श्री दुर्गादेवी द्वारा शुम्‍भ-निशुम्‍भ का वध

बच्‍चों, नवरात्रि इस शब्‍द का अर्थ है, ‘नौ रात्रियां’ । दुर्गादेवी ने अश्‍विन शुक्‍ल प्रतिपदा से अश्‍विन शुक्‍ल नवमी तक नौ दिन तथा नौ रात्रि महिषासुर नामक असुर के साथ युद्ध कर उसका वध किया था । वे नौ दिन दुर्गादेवी का नवरात्रि उत्‍सव मनाया जाता है । दुर्गादेवी ने अनेक असुरों का वध किया है । इससे पहले बालसंस्‍कार वर्ग में हमने महिषासुर मर्दिनी दुर्गादेवी की कथा सुनी ही है । दुर्गादेवी ने शुम्‍भ और निशुम्‍भ नामक असुरों का भी वध किया था । आज हम वही कथा सुनते है ।

शुम्‍भ और निशुम्‍भ नाम के दो राक्षस थे । १० सहस्र वर्षों तक उन्‍होंने अन्‍न और जल का त्‍याग कर ब्रह्माजी की तपस्‍या की और तीनों लोकों पर राज करने का वरदान प्राप्‍त किया । उन्‍होंने ब्रह्माजी से वर में मांगा कि स्‍त्रियों से तो हमें कोई भय नहीं है; परंतु कोई पशु-पक्षी भी हमें न मार पाएं । वरदान प्राप्‍त करने के बाद दोनों दुष्‍ट असुर उन्‍मत्त हो गए । यह बात जब दैत्‍यों के गुरू शुक्राचार्य को पता चली, तो उन्‍होंने शुम्‍भ का राज्‍याभिषेक करा दिया और दोनों भाइयों को पूरे असुर समुदाय का राजा बना दिया । पृथ्‍वी पर रहनेवाले रक्‍तबीज, चण्‍ड-मुण्‍ड आदि सभी असुर शुम्‍भ और निशुम्‍भ से जा मिले । इससे असुरों का साम्राज्‍य दिन-प्रतिदिन बढने लगा ।

एक बार निशुम्‍भ स्‍वर्ग में स्‍वयं का अधिकार करने पहुंचा । वहा पर इन्‍द्रदेव के व्रजप्रहार से वह अचेत हो गया । तब शुम्‍भ ने इन्‍द्रदेव से युद्ध कर उन्‍हें हराया और उनका शस्‍त्र छीन लिया । उसके बाद इन्‍द्रदेव के साथ सभी देवता किसी प्रकार अपने प्राणों की रक्षा कर वहां से निकले । शुम्‍भ और निशुम्‍भ से रक्षा करने के लिए देवताओं के गुरु बृहस्‍पतिजी ने ‘देवी जगदंबा’ अर्थात ‘श्री दुर्गादेवी’ का आवाहन किया । देवी प्रकट हुई । देवताओं  ने देवी को शुम्‍भ और निशुम्‍भ के आक्रमण से बचाने की प्रार्थना की । दुर्गादेवी ने देवताओं को असुरों का नाश करने का आश्‍वासन दिया और अपने वाहन सिंह पर आरूढ होकर वे हिमालय के शिखर पर स्‍थित हो गई ।

चण्‍ड और मुण्‍ड नाम के असुर शुम्‍भ-निशुम्‍भ के सेवक थे । उन्‍होंने मां आदिशक्‍ति को देखा । उन्‍होंने शुम्‍भ-निशुम्‍भ के पास जाकर कहा, ‘‘स्‍वामी, हमने एक कन्‍या को देखा है । वह भव्‍य कन्‍या आपके योग्‍य है । आप उससे विवाह कर उन्‍हें असुरों की महारानी बनाएं ।’’ देवी को लाने शुम्‍भ ने पहले एक असुर को भेजा; परंतु देवी ने कहा कि जो उन्‍हें युद्ध में पराजित करेगा, उसी से वह विवाह करेंगी । पहले धूम्राक्ष नाम का असुर देवी के पास गया । देवी ने उसे पराजित किया । चण्‍ड, मुण्‍ड, रक्‍तबीज आदि असुर देवी को पराजित करने के लिए गए; परंतु दुर्गादेवी ने क्रोध में आकर देवी काली का अवतार धारण किया और सभी दुष्‍टों का संहार कर दिया ।

असुरों की इतनी बडी सेना का नाश उस कन्‍या ने किया है, यह समाचार सुनकर शुम्‍भ और निशुम्‍भ क्रोध से पागल हो उठे । अब उन्‍होंने स्‍वयं ही युद्ध में जाने का निश्‍चय किया । सबसे पहले निशुम्‍भ अपनी विशाल सेना लेकर देवी से युद्ध करने पहुंचा । दैत्‍यगुरु शुक्रराचार्य ने असुर राजा को सावधान किया; परंतु क्रोधित असुरों ने इस बात पर ध्‍यान नहीं दिया । निशुम्‍भ के पहुंचने पर उसका और देवी का भयंकर युद्ध हुआ और वह युद्ध में मारा गया । भाई की मृत्‍यु का समाचार सुनकर शुम्‍भ को बहुत आश्‍चर्य हुआ और वह देवी पर आक्रमण करने निकल पडा । देवी काली ने शुम्‍भ को अस्‍त्र-शस्‍त्रों से विहीन कर दिया । जब वह उन्‍मत्त असुर दुर्गादेवी की ओर बढा, तब देवीने अपने त्रिशूल से पापी शुम्‍भ का वध किया ।

इतने विशाल असुर समुदाय का नाश करने के बाद देवी काली शांत न हुई । तब भोलेनाथ स्‍वयं समस्‍त संसार की रक्षा के लिए और देवी को शांत करने के लिए उनके आगे लेट गए । देवी का पैर महादेव को लगते ही देवी शांत हो गई । शुम्‍भ -निशुम्‍भ आदि राक्षसों का वध कर देवी ने पृथ्‍वी को पुन: पवित्र और निर्मल बना दिया । सारे संसार में देवी की जय-जयकार होने लगी । देवताओं ने स्‍वर्ग से पुष्‍प बरसाए और देवी की स्‍तुति कि गाई ।

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