विश्ववंद्य श्रीमद्भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता, अर्थात भगवान श्रीकृष्णकी प्रत्यक्ष अमृतवाणी !

कुरुक्षेत्रके युद्धमें विजय प्राप्त करनेके लिए अर्जुनको जिस प्रकार गीताके उपदेशकी आवश्यकता थी, उसी प्रकार आज जीवनके कुरुक्षेत्रपर विजय प्राप्त करनेके लिए प्रत्येकको गीतामृतकी आवश्यकता है । प्राचीन कालसे ही विदेशके अनेक विद्वान गीताकी अद्वितीयताके आगे नतमस्तक होते रहे हैं । पश्चिमी लोगोंकी गीताभक्तितथा गीताका महत्व इस लेखमें प्रस्तुत कर रहे हैं ।

१. अठारह पुराण, नौ व्याकरण एवं चार वेदोंका सारांशश्रीमद्भगवद्गीता

अष्टादश पुराणानि नव व्याकरणानि च ।

निर्मथ्य चतुरो वेदान् मुनिना भारतं कृतम् ।

भारतोदधिपज्र्स्य गीतानिर्मथितस्य च ।

सारमद्धत्य कृष्णेन अर्जुनस्य मुखे धृतम् ।

संदर्भ : अज्ञात

अर्थ : अठारह पुराण, नौ व्याकरण एवं चार वेदोंका मन्थन कर व्यास ऋषिने महाभारतकी रचना की । इस महाभारतका मन्थनकर सारा नवनीत (सारांश) श्रीमद्भगवद्गीताके रूपमें भगवान श्रीकृष्णने अर्जुनके मुखमें रखा ।

२. देश-विदेशके विद्वानोंद्वारा श्रीमद्भगवद्गीताका किया गया भाषान्तर

अ. शेख अबुल रहमान चिश्ती (फारसी)

आ. फ्रेन्च विद्वान डुपर ( फ्रेन्च )

इ. जर्मन महाकवि आगस्ट विलेम श्लेगल (वर्ष १८२३) (जर्मन एवं लैटिन)

ई. जर्मन विद्वान एम.ए. श्रेडर

उ. केमेथ सेन्डर्स एवं जे.सी. टामसन

ऊ. भारत भ्रमणपर आए हुए अमेरिकाके न्यायाधीश एवं लेखक विन्थ्रौप सार्जेट

ए. एल.डी. बार्नेट एवं डॉ. एनी बेसेन्ट (वर्ष १९०५)

ऐ. डब्ल्यू. डगलस पी. हिल (वर्ष १९२८)

ओ. फ्रेंकलिन एडजर्ट (वर्ष १९४४)

औ. क्रिस्टोफर ईशरवुड (वर्ष १९४५)

३. श्रीमद्भगवद्गीताकी अहिन्दुओंद्वारा की गयी स्तुति

अ. मोहम्मद गजनीने भारतके कारागृहमें बुखाराके अत्यंत बुद्धिमान राजकुमार अल् बरूनीको बन्दी बनाकर रखा था । बरूनीने कारावासकालमें संस्कृत भाषा सीखी तथा अपनी पुस्तकमें गीताकी अत्यधिक प्रशंसा की है ।

आ. दिल्लीके सम्राट अकबरने प्रकाण्ड पण्डित अबुल पैजीद्वारा गीताका भाषान्तर फारसी भाषामें करवाया तथा सम्राट शाहजहांके पुत्र दाराशिकोहने इस भाषान्तरित ग्रन्थकी प्रस्तावना, ‘सरे अकबर’ शीर्षकके अन्तर्गत की । अपनी प्रस्तावनामें गीताकी अपूर्व प्रशंसा करते हुए उसने लिखा है कि गीताका प्रभाव प्लेटोके गुरुपर भी था ।

इ. जर्मन विद्वान वॉल्टर शूब्रिंगने गीताकी विशेष स्तुति की है ।

ई. जर्मन तत्ववेत्ता काण्ट तथा उसके प्रशंसक शॉपेनहावर एवं हीगल गीताके प्रशंसक थे ।

उ. जर्मन विद्वान हम्बोल्टने कहा कि गीता पढकर उनका जीवन कृतार्थ हो गया तथा यह एक उत्तम दर्शनकाव्य है ।

ऊ. गीताका भाषान्तर अनेक यूरोपीय भाषाओंमें बार-बार होने लगा । अनेक यूरोपीय तथा अमेरिकी विद्वानोंने मुक्तकण्ठसे गीताकी प्रशंसा की है ।

ए. थोरोके महान भक्त अमेरिकी लेखक राल्फ वाल्डो एमरसन गीताके विशेष प्रशंसक थे ।

ऐ. आयरिश कवि जी. डब्ल्यू रसल (रसेल) ने भी गीताकी अत्यधिक स्तुति की है ।

ओ. यीट्स, फ्रेजर, मेकनिकल इत्यादि विदेशी विद्वानोंने भी गीताकी मुक्तकण्ठसे स्तुति की है ।

औ. टी.एस. इलियटने गीताको मानवीय साहित्यको प्राप्त अमूल्य देन कहा है ।

अं. फरक्यूहरने गीताको विलक्षण कहा था ।

क. विद्वान बुक्स, गीताको मानव जातिके उज्वल भविष्यके लिए निर्मिती मानते थे ।

ख. गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्सगीताकी स्तुतिमें कहते हैं, इसका उपदेश किसी भी जाति एवं राष्ट्रको प्रगतिके शिखरपर ले जानेके लिए अद्वितीय है ।

४. यूरोपीय विद्वानोंने जाना गीताका महत्व

अ. गीताका प्रभाव बौद्ध महायान ग्रन्थोंमें भी दिखाई देता है ।

आ. अंग्रेज कवि कार्लायल गीताके अभ्यासक थे ।

इ. संस्कृतविशेषज्ञ सर जॉन वुडरूफगीताके भक्त थे ।

ई. भारतकी ईस्ट इण्डिया कम्पनीके विद्वान अंग्रेज अधिकारी चार्ल्सविल्किन्सने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक संस्कृतका अध्ययन कर गीताका अंग्रेजीमें भाषान्तर किया । यद्यपि, कम्पनीने यह भाषान्तर अपने लाभके लिए करवाया था; फिर भी, यह एक क्रांन्तिकारी घटना थी । इस घटनासे यूरोपीय विश्वमें खलबली मच गई थी ।

उ. सर हेनरी टामस कोलब्रुक गीताके प्रशंसक थे । कोलब्रुकने वर्ष १७६५ से वर्ष १८३७ के मध्य संस्कृतका प्रचार किया । उन्होंने वेदोंपर विद्वत्तापूर्ण लेख लिखे तथा यूरोपमें वेदोंका प्रसार प्रारम्भ किया ।

ऊ. गीता तथा संस्कृतको वैभव प्राप्त करवानेमें सर विल्यम जोन्सका महत्वपूर्ण योगदान है । इसके लिए उन्होंने कोलकाताके विद्वान पण्डित रामलोचनके कठोर आदेशका पालनकर (गंगाजलसे कक्ष धोना) पंडितोंसे संस्कृत सीखी ।

ए. जर्मन विद्वान विन्टरनित्स, पालडायसन तथा मैक्समूलरने वैदिक साहित्य एवं गीताका प्रसार करनेमें बहुमूल्य योगदान दिया ।

ऐ. अंग्रेजी कवि सर एडविन आरनोल्डद्वारा किया गया गीताका प्रसिद्ध अनुवाद, ‘दिव्य संगीत’, गांधीजीने लंदनमें पढा तथा वे गीतासे परिचित हुए ।

ओ. प्रसिद्ध अंग्रेजी विद्वान एल्डुअस हक्सलेने, ‘गीता शाश्वत दर्शन’ नामक अपने ग्रंथमें गीतापर अत्यन्त महत्वपूर्ण भाष्य किया है । उनकेद्वारा इसमें किया गया आध्यात्मिकवर्णन, संक्षिप्त होनेपर भी स्पष्ट एवं सर्वाधिक क्रमबद्ध है ।

संदर्भ : गीता स्वाध्याय', दिसंबर २०१०

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