‘कानून बनानेके लिए कांग्रेस सरकारपरदबावतंत्रका उपयोग करें !’ – हिंदूद्वेषी तिस्ता सेटलवाड

माघ शुक्ल १, कलियुग वर्ष ५११४

हिंदूद्वेषी तिस्ता सेटलवाडके विषभरे हरे फुफ्कार (कहते हैं) ‘कानून बनानेके लिए कांग्रेस सरकारपर दबावतंत्रका उपयोग करें !’

धार्मिक एवं लक्ष्यित हिंसा प्रतिबंधक अधिनियम २०११ का प्रकरण


मुंब्रा (जनपद थाने), २० फरवरी (संवाददाता) – यहांके डोंगरे मैदानमें ‘मुंब्रा पीस एज्युकेशन एण्ड वेलफेअर’ द्वारा मंगलवारको एक सभा आयोजित हुई थी । इस सभामें तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ती तिस्ता सेटलवाडने हरे फुफ्कार छोडते हुए कहा कि विश्व हिंदू परिषद तथा भाजपा समान धर्मांध शक्तियां ‘धार्मिक एवं लक्ष्यित हिंसा प्रतिबंधक अधिनियम, २०११’ कानून बहुसंख्यक हिंदुओंके विरोधमें कैसा है, यह बतानेके लिए कुंभमेलेमें भारी मात्रामें हस्तपत्रक वितरित किए जा रहे हैं । ( इस कानूनका प्रारूप तिस्ता सेटलवाड, जावेद आनंद, डॉल्फी डिसूजा, मौलाना महमूद दरियाबादी इत्यादि हिंदूद्वेषी लोगोंने सिद्ध किया है तथा यह प्रस्तावित कानून देशमें बहुसंख्यक हिंदुओंको संकटमें लानेवाला एवं अल्पसंख्यकोंको छूट देनेवाला है । यह कानून पारित होनेसे हिंदुओंपर भारी मात्रामें अन्याय होनेवाला है । इसीलिए हिंदू इस कानूनका विरोध कर रहे हैं ! – संपादक, ‘दैनिक सनातन प्रभात’ ) तो इस कानूनके समर्थक ( कांग्रेस एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पक्ष ) क्या कर रहे हैं ? लोकसभाके आगामी चुनाव ध्यानमें रखते हुए यह कानून बनानेके लिए भविष्यमें विविध माध्यमोंद्वारा कांग्रेसपर दबावतंत्रका उपयोग करें, संसदमें विधेयक प्रस्तुत कर उसे पारित करने हेतु सरकारको विवश करें, अन्यथा कांग्रेसको भी वर्ष २०१४ के चुनावमें कुर्सीसे नीचे उतारनेकी सिद्धता करें । सभामें विधेयक सिद्ध करनेवाली समितिके जावेद आनंद, डॉल्फी डिसुजा, मौलाना महमूद दरियाबादीके साथ सिक्ख, दलित नेता आदि २०० से अधिक लोग उपस्थित थे ।

सेटलवाडद्वारा भाषणमें प्रस्तुत अन्य सूत्र

१. एक ओर हम शांति स्थापित करनेके लिए कानूनकी मांग कर रहे हैं; परंतु वर्ष १९९३ में दंगा करनेवाले शिवसनाके नेता कै. मधुकर सरपोतदार, श्री. मनोहर जोशी समान लोगोंको निर्वाचनमें उम्मीदवारी दी जाती है । श्री. मनोहर जोशीको लोकसभाका अध्यक्षपद दिया जाता है । इससे यही ध्यानमें आता है कि ये धर्मांध शक्ति एवं राजनेताकी कैसी मिलीभगत है । ( कुख्यात अपराधी दाऊद इब्राहिमसे संबंध रखनेवाले समाजवादी पक्षके अबू आजमीको उम्मीदवारी देकर चुनकर लाया जाता है, तो इस विषयमें तिस्ताबाई क्यों कुछ टिप्पणी नहीं करती ? इससे हिंदुत्वनिष्ठोंपर विषवमन करनेवाली सेटलवाडका हिंदूद्वेष स्पष्ट होता है ! – संपादक, ‘दैनिक सनातन प्रभात’ )
२. वर्ष २००८ में धुलेके उपद्रवमें ४० करोड रुपये, वर्ष १९९३ में मुंबईके उपद्रवमें १ सहस्र १०० करोड रुपए, वर्ष १९८४ में हुए सिखाविरोधी दंगोंमें ४ करोड रुपए, कश्मीरी हिंदुओंके करोडों रुपए तथा वर्ष २००२ में गुजरात दंगोंमें ४ सहस्र करोड रुपयोंकी हानि हुई; परंतु उसकी तुलनामें पीडित अल्पसंख्यकोंको न्यूनतम आर्थिक सहायता एवं हानिपूर्ति की गई; अतः अल्पसंख्यकोंको संरक्षण एवं न्याय दिलवानेके लिए इस कानूनकी अत्यंत आवश्यकता है । ( मुसलमानोंद्वारा उपद्रव कर हिंदुओंके घर एवं दुकानें जलाना ऊपरसे हानि होनेका शोर मचाकर पूर्तिकी मांग करना मुसलमान समर्थक तिस्ता सेटलवाडका सदैवका षडयंत्र हैं । मुसलमानोंको कितना भी देनेपर उन्हें संतुष्टि नहीं होती । इसलिए इस हिंदुविरोधी कानूनका समस्त हिंदुओंको प्राणोंकी बाजी भी लगाकर विरोध करना चाहिए ! – संपादक, ‘दैनिक सनातन प्रभात’ )
३. शासन बहुसंख्यकोंको अलग और अल्पसंख्यकोंको अलग न्याय देती है; इसलिए ‘कानूनके सामने सब लोग एक समान’, यह दर्शानेके लिए इस कानूनकी आवश्यकता है । ( स्पष्ट रूपसे असत्य बोलनेवाली तिस्ता सेटलवाड ! – संपादक, ‘दैनिक सनातन प्रभात’ )
४. उपरोक्त कानून अल्पसंख्यकोंका ‘शस्त्र’ है । इसकी सहायतासे भविष्यमें सीधे न्यायालयमें जाकर अन्यायके विरोधमें न्याय मांगना संभव होगा । ( इस देशमें पूर्वसे ही सशस्त्र मुसलमानोंद्वारा हिंदुओंपर आक्रमण हो रहे हैं । अब कानूनका आधार दिलवाकर वे इस कानूनरूपी शस्रका उपयोग हिंदुओंके विरोधमें करना चाहते हैं । इसलिए हिंदुओंको तिस्ता सेटलवाडका यह षडयंत्र विफल करना चाहिए ! – संपादक, ‘दैनिक सनातन प्रभात’ )
५. इस कानूनकी लडाईमें ८ निवृत्त न्यायमूर्तियोंने समर्थन दर्शाया है, जिनमें पी. बी. सावंत, बी. जी. कोळसे पाटिल, लक्ष्मणपुरी (लखनौ) के अलाहाबाद खंडपीठके हसन अहमद रजा, छत्तीसगढके फकरुद्दीन, कर्नाटकके मायकल सल्फाना, होस्बेट सुरेश आदि सम्मिलित हैं । ( इन सभीका आजतकका कार्यकाल देखा जाए, तो स्पष्ट हो जाएगा कि वे हिंदुओंके विरोधमें हैं । इसलिए इस कानूनको उनका समर्थन कोई अचरजकी बात नहीं है ? – संपादक, ‘दैनिक सनातन प्रभात’ )
६. पुलिसकर्मियोंको (आरक्षकोंको) अल्पसंख्यकोंके विरोधमें आक्रमक होनेके लिए विवश न करें, अन्यथा उसके परिणाम हम भी दिखा सकते हैं । ( इससे तिस्ता सेटलवाडकी जिहादी मानसिकता ही स्पष्ट होती है । और साथ ही साथ यह भी स्पष्ट होता है कि इनकेद्वारा सिद्ध किया गया प्रारूप कैसा होगा ! – संपादक, ‘दैनिक सनातन प्रभात’ )

पुलिसकी अत्यल्प फौज

हिंदुत्वनिष्ठोंने लिखित निवेदनद्वारा तिस्ता सेटलवाडके भाषणके वादग्रस्त वक्तव्यद्वारा धार्मिक तनाव निर्माण होनेकी संभावनाकी पुलिसको पूर्वकल्पना दी थी । फिर भी कार्यक्रमस्थलपर अत्यंत न्यून मात्रामें पुलिसबल नियुक्त किया गया था । कार्यक्रमके आरंभमें (सायं. ७.३० बजे) खाकी वेशमें २ महिला एवं ३ पुरुष, ऐसे कुल मिलाकर ५ पुलिस उपस्थित थे । रात्रि ९ बजनेके पश्चात केवल ३ ( २ महिला एवं १ पुरुष ) पुलिस थे । ( हिंदुत्वनिष्ठ संगठनोंकी सभाके समय भारी संख्यामें पुलिस बंदोबस्त कर हिंदुओंको ही आतंकवादी सिद्ध करनेवाली पुलिस मुसलमानोंकी सभाके समय चुप्पी साधे क्यों रहती है ? इस मानसिकताके कारण हीपुलिसकर्मी मुसलमानोंसे मार खाते हैं ! ऐसी लिस यदि उपद्रवके समय संकटमें आए, तो हिंदू भी उनकीसहायता क्यों करें ? – संपादक, ‘दैनिक सनातन प्रभात’)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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