चायके गंभीर दुष्परिणाम !

१. ‘कर्करोग और हृदयरोग रोकनेवाला ‘अ‍ॅन्टीऑक्सिडन्ट’ नामक पदार्थ केवल काली चायमें होता है । दूध एवं चीनी डालकर उबली हुई चाय आयुर्वेद शास्त्रानुसार अग्निमांद्य (भूख अल्प होना) उत्पन्न करनेवाली होती है ।

आ. दिनमें ७ से ३० कप, इतनी मात्रामें आवश्यकतासे अधिक उबली चाय पीनेवाले व्यक्तियोंकी पाचनशक्ति बिगडकर वे आम्लपित्त, अल्सर, जोडोंमें वेदना, शरीरमें वेदना और मलावरोध (बद्धकोष्ठ) जैसी व्याधियोंसे ग्रस्त होते हैं ।

२. भारतियोंमें चायमें चीनी डालनेकी मात्रा विश्वमें सर्वाधिक है । इससे बैठा व्यवसाय करनेवाले व्यक्ति मधुमेह, कोलेस्टेरॉल, हृदयविकार और स्थूलता जैसी व्याधियोंसे बाधित हो रहे हैं ।

३. दूध-चीनीविरहित चाय भी यदि अधिक मात्रामें सेवन की जाए, उसके अतिरिक्त कसैले स्वादके कारण मलावष्टंभ, तृष्णा, पक्षाघात (लकवा) जैसे वातविकार और शुक्राणुओंकी संख्या अल्प होना, आदि व्याधियां जड पकडती हैं ।

४. दूध, चीनी और चायका चूर्ण एकत्रित कर उबली चाय कफ-पित्त बढानेवाली और उष्ण गुणोंसे युक्त है ।

५. दुकानमें चाय एल्युमिनियमके बरतनमें उबाली जाती है । एल्युमिनियम धातुका स्पर्श खाद्यपदार्थोंको दीर्घकाल होनेसे ‘अल्झायमर्स’ (स्मृतीनाश) जैसी असाध्य व्याधि उत्पन्न होती है ।

६. पित्त प्रकृतिके व्यक्ति, तथा अप्रैल, मई और अक्टूबर माहमें सभी लोग चाय सावधानीसे और संतुलीत मात्रामें पीएं ।

७. भारत जैसे समशीतोष्ण कटिबंधके देशमें ‘चाय’ यह कोई कभी भी, कहीं भी अधिक मात्रामें पीनेका पेय नहीं है ।’

– वैद्य महेश ठाकूर, कार्यवाह, आयुर्वेद विद्यापीठ (जनपद ठाणे, महाराष्ट्र.)
संदर्भ : दैनिक लोकसत्ता, अक्टूबर २०००

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