राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने दसवीं के पाठ्यक्रम में बताया महाराणा प्रताप में थी धैर्य, संयम और योजना की कमी

महाराणा प्रताप की कहानी में भी काट-छांट , राजस्थान सेकेंडरी एजुकेशन बोर्ड करेगा जांच

एक बार फिर से राजस्थान की किताबों के इतिहास में बताया गया कि, महाराणा प्रताप अकबर के खिलाफ लड़े गए हल्दीघाटी युद्ध में नहीं जीत पाए हैं। इसके पहले राजस्थान में इतिहास की किताबों मे पढ़ाया जाता था कि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना जीती थी मगर पिछली भाजपा की सरकार ने २०१७ में पाठ्यक्रम में बदलाव करते हुए बताया था कि, महाराणा प्रताप की सेना ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर पर विजय प्राप्त की थी।

इसे लेकर इतिहासकारों में दुमत रहा है। अब एक बार फिर से दसवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान के किताब में महाराणा प्रताप के हल्दीघाटी युद्ध के जीतने के बारे में उल्लेख किए गए तथ्यों को हटा दिया गया है। यही नहीं इस किताब में यह भी साफ कर दिया गया है कि महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुआ युद्ध कोई धार्मिक युद्ध नहीं था बल्कि वह एक राजनीतिक युद्ध था ।

दरअसल गहलोत सरकार के दौरान किताबों की समीक्षा के लिए बनी कमेटी की सिफारिश पर पाठ्यपुस्तक मंडल की ओर से कक्षा 10वीं की सामाजिक विज्ञान की किताब के संस्करण में महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटा दिया है। इस मामले को लेकर मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य एवं प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के साथ इतिहासकारों ने भी मोर्चा खोल दिया है।

पाठ्यक्रम में बदलाव हुए कुछ वर्ष ही हुए हैं

इन लोगों का कहना है कि इस तरह किताब से महाराणा प्रताप और चेतक घोड़े से जुड़े अनछुए पहलुओं और तथ्यों को हटाना गलत है। सरकार के इस कदम से आने वाली पीढ़ी को महाराणा प्रताप के गौरवशाली इतिहास का ज्ञान पूरा नहीं मिल पाएगा। वर्ष 2017 की किताब में प्रताप के हल्दीघाटी के युद्ध एव चेतक घोड़े की वीरता का वर्णन पूरा था लेकिन वर्ष 2020 के संस्करण में प्रताप और चेतक की वीरता को काट-छांट कर उसे कम कर दिया गया है।

इस काट-छांट में लेखक चंद्रशेखर शर्मा की सहमति तक नहीं ली गई है। साल 2017 के पाठ्यक्रम में यह दर्शाया गया था कि, महाराणा प्रताप ने किस तरह से हल्दीघाटी युद्ध में संघर्ष किया और उस संघर्ष के बाद आज भी महाराणा प्रताप का देश-दुनिया स्मरण करती है।

ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी को हटाने को लेकर महाराणा प्रताप पर शोध करने वाले एकमात्र इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा और प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने साफ किया, कि महाराणा प्रताप के जीवन के ऐतिहासिक पहलुओं को किताब से हटाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। जिन पहलुओं को समाजिक विज्ञान के वर्ष 2020 के संस्करण हटाया गया है, वो तथ्य आने वाली पीढ़ी के बच्चों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

आज के इस दौर में महाराणा प्रताप कि उन सभी बातों को बच्चों को पढ़ाना बहुत जरूरी है जो कि उन्होंने अपने जीवन काल में संघर्ष करते हुए दूसरों के लिए प्रेरणादायक बन गई।

पाठ्यक्रम में बताया – महाराणा प्रताप में थी धैर्य, संयम और योजना की कमी

साथ ही राजस्थान बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (RBSE) की वेबसाइट में मौजूद कक्षा 10 की सामाजिक विज्ञान की ई-पाठ्यपुस्तक में कहा गया है कि 16 वीं सदी के मेवाड के राजा महाराणा प्रताप में शत्रुतापूर्ण परिस्थितियों में एक सैन्य कमांडर के रूप में धैर्य, नियंत्रण और योजना की कमी थी।

सामाजिक विज्ञान की किताब के दूसरे पाठ ‘संघर्षकालीन भारत 1206AD-1757AD’ में लिखा है “सेनानायक में प्रतिकूल परिस्थितियों मे जिस धैर्य, संयम और योजना की आवश्यकता होनी चाहिए। महाराणा प्रताप में उसका अभाव था।”आरबीएसई ने कहा कि वह इस मामले की जांच करेगा और ई-पाठ्यपुस्तक को साइट से हटाया जाएगा।

मेवाड के इतिहास से छेडछाड को देखते हुए देवगढ और खमनोर में मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन देकर रोष जताया

10वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक में महाराणा प्रताप से जुड़ी सामग्री में दुर्भावनावश किए गए बदलाव से नाराज राजपूत समाज के विभिन्न संगठन श्री राजपूत करणी सेना एवं राजपूत सेवा संस्थान, श्री जगदीश भगवान के बैनर तले सोमवार को मुख्यमंत्री को के नाम उपखंड अधिकारी को ज्ञापन दिया गया।

तहसीलदार को भी ज्ञापन प्रस्तुत

जय राजपूताना संघ के खमनोर तहसील के कार्यकर्ताओं ने सोमवार को मेवाड़ के इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने को लेकर तहसीलदार सोहन लाल शर्मा को ज्ञापन दिया। ज्ञापन में बताया कि आगामी 10वीं और 12वीं की पुस्तकों में मेवाड़ के इतिहास से छेड़छाड़ को देखते हुए मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन देकर रोष जताया। संघ सेवकों के अनुसार बार-बार इतिहास से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

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