राष्ट्र की रक्षा करने हेतु स्वरक्षा प्रशिक्षण लेकर आध्यात्मिकदृष्टि से परिपूर्ण हों ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे

देहली, हरियाणा, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान के धर्मप्रेमियों के लिए आयोजित किया गया ऑनलाइन शौर्यजागृति अभियान !

सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळेजी

देहली : आनेवाले समय में जब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और चीन के विरुद्ध युद्ध करने की स्थिति होगी, तब हमें वामपंथी, तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी और चीन-अफगानिस्तान समर्थकों से देश एवं धर्म की रक्षा करने हेतु पुलिस बल और सैनिकों से सहयोग करना पडेगा । उसके लिए अभी से ही साधना का आरंभ कीजिए । धर्मशिक्षा लेकर धर्म का पालन करते हुए उसकी रक्षा करने हेतु हम सभी को प्रयास करने चाहिएं । हमें पुलिस बल, प्रशासन और सैनिकों की सहायता करते हुए राष्ट्र की रक्षा करनेसहित स्वयं की भी रक्षा करनी है । उसके लिए हमें स्वरक्षा प्रशिक्षण लेकर केवल शारिरीक स्तर पर ही नहीं, अपितु आध्यात्मिकदृष्टि से भी परिपूर्ण होना है । साथ ही मनोबल और आत्मबल बढाकर धर्मसंस्थापना का कार्य करना है । हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने यह मार्गदर्शन किया । देहली, हरियाणा, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान के धर्मप्रेमियों के लिए ऑनलाइन पद्धति से आयोजित शौर्यजागृति व्याख्यान में वे ऐसा बोल रहे थे । उसके उपरांत ८ दिनोंतक धर्मप्रेमियों के लिए ऑनलाइन पद्धति से स्वरक्षा प्रशिक्षणवर्ग लिया गया । इस वर्ग के समापन के समय सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने धर्मप्रेमियों का मार्गदर्शन किया । इस कार्यक्रम का सूत्रसंचालन समिति के देहली एवं हरिणाणा राज्यों के समन्वयक श्री. कार्तिक साळुंके ने किया ।

सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी के मार्गदर्शन में अंतर्भूत महत्त्वपूर्ण सूत्र

१. महाभारत के समय में कौरवों का संख्याबल और बाहुबल अधिक होते हुए भी धर्माचरण, साधना एवं गुरु के मार्गदर्शन के बल पर पांडवों की ही विजय हुई । धर्माचरण, साधना और गुरु का मार्गदर्शन का अभाव हो, तो जीवन में निराशा, मनोबल एवं आत्मबल का अभाव होता है । ऐसे समय में बाहुबल और संख्याभल भारी पडता है और अंततः पराजय मिलती है; परंतु पांडवों की भांति भले ही हमारा संख्याबल और बाहुबल अल्प है; परंतु तब भी यदि हम में धर्म, ईश्वर एवं गुरु के प्रति श्रद्धा हो, तो हमारा भी आत्मबल एवं मनोबल निश्चितरूप से बढेगा ।

२. प्रभु श्रीराम का जन्म नवमी के दिन, श्रीकृष्ण का अष्टमी के दिन, तो हनुमानजी का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ है, तो हम अपने जन्म की तिथि न बताकर दिनांक क्यों बताते हैं ? इसके लिए धर्मशिक्षा लेने की आवश्यकता है और उससे धर्माचरण कर धर्मरक्षा करनी है ।

३. हिन्दू संस्कृति त्याग पर आधारित है । प्रभु श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त कर भी बिभीषण को राज्य सौंपा और महाराणा प्रताप वन में रहे । हमने यदि इन दिव्य विभूतियों के त्याग का आदर्श सामने रखा, तो परिवार में मदभेद और बडों का अनादर आदि नहीं होंगे । इसके लिए स्वयं में निहित दोषों और अहंकार का त्याग करना पडेगा । त्याग से ही अमरत्व की प्राप्ति होती है ।

४. जब धर्म को ग्लानि आती है, तब धर्मंसंस्थापना करने की ही आवश्यकता होती है । ऐसे समय में ‘मेरे पास समय नहीं है’, ऐसा सभी कहने लगें, तो धर्म की रक्षा कौन करेगा ? छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप ऐश्वर्य भोगने के लिए मुघलों की शरण में जाते तो क्या आज हम स्वयं को हिन्दू कहला सकते थे ? ऐसे राजाओं का आदर्श सामने रखकर ही स्वरक्षा सिखने हेतु और स्वरक्षा अभियान के साथ अपने मित्रों और परिजनों को जोडने हेतु समय देना अत्यंत आवश्यक है ।

५. प्रभु श्रीराम तो केवल एक बाण से ही समुद्र को तोडकर लंका में प्रवेश कर सकते थे; परंतु वानरों से त्याग हो और उनमें सेवाभाव जागृत हो; इसके लिए उन्होंने उनसे रामसेतू बनवाकर उनका उद्धार किया । छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप के सैनिकों में तन-मन-धन और प्राणों का त्याग करने की भी तैयारी थी । उसके अनुसार मेरा मन, बुद्धि और शरीर भी राष्ट्रकार्य हेतु समर्पित हो; इस दिशा में प्रत्येक व्यक्ति को प्रयास करने की आवश्यकता है ।

६. धर्मशिक्षा लेना, धर्मप्रसार कर ना, हिन्दुओं को हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु संगठित करना और मन-मन में हिन्दू राष्ट्र का विचार पहुंचाकर संवैधानिक दृष्टि से भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने हेतु प्रयास करने आवश्यक हैं । हमें समाज, शासनकर्ताओं और प्रशासन के मन में हिन्दू राष्ट्र का बीज बोकर सत्त्वगुणी समाजव्यवस्था बनानी है । उसके लिए सत्त्वगुणी शासनकर्ताओं को सत्ता में बिडाकर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने हेतु अभियान चलाना पडेगा ।

आप मेरे धर्मबंधु हैं ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी

मार्गदर्शन के आरंभ में सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी ने कार्यक्रम में सहभागी धर्मप्रेमियों का ‘धर्मबंधु’ कहकर उल्लेख किया । इस संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘‘जो व्यक्ति सनातन धर्म के प्रति श्रद्धा रखता है, धर्म के अनुसार आचरण करता है और उसकी रक्षा की इच्छा रखता है; वह मेरा धर्मबंधु है और उसके साथ मेरा रक्त से भी अधिक धर्म का नाता है । अतः आप सभी मेरे धर्मबंधु हैं ।’’

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