानी भूमिका अपनाकर, साथ ही उसी प्रतिमा पर रासायनिक प्रक्रिया करने का निर्णय अपनाया गया। अब तो प्रतिमा के मूल स्वरूप में भी परिवर्तन किया गया है। क्या अब श्रध्दालु इस प्रतिमाद्वारा श्री महालक्ष्मी तत्त्व प्राप्त कर सकेंगे ? अत एव अब नई प्रतिमा की स्थापना करना अनिवार्य हुआ है, यह देवस्थान समिति को ध्यान में रखना चाहिए।

३. यदि प्रतिमा भंग हुई है अथवा जीर्ण हुई है, तो नई प्रतिमा की स्थापना करें ! – अखिल भारतीय विद्वत परिषद, काशी

श्री महालक्ष्मीदेवी की प्रतिमा के संदर्भ में हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा काशी के अखिल भारतीय विद्वत परिषद के धर्मशास्त्रीय मत की मागं की गई थी। उस में इस धर्मशास्त्र के ज्ञात परिषदद्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि, यदि प्राचीन प्रतिमा जीर्ण हुई है अथवा भंग हुई है, तो नई प्रतिमा की प्रतिष्ठापना करें !

अखिल भारतीय विद्वत परिषदद्वारा भेजे गए पत्र में यह प्रस्तुत किया गया है कि, अग्निपुराण में पुर्ननिर्माण कार्य के संदर्भ में यह स्पष्ट किया गया है कि, अधिकांश लोगोंको पुरानी प्रतिमा में आस्था रहती है, अतः वे नई प्रतिमा की स्थापना करने के लिए सिद्ध नहीं रहते; किंतु खंडित प्रतिमा की पूजा-अर्चना करना अत्यंत अनुचित है। अतः पुरानी प्रतिमा का त्याग करना चाहिए। विकृत, भंग अथवा अवशिष्ट प्रतिमा का त्याग कर नई प्रतिमा की स्थापना करना चाहिए। (व्यङ्गांभग्नांच शैलाढ्यां न्यसेदन्यां च पूर्ववत ?, अतिजीर्णा परित्येत्-अध्याय ६७ श्लोक १ तथा २) इस के अनुसार प्रथम पूजा करनेवाली प्रतिमा का विधीवत विसर्जन करना चाहिए। इस के अनुसार प्रतिमा यदि पाषाण की है, तो पानी में विधीवत विसर्जन करना चाहिए। इस के अनुसार प्रथम पूजा करनेवाली इस का अर्थ सीधा है कि, रासायनिक प्रक्रिया आरंभ करने से पूर्व हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा विविध धर्मग्रंथोंका प्रमाण प्रस्तुत कर प्रतिमा परिवर्तन करने के संदर्भ में जो भूमिका अपनाई थी, वह उचित ही थी।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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