भगवान श्रीकृष्‍णजी की कृपा ! 

भगवान श्रीकृष्‍ण का एक बहुत धनवान भक्‍त था; परंतु वह पैरों में अत्‍यधिक पीडा होने के कारण चल नहीं पाता था । उसे एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर जाने के लिए उठाकर ले जाना पडता था । उसी ग्राम में भगवान श्रीकृष्‍ण का एक और बहुत गरीब भक्‍त था और उसी मंदिर में वह अपनी पुत्री के विवाह के लिए पूर्ण श्रद्धा से प्रार्थना कर रहा था । Read more »

कुबेर का अहंकार ! 

क्‍या आप जानते हैं कि, कुबेर कौन थे ? कुबेर रावण के भाई थे । कुबेर तीनों लोकों में सबसे धनवान हैं । अभी भी किसी धनवान व्‍यक्‍ति को समाज के लोग कहते हैं कि, उसके पास तो कुबेर का खजाना है ।

एक दिन कुबेर के मन में विचार आया कि उनके पास इतनी सारी संपत्ति है, परन्‍तु बहुत ही कम लोगों को इसकी जानकारी है । इसलिए उन्‍होंने अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्‍य भोज का आयोजन किया । अर्थात उन्‍हें अपनी संपत्ति का अहंकार हो गया था । Read more »

श्रीकृष्‍णजी की बांसुरी !

आज भगवान श्रीकृष्‍ण की बांसुरी के उत्‍पन्‍न होने की एक सुन्‍दर कहानी सुनते हैं । हम सब जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्‍ण के हाथ में सदैव बांसुरी रहती है । बांसुरी को मुरली भी कहते हैं । भगवान श्रीकृष्‍ण के हाथ में मुरली होने के कारण उन्‍हें ‘मुरलीधर’ भी कहा जाता है । Read more »

रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड का गर्वहरण !

एक बार क्या हुआ कि, द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे । उनके निकट ही गरुड और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे । तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था । बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा, ‘हे प्रभु ! आपने त्रेतायुग में प्रभी श्रीराम के रूप में अवतार लिया था, देवी सीता आपकी पत्नी थीं । क्या वह मुझसे भी अधिक सुंदर थीं ?’ Read more »

राजा मोरध्वज की कृष्णभक्ति !

महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद अर्जुन को यह भ्रम हो गया की, वह श्रीकृष्ण के सर्वश्रेष्ठ भक्त हैं । अर्जुन सोचते थे की कन्हैया ने मेरा रथ चलाया, युद्ध के समय वे मेरे साथ रहे, इसका अर्थ है मैं ही भगवान का सर्वश्रेष्ठ भक्त हूं । अर्जुन यह भूल गए थे की वे तो केवल भगवान के धर्म संस्थापना का माध्यम थे । अर्जुन के मन की बात जानकर भगवान श्रीकृष्णजी ने उनका अहंकार तोडने का निश्‍चय किया । Read more »

जगद्गुरु भगवान श्रीकृष्णजी की गुरुदक्षिणा !

छोटी आयु में ही श्रीकृष्णजी और बलराम को शिक्षा प्राप्त करने के लिए उज्जयिनी नगरी में सांदीपनी ऋषि के आश्रम में भेजा गया । शिक्षा पूरी होने के बाद श्रीकृष्ण और बलराम अपने गुरु सांदीपनी ऋषि को विनम्रता से वंदन किया और कहा, ‘‘हे गुरुवर, आपने हमें अमूल्य ज्ञान दिया है । हम आपके चरणों में गुरुदक्षिणा अर्पण करना चाहते हैं ।’’ Read more »

अर्जुन को पाशुपत अस्‍त्र की प्राप्ति ! 

महाभारत के युद्ध में अनेक अस्‍त्रों का उपयोग किया गया था, जिसका परिणाम अत्‍यंत भयंकर होता था । धनुर्धारी अर्जुन के पास ऐसा ही एक अस्‍त्र था, जिसका नाम पाशुपत अस्‍त्र था । यह अस्‍त्र अर्जुन ने भगवान शिवजी से प्राप्‍त किया था । आज हम यही कहानी सुनेंगे कि अर्जुन को इस अस्‍त्र की प्राप्‍ति कैसे हुई । Read more »

देवताओं की शक्‍तिद्वारा दुर्गादेवी की निर्मिती !

मां दुर्गा की निर्मिती अनेक देवताओं से हुई है । उनकी देह का प्रत्‍येक अवयव एक-एक देवता की शक्‍ति से बना है । इस देवी की निर्मिती कैसे हुई यह कथा आज हम सुनेंगे । Read more »

श्री दुर्गादेवी द्वारा शुम्‍भ-निशुम्‍भ का वध

शुम्‍भ और निशुम्‍भ नाम के दो राक्षस थे । १० सहस्र वर्षों तक उन्‍होंने अन्‍न और जल का त्‍याग कर ब्रह्माजी की तपस्‍या की और तीनों लोकों पर राज करने का वरदान प्राप्‍त किया । शुम्‍भ और निशुम्‍भ से रक्षा करने के लिए देवताओं के गुरु बृहस्‍पतिजी ने ‘देवी जगदंबा’ अर्थात ‘श्री दुर्गादेवी’ का आवाहन किया । Read more »