इजरायल : शोधद्वारा तकनीकी ज्ञानका
प्रभावी प्रयोग करनेवाला राष्ट्र !

१४ मई – इजरायलका स्वतंत्रतादिन है । इस निमित्तसे…

इजरायलका नाम लेते ही हमें प्रथम स्मरण होता है, उनके ‘मोसाद’ नामक विश्वविख्यात गुप्तचर संगठनका ! उनकी सैनिकी सिद्धता, प्रत्येक नागरिकको सैनिकी प्रशिक्षणका अनिवार्य होना, दूसरे महायुद्धमें यहुदियोंको यातना देनेवाले जर्मनके सैनिकी अधिकारियोंको युद्धके पश्चात पूरे विश्वसे ढूंढ निकालकर उन्हें अांतरराष्ट्रीय न्यायालयके समक्ष लानेकी इजरायलकी विजिगीषु वृत्ति… कई कथनोंमें इजरायल अर्थात युद्ध अथवा उससे संबंधित विविध घटनाओंसे जुडा हुआ देश बताया गया है ! १४ मईको इजरायलका स्वतंत्रतादिन है । इस निमित्तसे इस देशकी प्रगतिका आलेख प्रसिद्ध कर रहे हैं ।

१. पानी तथा अनाज दुर्लभ होनेपर भी
६० वर्षोंमें उत्तुंग उडान भरनेवाला इजरायल !

प्रत्येक इजरायली नागरिकने उसका अपना व्यक्तिगत जीवन अपने देशके चरणोंमें अर्पित किया, यही इजरायलकी प्रगतिका रहस्य है । इजरायलके इस संघर्षको दो सहस्रोंसे भी अधिक वर्षोंका इतिहास है । परंतु उनकी स्वतंत्रता मात्र ६० से ६२ वर्षोंकी है । अचूकतासे बताना हो, तो १४.५.१९४८ को इजरायल नामक देश अस्तित्वमें आया । इन ६० वर्षोंमें इजरायलने उत्तुंग उडान भरी । इजरायल निरंतर युद्धकी छायामें था । देशका अस्तित्व ही नष्ट करनेके लिए चारोंओरके सर्व राष्ट्र ताक लगाए बैठे थे । पानी तथा अनाज दुर्लभ होनेपर भी ऐसी प्रगति कर पाना, वास्तविकरूपमें प्रशंसनीय और भारतके साथ विश्वके अन्य देशोंद्वारा अनुसरण करनेयोग्य बात है ।

२. इजरायलने अत्याधुनिक तकनीकीज्ञानके
माध्यमसेतकनीकी प्रगतिकी दिशामें भरी ऊंची उडान !

२ अ. पानी

२ अ १. सागरके जलसे पीनेका पानी बनाना : सागरके स्वादहीन, नमकीन जलसे सीधे पीनेका पानी बनानेका तकनीक इजरायलने विकसित किया । ‘व्हाईट वॉटर’ नामक उनकी बडी परियोजना देखेनेके लिए हम गए थे । चीनीके (शक्करके) किसी कारखानेसमान यह परियोजना है । अतिविशाल यंत्रसामग्री, रासायनिक मिश्रणोंकी अतिभव्य टंकियां तथा बडे-बडे ‘वॉटर बेड’मेंसे पानीका प्रवाह आता-जाता है । इसके पश्चात इस पानीपर पुनश्च पीनेके पानीके लिए योग्य रसायन मिलाकर पीनेका पानी बनता है । इस परियोजनामें प्रतिदिन कुछ दशलक्ष लिटर पानी बनता है ।

२ अ २. पानीकी अभिक्रिया करते समय बिजलीका भी निर्माण होता है, इसलिए बिजलीके लिए अलग व्यय करनेकी आवश्यकता न होना : ‘इतनी सब अभिक्रियाओंसे बना पानी बहुत महंगा होनेसे सर्वसाधारण लोग उसे वैâसे खरीद पाएंगे’, ऐसा उन्हें पूछा । उस समय उन्होंने बताया कि पानीपर अभिक्रिया होते समय वही पानी प्रयोगमें लाकर बिजलीका भी निर्माण होता है । उसी बिजलीपर यह परियोजना कार्यान्वित होती है । इसके लिए अलग व्यय करनेकी आवश्यकता नहीं थी । इसके लिए कच्ची सामग्रीके रूपमें सागरका जल निःशुल्क उपलब्ध होता है । इसके अतिरिक्त इस अभिक्रियाके चलते जो पानी पीनेयोग्य नहीं रहता, वह पानी खेतीके लिए उपलब्ध करवाया जाता है । इससे प्रतिष्ठानको विशेष आय होती है ।

२ अ ३. अपशिष्ट जलकी शुद्धि कर वह पानी खेतीके लिए प्रयुक्त करना : अपशिष्ट जलप्रक्रियाके उद्यममें भी उन्होंने ऐसी ही प्रगति की है । काले-से, दुर्गंध आनेवाले पानीका सर्व अनावश्यक भाग (तेल, ग्रीस, कचरा इत्यादिसे युक्त पानी) यांत्रिक प्रक्रियाद्वारा हटाया जाता है । पश्चात कुछ मात्रामें शुद्ध हुआ पानी भूमिमें संग्रहित किया जाता है । खेतीके लिए उपयुक्त खनिज उसमें मिलाए जाते हैं और वह पानी खेतीके लिए बेचा जाता है । ये सर्व प्रक्रियाएं यंत्रद्वारा होती हैं । इसके लिए आवश्यक बिजलीकी मोटरें भूमिके नीचे ही होती हैं । इनकी देखभाल भी यंत्रोंद्वारा ही होती है । प्रयुक्त किए गए पानीके ७५ प्रतिशत पानीका वे पुनश्च उपयोग करते हैं । आनेवाले कुछ वर्षोंमें इसकी मात्रा ९५ प्रतिशत करनेका उनका प्रयत्न है । इसके लिए प्रयोगशालाओंमें निरंतर अनुसंधान चलता रहता है ।

२ आ. कचरा

२ आ १. कचरेकी कच्ची सामग्रीपर हवाके झोखेकी प्रक्रिया करना : कचरेके व्यवस्थापनमें इजरायलने बडी क्रांति की है । इसके लिए यहांपर विविध व्यक्तिगत प्रतिष्ठानोंके बडे-बडे उद्योगालय (कारखाने) हैं । सर्व कचरा यहां इकट्ठा होता है । कचरेके बडे-बडे पहाड ही इन प्रतिष्ठानोंके आसपास खडे हुए हैं । तदुपरांत कचरेकी कच्ची सामग्री आनेपर प्रथम उसपर हवाके झोखेकी प्रक्रिया की जाती है । इसके लिए एक बडे घूमनेवाले ‘पॅनेल’परसे कचरा हवाके झोखेके सामने जाता है । इसमें जो कुछ भी उड जानेवाला है (प्लास्टिक, कागद अथवा धागेके टुकडे इत्यादि), वह सर्व उडकर एक बडी टंकीमें गिर जाता है । फिर शेष कचरेपर पानीकी प्रक्रिया होती है । इससे कचरेमें स्थित भारी वस्तुओंपरकी सर्व गंदगी निकल जाती है । गंदगी निकल जानेपर वह कचरा पेंâक दिया जाता है ।

२ आ २. उबडखाबड भूमिको एक सतहमें लानेके लिए इस कचरेका उपयोग किया जाना : भूमिकी सतह एक जैसी करनेके लिए इस कचरेका उपयोग करते हैं । हमारे यहां भूमिकी सतह एक जैसी करनेके लिए किसी स्थानकी मिट्टी निकालकर वहां गढ्ढा बनाया जाता है । फिर वह मिट्टी दूसरे स्थानपर ले जाकर वहांकी उबडखाबड भूमिकी सतह ठीक की जाती है । इजरायलमें इसके लिए कचरेका उपयोग करते हैं । एकत्रित हुए कुल कचरेमेंसे ७५ प्रतिशत कचरा ‘लॅन्डफिल्ड’के लिए उपलब्ध करवाया जाता है, अर्थात उसे बेचा जाता है । यह इस प्रतिष्ठानकी आयका एक प्रमुख भाग होता है । कचरा उपयोगमें लानेके पूर्व सडकर उसकी लगभग मिट्टी बन जाती है । इसलिए यह कचरा भूमिके लिए उपयुक्त हो जाता है ।

२ आ ३. सडे हुए कचरेपर प्रक्रिया कर खेतीके लिए खाद बनाना : कचरा व्यवस्थापनका और एक नया तकनीक है, ‘कंपोस्ट खाद’ । सडा हुआ कचरा मिट्टीसदृश होनेपर उसपर पुनः रासायनिक अभिक्रिया कर उसमें खाद मिलाया जाता है । तदुपरांत यह मिट्टी खेतीके लिए खादके रूपमें बेची जाती है । यह प्रतिष्ठानकी आयका प्रमुख भाग होता है ।

२ आ ४. शेष कचरेका उपयोग कर निरूपयोगीसे उपयोगी वस्तुएं बनाना : शेष कचरा अर्थात प्लास्टिककी बोतलें अथवा रिक्त बोतलें । इनके द्वारा सुशोभनकी अनेक वस्तुएं बनाई जाती हैं । कचरेका कोई भी भाग व्यर्थ होने नहीं देंगे, ऐसा उन्होंने मानो निश्चय ही किया है । आसंदीवर (कुर्सीपर) रखनेयोग्य फोमकी गद्दीयां कचरेसे बनाई जाती हैं । इन्हें देखकर पहले-पहले विश्वास करना भी कठिन हो जाता है; परंतु ये वस्तुएं प्रत्यक्ष बनती हुई देखनेपर विश्वास करना ही पडता है । यह उद्योगालय (कारखाना) देखनेके लिए खुला रखा गया है । यहां बच्चोंके लिए खिलौने हैं, वे भी ऐसी निरूपयोगी वस्तुओंसे बनाए गए थे ।

२ इ. खेती

२ इ १. ठिबक सिंचनद्वारा (ड्रीप इरिगेशन) खेती करना : इजरायलकी खेती अनुसंधानका विषय है । अपने यहां खेतीके लिए विपुल मात्रामें पानी दिया जाता है । आजकल तो बिजली भी समयपर आनेका कोई ठिकाना नहीं रहता । इसीलिए कुछ लोगोंने मोटरका स्विच चालू रखकर सोनेका उपाय ढूंढ निकाला । बिजलीका प्रवाह चालू होनेपर मोटर चालू रहनेसे पानी व्यर्थ बह जाता है । पानीका ऐसा अपव्यय हमारे लिए ठीक नहीं, इस बातको ध्यानमें लेते हुए इजरायलने ‘ड्रीप इरिगेशन’ अर्थात ‘ठिबक सिंचन’ ढूंढ निकाला । आवश्यक पानी ही उपयोगमें लाना, यह इसका उद्देश्य है । पानी थोडा भी व्यर्थ न हो, ऐसा उनका तकनीक है ।

२ इ २. आवश्यकतानुसार पौधोंकी जडोंमें पानी देना : खेतीकी भूमिमें साधारणतः १ से २ फुटपर गढ्ढे बनाए हैं । इनमें पानी ले जानेवाली नलीयां बिछाई हैं । (इन नलीयोंको ‘पाईप’ भी नहीं कह सकते, इतनी वे छोटी (संकरी) हैं ।) इन गढ्ढोंके बगलमें खेत (फसल) अथवा पौधे होते हैं । जहां पौधा होगा, वहां नलीमें छिद्र होता है । इससे पानी बाहर रिसता रहता है और सीधे जडोंको मिलता है । इसमें पौधेको आवश्यक मात्रामें ही पानी दिया जानेसे पौधेके आसपासका क्षेत्र पानीसे भीगा रहता है । पौधोंको पानी देनेका निर्धारित समय होता है ।

२ इ ३. अत्याधुनिक तकनीकके कारण उत्पादोंमें वृद्धि करना : सर्व प्रकारकी खेतीको इसी पद्धतिसे पानी दिया जाता है । अनेक प्रकारकी साग-सब्जियोंकी तथा धानकी फसल होती है । खेतीमें बोआई, सभी प्रकारके कृषिकर्म आदिमें निरंतर अनुसंधानके माध्यमसे अत्याधुनिक तकनीक लाया गया और उसका उपयोग कर उत्पादोंमें वृद्धि की । यहांके लगभग सभी काम यंत्रद्वारा ही किए जाते हैं । ‘पानीr प्रक्रिया कारखानोंको भेट’, इस यात्राका मुख्य प्रयोजन होनेसे खेतीको भेट देनेके लिए विशेष अवसर नहीं था ।

२ ई. तकनीकी प्रगति

२ ई १. अल्प लोकसंख्या होनेसे मनुष्यबल अपर्याप्त होना और यह न्यूनता यंत्रोंद्वारा पूरी की जाना : इजरायलकी लोकसंख्या केवल ७० लाख है । अर्थात यहांपर कामकी तुलनामें मनुष्यबल अल्प है । परंतु यह न्यूनता उन्होंने यंत्रोंके माध्यमसे पूर्ण की है । एका जलशुद्धिके प्रतिष्ठानमें चर्चाके समय पूछताछ करनेपर पता हुआ कि इतना बडा कारखाना मात्र ५० लोग चलाते हैं । रात्रिके समय तो केवल दो लोग ही प्रतिष्ठानका सर्व काम देखते हैं । वे केवल पर्देपर (स्क्रिन) देखते हैं । इसपर प्रतिष्ठानमें जो कुछ हो रहा है, वह सर्व दिखाई देता है । कोई समस्या खडी होनेपर संगणकके माध्यमसे ही वह तुरंत सुलझाई जाती है । ५० श्रमिकोंमें भी केवल १० ही केमिकल अभियंता थे । अर्थात जलशुद्धिके लिए लगनेवाले रसायनोंकी मात्रा एक बार निश्चित करनेपर उनका काम समाप्त हुआ । तदुपरांत उनको केवल ध्यान देना ही शेष रहता है ।

२ ई २. यंत्रद्वारा सडकोंकी स्वच्छता करना : इजरायलमें सडकेंभी यंत्रद्वारा ही बुहारी जाती हैं । प्रातःसमयमें गाडियां आती हैं और यह काम करती हैं । इन गाडियोंमें भी केवल एक ही व्यक्ति रहता है ।

३. निष्कर्ष

तकनीकका प्रभावी उपयोग और उसमें निरंतर अनुसंधान, आधुनिक इजरायलकी प्रगतिकी आधारशीला है ।

– राजू इनामदार. (‘दैनिक लोकसत्ता’, २९.५.२०११)

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