तुकारामबीज : संत तुकाराम महाराजजी का सदेह वैकुंठगमन ! 

आज हम संत तुकाराम महाराजजी की कथा सुनेंगे । संत तुकाराम महाराज जी की भगवान पांडुरंग के प्रति अनन्‍यसाधारण भक्‍ति थी । उनका जन्‍म महाराष्‍ट्र के देहू गांव में हुआ था और वे सदेह वैकुंठ गए थे । अर्थात वे देहत्‍याग किए बिना अपने स्‍थूल देह के साथ भगवान श्रीविष्‍णुजी के वैकुंठधाम गए थे । Read more »

प.पू. रामकृष्ण परमहंसजी की कालीमाता भक्ति !

श्रीरामकृष्ण परमहंसजी काली माता के मंदिर के पुजारी थे । वे कालीमाता के असीम भक्त थे । श्रीरामकृष्ण परमहंस भक्ति के आदर्श उदाहरण हैं । कालीमाता ने भी उनपर कितना और कैसे प्रेम किया ?, यह भक्तिमय प्रसंग आज हम सुनेंगे ।  Read more »

सभी में ब्रह्म देखनेवाले संत एकनाथ महाराज !

हमारे हिन्दू धर्म में श्राद्ध विधि का बडा महत्त्व बताया गया है । एक बार संत एकनाथ महाराज श्राद्ध कर्म कर रहे थे । पूर्वजों के लिए उनके घर में स्वादिष्ट भोजन तैयार हो रहा था । उसी समय कुछ भिखारी उनके दरवाजे से गुजर रहे थे । एकनाथ महाराज जी के घर से स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों की सुगंध सर्व ओर फैल रही थी । भिखारियों को भी वह सुगंध आई । Read more »

संत ज्ञानेश्वरजी का योग सामर्थ्य !

संत ज्ञानेश्वर अपने भाई-बहन के साथ शुद्धि पत्र लाने के लिए महाराष्ट्र के पैठण गांव पहुंचे । वहां वे एक ब्राह्मण के घर में निवास कर रहे थे । इस लिए वहां के पुरोहितों ने उस ब्राह्मण का बहिष्कार कर दिया था । संत ज्ञानेश्वरजी जिस ब्राह्मण के घर में रहते थे, उस ब्राह्मण के पिता का श्राद्ध था । कोई भी पुरोहित उस ब्राह्मण के घर श्राद्ध करने के लिए नहीं जा रहा था । Read more »

अक्‍कलकोट के श्री स्‍वामी समर्थ ! 

अक्‍कलकोट के श्री स्‍वामी समर्थ ही नृसिंह सरस्‍वती हैं अर्थात दत्तावतार हैं । स्‍वामी समर्थ ने अपने भक्‍तों को सुरक्षा का वचन दिया है । वह कहते थे, ‘डरो नहीं, मैं तुम्‍हारे साथ हूं ।’ उनका यह वचन प्रसिद्ध है । उनके इस वचन की अनुभूती उनके भक्‍त आज भी लेते है । Read more »

विठ्ठलभक्‍त नरहरि सुनार !

नरहरी सुनार नामक महानभक्‍त था । उसका जन्‍म भूमि पर वैकुंठ माने जानेवाले श्री पंढरपुर धाम में हुआ था । नरहरी सुनारजी के पिता महान शिव भक्‍त थे, प्रतिदिन शिवलिंग को अभिषेक करके बिल्‍वपत्र अर्पण करने के बाद ही वे काम पर जाते थे । भगवान शिव की कृपा से ही उनके घर नरहरी का जन्‍म हुआ था । Read more »

संत शिरोमणी नरसी मेहता ! 

नरसी मेहता एक उच्च कोटि के संत थे । वह कृष्‍णभक्‍त थे और सदैव भगवान श्रीकृष्‍णजी की पूजा एवं नामजप में मग्‍न रहते थे । वह भिक्षा मांगकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे । नरसीजी के पिताजी की मृत्‍यु हो गई थी तथा उनका वार्षिक श्राद्ध करना था । Read more »

कोढी पर दया !

एक बार श्री गुरुनानकजी लोगों के कष्टों को दूर करते हुए एक गांव के बाहर पहुंचे और वहां उन्हें एक झोपडी दिखाई दी । गांव से इतनी दूर बाहर बनी उस झोपडी को देखकर उन्हें आश्‍चर्य हुआ । वह उस झोपडी में पहुंचे । उस झोपडी में एक आदमी रहता था, जिसे कुष्ठरोग था । Read more »

गुरु आज्ञापालन का महत्त्व !

समर्थ रामदास स्‍वामीजी के एक शिष्‍य भिक्षा मांगते हुए वह एक घर के सामने आया । घर का दरवाजा खोलकर एक योगी बाहर आया । योगी अहंकारी थे । योगी ने क्रोध से पूछा, ‘‘कौन है ये समर्थ ? तुम्‍हारा इतना दुःसाहस की, मेरे दरवाजे पर आकर किसी और का गुणगान कर रहे हो । देखता हूं, कितना समर्थ है तेरा गुरु ? मैं तुम्‍हें शाप देता हूं… Read more »

सब धन धूली समान !

राजा कृष्‍णदेवराय के राज्‍य में संत पुरंदरदास नामक संत रहते थे । संत पुरंदरदास जी का जीवन सादगी भरा था । वे ईश्‍वर के भक्‍त होने के कारण लोभ से भी मुक्‍त थे । राजाने अपने गुरु व्‍यासराय के मुख से संत पुरंदरदास जी की प्रशंसा अनेक बार सुनी थी । तब राजा के मन मे संत पुरंदरदास जी की परीक्षा लेने का विचार आया । Read more »