भारतमाताका सुपुत्र भगवान श्रीराम तथा रामराज्य

भगवान श्रीरामका भारतमाताके प्रति प्रेम

राम-रावण युद्धमें भगवान श्रीरामने रावणको हरा दिया । भगवान श्रीरामने लंकाका राज बिभीषणके हाथों सौंपकर अयोध्या वापिस जानेका निर्णय लिया । लक्ष्मण इससे सहमत नहीं हुए । उन्हें यह अच्छा नहीं लगा । लक्ष्मणने भगवान श्रीरामसे कहा, ‘‘ हमने अपने पराक्रमसे रावणपर विजय प्राप्त किया है । लंकामें स्वर्गीय सुख है । लंका स्वर्णमयी है । अयोध्यामें क्या रखा है ? हम अयोध्या वापिस क्यों जाएं ? हम लंकामें ही रहेंगे ।''

उस समय भगवान श्रीरामने उत्तर दिया,

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी ।।

अर्थ : हे लक्ष्मण, लंका स्वर्णमयी है, यह मैं जानता हूं; किंतु मेरी मां तथा मेरी जन्मभूमि, अर्थात् भारतमाता मेरे लिए स्वर्गसे भी श्रेष्ठ है ।

हम हनुमानजीके ह्रदयमें श्रीराम, सीतामाता तथा लक्ष्मणको देखते हैं । उसी प्रकार प्रभू श्रीरामचंद्रजीके ह्रदयमें भारतमाता विराजमान थी । अत: श्रीराम भारतमाताके सुपुत्र हैं ।

भगवान श्रीरामने प्रजाके मनमें देशके प्रति मातृभक्तिका भाव
उत्पन्न करनेके पश्चात भारतमें रामराज्यका निर्माण होना

भगवान श्रीरामने अयोध्या वापिस आकर वहांकी प्रजाके ह्रदयमें ‘यह देश (भारत) ही मेरी माता है तथा मैं उसका सुपुत्र हूं ', यह भाव उत्पन्न किया तथा भारतमें रामराज्यका निर्माण हुआ ।

संदर्भ : सदाचार एवं संस्कृति, जनवरी २०११

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