महाभारतको ‘धर्मयुद्ध’ क्यों कहते है ?

Mahabharata

१. दुर्योधनके अनेक कौरवबंधू और वीर योद्धा पांडवोंद्वारा मारे जानेसे दुर्योधनका क्रोधित होना और भीष्माचार्यसे इसका उत्तर मांगना ।

‘महाभारतके पहले तीन दिनोंमें दुर्योधनके अनेक कौरवबंधू एवं कौरवोंके पक्षके अन्य वीर योद्धा पांडवोंद्वारा मारे गए । पांचों पांडव और उनके पक्षके किसी भी प्रमुख सेनानीकी मृत्यु नहीं हुई थी; इसलिए दुर्योधन क्रोधित हुआ और उसने कौरवोंके सेनापति भीष्माचार्यसे इसका उत्तर मांगा । तब भीष्माचार्यने कहा, ‘‘कल मैं ५ बाणोंसे पांचों पांडवोंको मारूंगा ।’’ इसपर दुर्योधनने कहा, ‘‘नहीं वैसा नहीं ! जिन पांच बाणोंसे आप पांच पांडवोंको मारनेवाले हो, उन्हें अभिमंत्रित कर मुझे सौंप दीजिए । वे बाण मैं कल सवेरे युद्धपर जानेके पूर्व आपको लाकर दूंगा । भीष्माचार्यने पांच बाण अभिमंत्रित कर दुर्योधनको दिए । वे बाण लेकर दुर्योधन अपने शिविरमें आया ।

२. भगवान श्रीकृष्णने अर्जुनसे दुर्योधनके पास जाकर पाच बाण मांगनेके लिए कहना और अर्जुनको वर देनेसे दुर्योधन निरूपाय होना और उसे बाण देना अनिवार्य होना ।

भगवान श्रीकृष्णको इस बातका पता चला । उन्हें इसका उपाय भी सूझा । जब पांडव वनवासमें थे तब एक बार दुर्योधन भी वनमें गया था । उस समय अर्जुनने उसके प्राण बचाए थे; इसलिए दुर्योधनने उसे इच्छित वर मांगनेके लिए कहा था । तब अर्जुनने कहा था कि ‘‘अभी नहीं, आवश्यकता होनेपर मैं तुमसे वर मांगूंगा । उस समय जो भी मांगूगा वह दे देना ।’’

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुनके शिविरमें गए । उन्होंने अर्जुनको तुरंत दुर्योधनके पास जाकर वे पांच बाण मांगनेके लिए कहा । अर्जुन दुर्योधनके पास गया और भीष्माचार्यद्वारा अभिमंत्रित पांच बाण मांगे । अर्जुनको वर देनेसे निरूपाय हुआ और उसके लिए बाण देना अनिवार्य हुआ । दुर्योधनने भी अपने दिए हुए वचनके अनुसार वे पांच बाण अर्जुनको दे दिए; इसलिए इस युद्धको ‘धर्मयुद्ध’ कहते है !’

संदर्भ : इस्कॉन वाङ्मय

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