रामसेतू

आज विश्‍वका प्रत्येक देश कठोर परिश्रमके साथ किसी भी मूल्यपर अपनी प्राचीन धरोहरका जतन कर रहा है; परंतु आज इस दयनीय, दीन, उपेक्षित और निराश्रय भारतवर्षमें स्थिति इसके विपरीतहै । ‘नासा’ नामक अमेरिकाकी संस्थाने उपग्रहके माध्यमसे सागरमें सेतू ढूंढा । उन्होंने अपने निष्कर्षमें कहा कि, यह सेतू १७ लक्ष ५० सहस्त्र वर्षपूर्वका है और यह मानवनिर्मित है । यह सेतू ४८ कि.मी लंबा है । नासा संस्थाने रामसेतुके चित्र दिए हैं तथा रामसेतुका विस्तृत वर्णन किया है । सेतुकी आयु १७ लक्ष ५० सहस्त्र वर्ष बताई है ।यह सर्व संपूर्णरूपसे वाल्मिकी रामायणसे मेल खाता है ।

इस सेतूका निर्माण अभियंताका ज्ञान रखनेवाले नलने वानरवीरोंकी सहायतासे किया था । नल विश्‍वकर्माका पुत्र था । विश्‍वकर्माने पांडवोंकी मयसभा, लंका और अनेक प्राचीन, श्रेष्ठ और सर्वांगसे परिपूर्ण नगरोंका निर्माण किया था । नलमें अपने पिताकी कुशलता उतरी है । श्री वाल्मिकीरामायणके युद्धकांडके २२ वें अध्यायमें सेतूुका विस्तारसे वर्णन है । प्रभु श्रीरामने ३ दिन सागर तटपर व्रतस्थ होकर लंका जानेके लिए मार्ग देने हेतु सागरसे प्रार्थना की थी; परंतु सागरद्वारा उस प्रार्थनाकी उपेक्षा की गई, तब प्रभुने संतप्त होकर सागरको शुष्क करनेकी धमकी दी । उस समय सागरने नलके कुशल मार्गदर्शनमें सेतु निर्माण करने हेतु कहा ।

तदुपरांत प्रभु श्रीरामकी आज्ञासे सहस्त्रो वानरवीरोंने गहन वनमें प्रवेश किया । साल, अश्‍वकरण, धाब, वंश, कुटन, अजाऋण, ताल, निलक, बिस्त, शतपर्ण, आम्र, अशीक जैसे असंख्य वृक्ष लाकर सागर तटपर रखे गए । पर्वत तथा पहाडियोंसे हाथी जैसी विशाल चट्टानेंऔर पाषाणसागरमें फेंके गए । उस समय सागरका पानी आकाशकी ऊंचाई तक उछला । सेतुका निर्माण सरलतासे होने हेतु वानरोंने सहस्रों योजन लंबी रस्सी सागरमें तानकर रखी थी ।

सागरके मध्यसे नलनेसेतूका निर्माण प्रारम्भ किया ।सहस्रों वानरोंने अथक परिश्रमकर ५ दिनोंमें सेतू पूर्ण किया ।

स नलेन कृतः सेतुः सागरे मकरालये ।

शुशुभे सुभगः श्रीमान स्वातीपथ इवाम्बरे ॥

– श्रीवाल्मीकिरामायण ६.२२.७४

अर्थ: मकराल सागरमें नलद्वारा निर्मित यह सुंदर और सुशोभित सेतू आकाशके स्वाति नक्षत्रके पथसमान सुंदर दिख रहा था । आकाशगंगासमान दिखनेवाला यह सुंदर सेतू मानो सागरका विभाजन करनेवाली रेखा प्रतीत हो रही थी ।

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (घनगर्जित, मे २००७)