तुकारामबीज : संत तुकाराम महाराजजी का सदेह वैकुंठगमन ! 

आज हम संत तुकाराम महाराजजी की कथा सुनेंगे । संत तुकाराम महाराज जी की भगवान पांडुरंग के प्रति अनन्‍यसाधारण भक्‍ति थी । उनका जन्‍म महाराष्‍ट्र के देहू गांव में हुआ था और वे सदेह वैकुंठ गए थे । अर्थात वे देहत्‍याग किए बिना अपने स्‍थूल देह के साथ भगवान श्रीविष्‍णुजी के वैकुंठधाम गए थे । Read more »

लक्ष्मणजी की तपस्‍या ! 

प्रभु श्रीरामजी के साथ लक्ष्मणजी वनवास गए थे । प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण इनमें अगाध प्रेम था । रावण के साथ जब महाभयंकर युद्ध हुआ था, तब लक्ष्मणजी ने रावण के पुत्र इंद्रजित का वध किया था । लक्ष्मणजी ने इंद्रजित का वध कैसे किया था, यह कथा अब हम सुनते है । Read more »

विभीषण प्रभु श्रीरामजी की शरण में ! 

रावण के भाई विभीषण धर्मनिष्‍ठ और नीतिवान थे । वे सदाचारी और धर्म के नियमों का पालन करते थे । विभीषण ने रावण को धर्म के अनुसार आचरण कर माता सीता को मुक्‍त करने के लिए कहा । परंतु अधर्मी रावणने विभीषण का कहना न मानकर उसका अपमानही किया । रावण से अपमानित होकर विभीषण शिघ्रता से आकाशमार्ग से उस स्‍थान पर पहुंचे जहां लक्ष्मण सहित प्रभु श्रीरामजी थे । Read more »

लंकादहन !

हनुमानजी माता सीता से लंका में अशोकवाटीका में छोटा रूप धारण कर मिले तथा सीता माता की आज्ञा से अपनी भूख मिटाने के लिए वाटिका से फल तोडकर खाने लगे । तब वहां पर पहरा दे रहे राक्षसोंने हनुमानजी को देखा और उन्‍हें साधारण वानर समझकर उन्‍हें मारने के लिए दौड पडे; परंतु हनुमानजी ने अपनी शक्‍ति का प्रयोग कर राक्षसों पर आक्रमण किया । Read more »

राधाकुंड की निर्मिती !

एक बार कंस ने भगवान श्रीकृष्‍ण का वध करने के लिए अरिष्टासुर नाम के दैत्‍य को भेजा । अरिष्टासुर गाय के बछडे का रूप लेकर श्रीकृष्‍ण की गायों में शामिल हो गया और उन्‍हें मारने लगा । भगवान श्रीकृष्‍ण ने बछडे के रूप में छिपे दैत्‍य को पहचान लिया । श्रीकृष्‍ण ने उसको पकडा और भूमीपर पटक पटककर उसका वध कर दिया । Read more »

गोदावरी नदी की जन्‍मकथा 

भगवान शिवजी के बारह ज्‍योतिर्लिंग हमारी पवित्र भारतभूमी पर हैं । इन बारह ज्‍योतिर्लिंगों में तीसरे स्‍थान पर आता है, महाराष्‍ट्र के नासिक जिले में गोदावरी नदी के तट पर विराजमान श्री त्र्यम्‍बकेश्‍वर ज्‍योतिर्लिंग ! यह ज्‍योतिर्लिंग ब्रह्मगिरी पर्वत के निकट स्‍थित है और ब्रह्मगिरी पर्वत से ही गोदावरी नदी का उद़्‍गम होता है । Read more »

नामस्‍मरण का महत्त्व : भक्त प्रल्‍हाद

जो देवता का नामजप करता है, वह देवता का भक्‍त हो जाता है । देवता अपनी भक्‍तों की सदा रक्षा करते हैं । भगवान ने भक्‍तों को वचन दिया है, ‘न मे भक्‍त: प्रणश्‍यती ।’ अर्थात ‘मेरे भक्‍तों का कभी नाश नहीं होता । आज हम देवता का अखंड नामजप करनेवाले एक ऐसे भक्‍त की कथा सुननेवाले हैं, जिसकी असीम भक्‍ति के कारण देवता उसकी रक्षा के लिए प्रकट हुए थे । Read more »

भगवान शिवजी का गृहपति अवतार !

भगवान विष्‍णु के अनेक अवतार हुए हैं, वैसेही भगवान शिवजी के भी अवतार हुए है । भगवान शिवजी के अनेक अवतारों में से सातवे अवतार है गृहपति । आज हम उनके इस अवतार की कथा सुनेंगे । Read more »

भगवान शिवजीद्वारा त्रिपुरासुर का वध 

भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था । उसके बाद तारकासुर के तीन पुत्रों ने देवताओं से बदला लेने का निश्‍चय कर लिया । तीनों असुरों के नाम थे – तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्‍माली । देवताओं को पराजित करने के उद्देश्‍य से तीनों तपस्‍या करने के लिए जंगल में चले गए । उन्‍होंने हजारों वर्ष तक अत्‍यंत कठोर तप किया । Read more »

तपस्या का फल ! 

भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती कठोर तपस्या कर रही थी । तपस्या के समय वह भगवान के चिंतन में ध्यानमग्न बैठी थी । उनकी तपस्या पूर्ण ही होनेवाली थी कि उसी समय उन्हें एक बालक के डुबने की चीख सुनाई दी । माता तुरंत उठकर वहां पहुंची । उन्होंने देखा एक मगरमच्छ बालक को पानी के अंदर खींच रहा है । Read more »