राधाकुंड की निर्मिती !

एक बार कंस ने भगवान श्रीकृष्‍ण का वध करने के लिए अरिष्टासुर नाम के दैत्‍य को भेजा । अरिष्टासुर गाय के बछडे का रूप लेकर श्रीकृष्‍ण की गायों में शामिल हो गया और उन्‍हें मारने लगा । भगवान श्रीकृष्‍ण ने बछडे के रूप में छिपे दैत्‍य को पहचान लिया । श्रीकृष्‍ण ने उसको पकडा और भूमीपर पटक पटककर उसका वध कर दिया । Read more »

नरकासुर वध ! 

भौमासुर पशुओं से भी अधिक क्रूर और अधर्मी था । वह सबको नरक जैसी यातनाएं देता था । उसकी इन्हीं करतूतों के कारण ही उसका नाम नरकासुर पड गया । भौमासुर को देव-दानव-मनुष्य नहीं मार सकता था; परन्तु उसे स्त्री के हाथों मरने का शाप था । इसलिए भगवान श्रीकृष्णजी ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया । Read more »

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश !

अपने विरुद्ध पक्ष में पितामह भीष्म और द्रोणाचार्य आदि गुरुजनों को देखकर अर्जुन युद्ध करने को तैयार नहीं थे । तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विश्वरूप का दर्शन कराया और उनसे कहा, ‘पार्थ ! जब धर्म को ग्लानी आती है, तब धर्म की संस्थापना के लिए मैं अवतार धारण करता हूं । उनके साथ युद्ध करना ही उचित क्षत्रिय धर्म है । तुम अपने कर्म के फल की चिंता ना करते हुए अपने क्षात्रधर्म का पालन करो ।’ Read more »

राधा का चरणामृत !

एक बार गोकुल में बालकृष्ण बीमार हो गए थे । कोई भी वैद्य, औषधि, जडी-बूटी उन्हें ठीक नहीं कर पा रही थी । गोपियों को यह बात पता चली । गोपियां कृष्ण से मिलने आई । कृष्ण की ऐसी स्थिति देखकर सभी गोपियों की आंखों में आंसू आ गए । भगवान कृष्णने उन्हें रोनेसे मना किया और कहा, ‘‘मेरे ठीक होने का एक उपाय है । यदि कोई गोपी मुझे अपने चरणों का चरणामृत पिलाए, तो मैं ठीक हो सकता हूं ।’’ Read more »

भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण ! 

कुरुक्षेत्र को विशाल सेनाओं के आने-जाने की सुविधा के लिए तैयार किया जा रहा था । बडे हाथी पेडों को उखाडने और जमीन साफ करने के काम में लगाए गए थे । उनमें से एक पेडपर एक चिडिया का घोसला था जिसमें वह चिडिया अपने चार बच्चों के साथ रहती थी । जब उस पेड को हाथी ने उखाडा तो उस छोटी सी चिडिया का घोंसला जमीन पर गिर गया । Read more »

अनंत चतुर्दशी की कथा !

आप कौरवों तथा पांडवों की कथा तो जानते ही हैं । पांडवों के बडे भाई युधिष्‍ठिर थे । वह इन्‍द्रप्रस्‍थ के राजा थे । युधिष्‍ठिर ने वहां एक ऐसा महल बनवाया था जो कि बहुत ही सुंदर और अद्भुत था । उस महल की विषेशता यह थी कि उसमें जल और स्‍थल में अंतर ही नहीं दिखाई देता था । जल के स्‍थानपर स्‍थल और स्‍थल के स्‍थानपर जल के जैसा भ्रम उत्‍पन्‍न होता था । Read more »

भगवान श्रीकृष्‍णजी की कृपा ! 

भगवान श्रीकृष्‍ण का एक बहुत धनवान भक्‍त था; परंतु वह पैरों में अत्‍यधिक पीडा होने के कारण चल नहीं पाता था । उसे एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर जाने के लिए उठाकर ले जाना पडता था । उसी ग्राम में भगवान श्रीकृष्‍ण का एक और बहुत गरीब भक्‍त था और उसी मंदिर में वह अपनी पुत्री के विवाह के लिए पूर्ण श्रद्धा से प्रार्थना कर रहा था । Read more »

श्रीकृष्‍णजी की बांसुरी !

आज भगवान श्रीकृष्‍ण की बांसुरी के उत्‍पन्‍न होने की एक सुन्‍दर कहानी सुनते हैं । हम सब जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्‍ण के हाथ में सदैव बांसुरी रहती है । बांसुरी को मुरली भी कहते हैं । भगवान श्रीकृष्‍ण के हाथ में मुरली होने के कारण उन्‍हें ‘मुरलीधर’ भी कहा जाता है । Read more »

रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड का गर्वहरण !

एक बार क्या हुआ कि, द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे । उनके निकट ही गरुड और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे । तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था । बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा, ‘हे प्रभु ! आपने त्रेतायुग में प्रभी श्रीराम के रूप में अवतार लिया था, देवी सीता आपकी पत्नी थीं । क्या वह मुझसे भी अधिक सुंदर थीं ?’ Read more »

राजा मोरध्वज की कृष्णभक्ति !

महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद अर्जुन को यह भ्रम हो गया की, वह श्रीकृष्ण के सर्वश्रेष्ठ भक्त हैं । अर्जुन सोचते थे की कन्हैया ने मेरा रथ चलाया, युद्ध के समय वे मेरे साथ रहे, इसका अर्थ है मैं ही भगवान का सर्वश्रेष्ठ भक्त हूं । अर्जुन यह भूल गए थे की वे तो केवल भगवान के धर्म संस्थापना का माध्यम थे । अर्जुन के मन की बात जानकर भगवान श्रीकृष्णजी ने उनका अहंकार तोडने का निश्‍चय किया । Read more »